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'मुगलों ने भारत को कमजोर किया...', असम के सीएम के इस बयान के बीच जानिए उस दौर में जीडीपी क्या थी

मुगल काल में ही बंगाली किसानों ने शहतूत की खेती और रेशम कीट पालन की तकनीकों को सीखा. इससे बंगाल ने खुद को दुनिया के एक प्रमुख रेशम उत्पादक क्षेत्र के रूप में स्थापित किया.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कर्नाटक के बेलगावी में एक सभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस को नया मुगल बताया है. उन्होंने कहा कि जब भी राम मंदिर बनने की बात आती है तो कांग्रेस पार्टी को समस्या हो जाती है. हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, 'एक समय में दिल्ली के शासक मंदिरों को ध्वस्त करने की बात करते थे लेकिन आज पीएम मोदी के शासन में मैं मंदिरों के निर्माण की बात कर रहा हूं. यह नया भारत है'.

कांग्रेस इस नए भारत को कमजोर करने का काम कर रही है.  कांग्रेस नई मुगल है इसलिए जब भी राम मंदिर बनता है तो उसे समस्या होती है. बिस्वा सरमा ने ये भी कहा कि मुगल की तरह कांग्रेस भी देश को लूट रही है. 

भारत में मुगलों का शासन 

भारत में मुगल साम्राज्य की नींव बाबर के हमले के बाद हुई. बाबर ने दौलत खान लोदी के कहने पर भारत पर आक्रमण किया था. 1526 ईस्वी में बाबर ने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम खान लोदी की सेनाओं को हरा दिया और दिल्ली जीत ली.  

उस समय ज्यादातर मुगलों ने राजपूत भारतीय शासकों को उच्च पदों पर नियुक्त किया. याद दिला दें कि आमेर के कच्छवाहा राजपूत आमतौर पर मुगल सेना में सर्वोच्च सैन्य पदों नियुक्त किए जाते थे. इस तरह मुगल शासकों ने भारतीय सिपाहियों और राजपूतों के बीच एक भरोसा कायम किया.

मुगलों के शासन के दौरान कितनी थी देश की जीडीपी

साल 1600 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दुनिया की अर्थव्यवस्था का 22 प्रतिशत थी जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी. सन 1700 तक मुगल भारत का सकल घरेलू उत्पाद दुनिया की अर्थव्यवस्था का 24 प्रतिशत हो गया, जो पूरी दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गई. 

17वीं शताब्दी में भारत आए फ्रांसीसी यात्री फ्रेंकोइस बर्नियर ने लिखा था, 'दुनिया के हर चौथाई हिस्सों में सोना और चांदी हिंदुस्तान से ही मंगाए जाते थे. उस समय शेरशाह और मुगलों ने सड़कों, नदी परिवहन, समुद्री मार्गों, और कई बंदरगाहों को विकसित किया.  

इसी दौर में बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए कई अंंतरदेसीय टोल और करों को समाप्त किया गया. भारतीय हस्तशिल्प विकसित किए गए. उस समय सूती कपड़ा, मसाले, इंडिगो, ऊनी और रेशमी कपड़ा, नमक जैसी वस्तुएं भारत से ही निर्यात की जाती थीं. 

उस दौरान देश में बड़े व्यापारी हिंदू ही थे. मुसलमानों ने बड़े प्रशासनिक और सेना के पदों को संभाला हुआ था. अकबर के प्रशासन ने ही व्यापार और वाणिज्य की कुशल प्रणाली बनाई थी. जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी से मुगल साम्राज्य से व्यापार रियायतों की मांग की थी.  

18वीं शताब्दी तक मुगल साम्राज्य दुनिया के इंडस्ट्रियल आउटपुट का लगभग 25 प्रतिशत उत्पादन कर रहा था. उस समय भारत की जीडीपी  पिछले 1,500 सालों के मुकाबले सबसे ज्यादा थी. 18वीं शताब्दी के अंत देश की जीडीपी पश्चिमी यूरोप के बराबर हो गयी. 

इससे ये साफ होता है कि मुगलों ने हिंदुस्तान का पैसा नहीं लिया बल्कि देश में पैसा बनाया और देश की बुनियादी ढांचे में निवेश करके अर्थव्यवस्था में सुधार किए. इसके सबसे शानदार उदाहरण मुगलकाल में बनाए गए अनकों पर्यटक स्थल हैं.

2014 की प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की प्रेस रिलीज के मुताबिक, ताजमहल की सलाना टिकट बिक्री 21 करोड़ रुपये से ज्यादा है. ताजमहल को मुगल बादशाह शाहजहां ने ही बनाया था. वहीं कुतुबमिनार की सालाना टिकट बिक्री 10 करोड़ रुपये से ज्यादा है, लाल किला और हुमायूं का मकबरा में टिकट बिक्री से हर साल लगभग 6 करोड़ रुपये की कमाई होती है.

कुल मिलाकर कहें तो इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का जन्म मुगलकाल में ही हुआ जो आज भी भारत की शान है. मुगलों के दौर में ही स्थानीय कला और शिल्पकला में बड़े पैमाने पर निवेश किया गया. मुगलकाल में हिंदू मनसबदार और व्यापारियों ने कई शहरों में मंदिरों और धर्मशालाओं को बनवाया. इसमें बनारस के कई मंदिर और धर्मशालाएं शामिल हैं. 

इतिहासकार शिरीन मूसवी ने न्यूज 9 लाइव को बताया कि 16वीं शताब्दी के अंत में  शहरी श्रम बल 18 प्रतिशत था और ग्रामीण श्रम बल  82 प्रतिशत था. उनके मुताबिक 16वीं और 17वीं शताब्दी में भारत में अनाज की मजदूरी करने वाले मजदूरों की कमाई इंग्लैंड के मजदूरो के बराबर थी.  मूसवी ने यह भी कहा कि ब्रिटिश भारत के मुकाबले  मुगल भारत में गेहूं पर प्रति व्यक्ति आय 1.24 प्रतिशत ज्यादा थी. मुगलकाल में  मजदूरों के प्रति आम तौर पर बेहद ही नरम रवैया अपनाया जाता था,  इसकी वजह ये है कि कई इस्लामिक किताबों में शारीरिक श्रम को आला दर्जा दिया गया है. 

मुगल भारत में खेती 

भारत में मुगल शासकों ने खेती-किसानी पर खास ध्यान दिया. किसानों को बाजारों के लिए कई तरह की फसल उगाने का हुक्म था. इसी की देन थी कि किसान कपास, रेशम और काली मिर्च सहित कई कीमती फसलों की पैदावार करते थे और निर्यात से बड़ी रकम कमाई जाती थी.  इस दौरान जौ, चना, दालें, चावल और गेहूं जैसी फसलों की अलग-अलग किस्मों की पैदावार थी. 

मुगलकाल में ही नील, तिलहन, कपास और गन्ना जैसी कीमती फसलों की खेती की भी शुरुआत की गई. 17वीं शताब्दी के दौरान, दो नई फसलें, तंबाकू और मक्का को उगाया जाने लगा. मुगल शासकों ने अपने पूरे साम्राज्य में सिंचाई प्रणालियों के लिए रकम दी. जिससे फसलों की पैदावार बढ़ी और देश के राजस्व में इजाफा हुआ.  

मुगल बादशाह अकबर ने 'ज़बत' नाम की एक नई भूमि राजस्व प्रणाली की शुरुआत की थी, जिसके तहत मुगलों ने हल की खेती के तहत भूमि के अलग-अलग क्षेत्रों का आकलन करने के लिए कैडस्ट्रल सर्वेक्षण कराया था. जानकार ये मानते है कि मुगल कृषि उस समय यूरोपीय कृषि से कई मायनों में उन्नत थी. 

मुगल काल में ही बंगाली किसानों ने शहतूत की खेती और रेशम कीट पालन की तकनीकों को सीखा. इससे बंगाल ने खुद को दुनिया के एक प्रमुख रेशम उत्पादक क्षेत्र के रूप में स्थापित किया. इससे भारतीय कपड़ा उद्योग को फायदा पहुंचा. कृषि उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होने से खाद्य कीमतों में कमी आई. 

ब्रिटिश आयात का 95 प्रतिशत भारत पूरा करता था

1750 तक भारत ने दुनिया के औद्योगिक उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत उत्पादन किया. बड़े उद्योगों जैसे कपड़ा, जहाज निर्माण और इस्पात देश की जीडीपी में अहम रोल अदा कर रहे थे. उस समय यूरोप में मुगल भारत के उत्पादों खासतौर से सूती कपड़ों के साथ-साथ मसालों, मिर्च, इंडिगो, रेशम और साल्टपेट्रे जैसे सामानों की खूब मांग थी.

17 वीं शताब्दी के अंत से 18वीं शताब्दी की शुरुआत तक मुगल भारत पूरे एशियाई देशों में ब्रिटिश आयात का 95 प्रतिशत हिस्सा था. उस समय यूरोपीय सामानों की मांग बहुत कम हो गई थी. इंडोनेशिया और जापान जैसे देशों में भारतीय सामान मंगाए जाने लगे. 

अकबर और जहांगीर दोनों ने विदेशी समुद्री व्यापार के विकास का नेतृत्व किया था. बादशाह अकबर ने खुद वाणिज्यिक गतिविधियों को संभाला था.  व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मुगलों ने विदेशी व्यापारियों का स्वागत करने की नीति अपनाई वो उनके लेनदेन के लिए पर्याप्त सुरक्षा भी पहुंचाते थे, सीमा शुल्क भी कम लगाया जाने लगा. 

सोने-चांदी में भुगतान लेते थे मुगल

अपने माल के बदले में भारतीय व्यापारियों को सोने या चांदी में भुगतान लेने का हुक्म था. जाहिर सी बात है कि इंग्लैंड और यूरोप के बाकी हिस्सों में सोने या चांदी में भुगतान अदा करने का चलन नहीं था. लेकिन भारत से ये विदेशी सामान लेने को इतने आतुर थे कि उन्होंने व्यापारियों की मांग को माना. 

अकबर बादशाह ने 18वीं शताब्दी में  स्वदेशी उद्योग को बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाए. इस सिलसिले में लाहौर, आगरा, फतेहपुर सीकरी और गुजरात में रेशम बुनाई को सीधे तौर पर अकबर ने संभाला. अकबर ने कई केंद्रों पर बड़ी संख्या में कारखाने खोले, फारस, कश्मीर और तुर्किस्तान से मास्टर बुनकरों को बुलवाया. 

अकबर अक्सर कारीगरों को काम पर देखने के लिए महल के पास कार्यशालाओं का दौरा किया करते थे. इससे ना सिर्फ कारीगरों और बुनकरों का हौसला बढ़ता था साथ ही उनके काम को बारीकी से जांचा परखा भी जाता था.  अकबर के आदेश के बाद लाहौर में बड़ी संख्या में शॉल के कारखाने बनाए गए. 

मुगलों ने सड़क के बुनियादी ढ़ांचे में भी सुधार किया

मुगलों ने अपने कार्यकाल में सड़क निर्माण प्रणाली में भी सुधार किया. इस प्रणाली ने देश की आर्थिक बुनियादी ढांचे महत्वपूर्ण योगदान दिया.  इस दिशा में मुगलों ने एक लोक निर्माण विभाग की स्थापना की जो कस्बों और शहरों को जोड़ने वाली सड़कों के डिजाइन, निर्माण और रख-रखाव में खास रोल अदा किया इससे दूसरे देशों के साथ होने वाले बिजनेस को बढ़ावा मिला. 

देश में जीडीपी के मौजूदा हालात 

जीएचआई की रिपोर्ट दुनिया के अलग-अलग देशों में भूख और कुपोषण की स्थिति का अंदाजा लगाती है. भारत की जीडीपी के मोर्चे पर गौर करने वाली बात ये है कि प्रगति के बावजूद भारत कई सामाजिक मानकों पर पिछड़ा हुआ है और यह इस बात का सबूत है कि किसी देश की तरक्की का आकलन सिर्फ जीडीपी के आँकड़ों से नहीं किया जा सकता है. 

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