Assam Fake Encounter: गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने गुरुवार (9 मार्च ) को एक बड़ा फैसला सुनाया. इसके तहत अदालत ने केंद्र सरकार को असम के तिनसुकिया (Tinsukia) जिले में वर्ष 1994 में उग्रवाद रोधी अभियान के दौरान सेना की ओर से मारे गए पांच युवकों के परिवारों को 20-20 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया. एक याचिकाकर्ता के वकील ने यह जानकारी दी.
अधिवक्ता परी बर्मन ने को बताया कि अदालत ने इस केस में लंबा समय बीत जाने के मद्देनजर मामले को बंद घोषित कर दिया, क्योंकि मामले के सबूत या गवाहों को पेश करना मुश्किल हो गया है. उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और न्यायमूर्ति रॉबिन फुकन की खंडपीठ ने यह आदेश दिया.
1994 में 9 लोगों को उठाकर किया था एनकाउंटर
बर्मन ने कहा, ‘‘यह मामला आज बंद कर दिया गया है. माननीय अदालत ने भारत सरकार को आदेश दिया है कि वह पांच मृतकों के परिजनों को 20-20 लाख रुपये का मुआवजा दे.’’ उल्लेखनीय है कि उल्फा की ओर से एक चाय बागान प्रबंधक की हत्या के बाद फरवरी 1994 में तिनसुकिया जिले के डूमडूमा सर्कल से सेना ने नौ लोगों को उठाया था, जिनमें से पांच युवक ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ के सदस्य थे. यह मामला इन्हीं पांच युवकों की मौत से संबंधित है.
दोषी अफसरों को 2018 में मिली थी उम्रकैद की सजा
तिनसुकिया में 24 साल पहले पांच युवकों के फर्जी एनकाउंटर मामले में सैन्य अदालत ने 2018 में एक पूर्व मेजर जनरल और दो कर्नल समेत सात सैन्यकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. असम के डिब्रूगढ़ में भारतीय सेना की यूनिट में हुए कोर्ट मार्शल में यह फैसला सुनाया गया था. इस फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ 1994 से ही लड़ाई लड़ने वाले असम स्टूडेंट्स यूनियन (ASU) के तत्कालीन उपाध्यक्ष और वर्तमान में भाजपा नेता जगदीश भुयान ने पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए काफी कोशिश की थी, तब जाकर यह फैसला आ पाया.
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