Gay Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर केरल, दिल्ली समेत अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया है. पिछले महीने हुई सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने इस बात के संकेत दे दिए थे. अब सभी याचिकाओं को 13 मार्च को एक साथ सुना जाएगा. याचिकाकर्ताओं ने समलैंगिक विवाह को भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लाने की मांग की है.
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच के सामने 2 याचिकाएं सुनवाई के लिए लगी थीं. पहली याचिका हैदराबाद के रहने वाले गे कपल सुप्रियो चक्रबर्ती और अभय डांग की थी और दूसरी दिल्ली के पार्थ फिरोज़ मेहरोत्रा और उदय राज आनंद की. याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और मेनका गुरुस्वामी पेश हुए. इसके अलावा कुछ और याचिकाकर्ताओं ने भी आवेदन दाखिल किया है. उनके वकील भी कोर्ट में मौजूद थे.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से भी रख सकते हैं दलील
चीफ जस्टिस ने हाई कोर्ट से मामले ट्रांसफर करते हुए माना कि याचिकाकर्ता देश भर में फैले हैं. सबक लिए दिल्ली आना या यहां अपने लिए वकील नियुक्त करना कठिन हो सकता है. उन्होंने इसका समाधान करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपने शहर से ही अपनी बात कोर्ट में रखने के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा दी जाएगी.
याचिकाओं में क्या कहा गया है?
इन याचिकाओं में कहा गया है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में अंतर धार्मिक और अंतर जातीय विवाह को संरक्षण मिला हुआ है. लेकिन समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव किया गया है. याचिकाकर्ता किसी धर्म या उसकी मान्यता की बात नहीं कर रहे, सिर्फ समलैंगिकों को उनका अधिकार दिलाने की बात कर रहे हैं.
'विवाह को मिले मान्यता'
याचिकाकर्ताओं ने बताया है कि 2018 में नवतेज जौहर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया था. उसी तरह पुट्टास्वामी मामले में निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया था. अब ज़रूरी है कि समलैंगिक विवाह को भी कानूनी मान्यता दी जाए. इस तरह के जोड़ों के बच्चा गोद लेने वगैरह को लेकर सवाल उठाए जाते हैं. शादी को कानूनी मान्यता मिलने के बाद उन्हें यह अधिकार भी हासिल हो सकेगा.
2018 में आया था ऐतिहासिक फैसला
6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था. इसके चलते दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अपराध नहीं माना जा सकता.
फैसला देते वक्त कोर्ट ने यह भी कहा था, "समलैंगिक लोगों के साथ समाज का बर्ताव भेदभाव भरा रहा है. कानून ने भी उनके साथ अन्याय किया है. इस अन्याय को दूर करना होगा. हम IPC की धारा 377 को कुछ हिस्सों को रद्द कर रहे हैं. उम्मीद है समाज भी अपना रवैया बदलेगा."
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