अहमदाबाद: गुजरात पुलिस की कमान पहली बार महिला अधिकारी के हाथ आई है. गुजरात की विजय रुपाणी सरकार ने आज जैसे ही गीता जौहरी के नाम की घोषणा राज्य के नये प्रभारी डीजीपी के तौर पर की, ये रिकॉर्ड बन गया. वैसे गीता जौहरी को गुजरात कैडर की पहली महिला आईपीएस अधिकारी होने का खिताब पहले से हासिल है.


मूल तौर पर तमिलनाडु की निवासी गीता जौहरी 1982 में भारतीय पुलिस सेवा में आईं यानी आईपीएस अधिकारी बनीं. उन्हें गुजरात कैडर मिला, गुजरात में ही उनके पति अनिल जौहरी भी भारतीय वन्य सेना के वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर कार्यरत हैं. नवंबर 1957 में जन्मीं और केमिस्ट्री में एमएससी करने वाली गीता जौहरी के हाथ में इस साल नवंबर तक गुजरात पुलिस की कमान रह सकती है, अगर राज्य सरकार चाहे तो. रुटीन तौर पर नवंबर महीने के आखिर में गीता जौहरी रिटायर हो जाएंगी.


राज्य सरकार को गीता जौहरी को गुजरात पुलिस का मुखिया, भले ही प्रभारी के तौर पर ही सही, बनाने की नौबत तब आई, जब 1980 बैच के अधिकारी पीपी पांडे को गुजरात का प्रभारी डीजीपी बनाये जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. मूल तौर पर महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे और थोड़े समय गुजरात के डीजीपी रहे रिटायर्ड अधिकारी जूलियो रिबेरियो ने पांडे की नियुक्त को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. रिबेरियो का तर्क ये था कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले के आरोपी पीपी पांडे का गुजरात पुलिस का अगुआ बना रहना केस के लिए नुकसानदेह है. इसी वजह से पांडे ने अपने इस्तीफे की पेशकश की, जिसे स्वीकार करने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को दिया. पांडे इसी एक फरवरी को रिटायर हो जाने वाले थे, लेकिन राज्य सरकार की सिफारिश पर केंद्र ने गुजरात पुलिस के इंचार्ज डीजीपी के तौर पर उन्हें तीन महीने का एक्सटेंशन दे दिया था. बदली परिस्थितियों में पांडे का इस्तीफा कल राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया.


पांडे के गुजरात पुलिस के प्रमुख पद से हटने के बाद अब गुजरात पुलिस की नयी अगुआ बन चुकी गीता जौहरी और पांडे में कई मामलों में समानता भी है. दरअसल पीपी पांडे जहां इशरत जहां मुठभेड़ मामले के आरोपी बनाये जाने के कारण अगस्त 2013 में जेल गये, वही गीता जौहरी भी एक और मुठभेड़ मामले की आरोपी बनाई गई थीं. दोनों ही मामलों की जांच सीबीआई ने की थी. गीता जौहरी को सीबीआई ने सोहराबुद्दीन शेख-तुलसी प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामले की जांच में लीलापोती के लिए आरोपी बना डाला, जिस मामले की शुरुआती जांच खुद गीता जौहरी ने की थी. गीता जौहरी को पिछले साल अप्रैल में इस मुठभेड़ मामले के आरोपी के तौर पर मुंबई की अदालत से डिस्चार्ज मिला, क्योंकि राज्य सरकार ने उनके खिलाफ मामला चलाने के लिए अपनी स्वीकृति नहीं दी थी.


गीता जौहरी भले ही अब गुजरात पुलिस की अगुआ बन गई हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ प्रभार दिया गया है न कि नियमित डीजीपी के तौर पर बैठाया गया है. देखना ये होगा कि राज्य सरकार उन्हें इंचार्ज डीजीपी की जगह नियमित डीजीपी बनाती है या नहीं. वैसे भी गीता जौहरी के पूर्ववर्ती पीपी पांडे राज्य के इंचार्ज डीजीपी के तौर पर ही करीब साल भर तक काम करने के बाद आखिरकार रिटायर हो गये. 1980 बैच के आईपीएस अधिकारी पीपी पांडे पिछले साल अप्रैल में तब गुजरात पुलिस के प्रभारी डीजीपी बने थे, जब तत्कालीन डीजीपी पीसी ठाकुर को सरकार ने हटाकर उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली भेजने का फैसला किया था.


पांडे के इस्तीफे के बाद गुजरात पुलिस की कमान किसे दी जाएगी, इसे लेकर पिछले दो दिनों से अटकलों का बाजार गर्म था. दो नाम चर्चा में थे, खुद गीता जौहरी का और प्रमोद कुमार का. ये दो अधिकारी ही ऐसे थे, जो डीजीपी ग्रेड में फिलहाल हैं. दोनों को ही अप्रैल 2015 में डीजीपी श्रेणी में प्रोन्नत किया गया था. 1983 बैच के आईपीएस अधिकारी प्रमोद कुमार अगस्त 2013 में तब राज्य के प्रभारी डीजीपी कुछ महीनों के लिए बनाये गये थे, जब तत्कालीन डीजीपी अमिताभ पाठक की थाइलैंड में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी. उस समय उनसे सीनियर चार अधिकारी थे, पीसी ठाकुर, पीपी पांडे, एचपी सिंह और गीता जौहरी. ठाकुर 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी थे तो पांडे और सिंह 1980 बैच के और गीता जौहरी 1982 बैच की. लेकिन आखिरकार दिसंबर 2013 में तत्कालीन मोदी सरकार ने पीसी ठाकुर को राज्य का डीजीपी बनाया, जिस पद पर ठाकुर सवा दो साल से अधिक समय तक रहे. ठाकुर को जब डीजीपी पद से हटाने का राज्य सरकार ने फैसला किया, उस वक्त पांडे गुजरात एसीबी के डायरेक्टर थे. पांडे फरवरी 2015 में इशरत जहां केस में जमानत पर छूटे थे और राज्य सरकार ने 10 फरवरी 2015 को उनका निलंबन खत्म कर उन्हें गुजरात पुलिस में पदस्थापित किया था.


जहां तक गीता जौहरी का सवाल है, उनका कैरियर भी उतार-चढाव वाला रहा है. बतौर डीसीपी अहमदाबाद में तत्कालीन डॉन अब्दुल लतीफ के खिलाफ अभियान चलाकर शोहरत में आने वाली गीता जौहरी के एक समय जेल जाने की नौबत तब आई, जब सितंबर 2012 में सीबीआई ने उनके खिलाफ तुलसीराम प्रजापति मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी. गीता जौहरी ने खुद कभी सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले की जांच की थी, जिससे जुड़ा हुआ था तुलसीराम प्रजापति केस. आरोप ये लगाया गया कि जानबूझकर गीता जौहरी ने दोनों मामलों को अलग-अलग माना और सबूत को नष्ट करने की कोशिश भी की. लेकिन उस मामले से मुक्ति पाने के बाद अब गीता जौहरी उस पद पर जा बैठी है, जिसकी हसरत राज्य में तैनात हर पुलिस अधिकारी को होती है, राज्य पुलिस की अगुआई करने का. गीता जौहरी प्रभारी ही सही, इस पद पर बैठ तो गई ही है, गुजरात कैडर की पहली महिला आईपीएस अधिकारी अब गुजरात की पहली महिला इंचार्ज डीजीपी बन गई है.