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Gehlot Vs Pilot: गहलोत-पायलट के बीच रस्साकशी का कांग्रेस के पास क्या है हल? राजस्थान में किस करवट बैठेगा ऊंट

Gehlot Pilot Tussle: राजस्थान विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ 11 महीने का वक्त बचा है. ऐसे में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की तनातनी कांग्रेस की सत्ता वापसी के सपने को चकनाचूर कर सकती है.

Gehlot Pilot Tussle: राजस्थान में कांग्रेस के भीतर राजनीतिक घमासान कौन सा मोड़ लेगा, ये कहना फिलहाल मुश्किल है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है. अब बात नाकारा, निकम्मा से बढ़कर गद्दार तक पहुंच चुकी है. हाल ही में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के लिए गद्दार शब्द का इस्तेमाल कर दिया था. अब तक के हालात से तो ऐसा लग रहा है कि मामले को सुलझाने में कांग्रेस हाईकमान भी नाकाम है. 

फिलहाल राजस्थान की राजनीति एक अजीब मोड़ पर है. सत्ताधारी कांग्रेस के साथ ही विपक्षी दल बीजेपी में भी अनिश्चितता का माहौल है. हालांकि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व राजस्थान में पार्टी के अंदरूनी कलह को थामने में ज्यादा सक्षम और मुस्तैद है. कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है.

2018 में जब से राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी है, अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच रस्साकसी बढ़ती ही गई है. दोनों की आपसी खींचतान से राज्य में कांग्रेस की स्थिति विचित्र हो गई है. अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद छोड़ना नहीं चाहते और न ही सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं. राजस्थान में इसका खामियाजा कांग्रेस के साथ ही उसके नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी भुगतना पड़ा रहा है.  

सचिन पायलट के बगावती तेवर 

एक वक्त ऐसा भी आया था जब सचिन पायलट के बगावती तेवर को देखकर राजनीतिक विश्लेषकों को लगने लगा था कि वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. आम लोगों में भी धारणा बनने लगी थी कि वे बीजेपी के करीब जा रहे हैं. पायलट ने जुलाई 2020 में अपने कई करीबी विधायकों के साथ गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उस वक्त अशोक गहलोक ने सचिन पायलट को नाकारा और निकम्मा तक कह डाला था.

हालात इतने बिगड़ गए थे कि सचिन पायलट के बीजेपी में जाने की अटकलें तेज हो गई थीं. उस वक्त प्रियंका गांधी ने अहमद पटेल के साथ मिलकर इस मामले का हल निकाल लिया था. सचिन पायलट पार्टी में रहने को तैयार हो गए थे. अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहे. हालांकि उन्होंने सचिन पायलट को दोबारा उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया और न ही प्रदेश अध्यक्ष बनने दिया.

सचिन पायलट अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए मोर्चाबंदी कर रहे थे. उस वक्त उनके बगावती तेवर को कामयाबी नहीं मिल पाई. अब हालात और बिगड़ गए हैं. कहा जा रहा है कि सचिन पायलट अब भी बीजेपी के संपर्क में हैं. राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि अगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो वे भविष्य में बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. 

पायलट के खिलाफ गहलोत का मोर्चा

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बीजेपी के खिलाफ लगातार आग उगलने वाले नेता रहे हैं. अब अशोक गहलोत जितना बीजेपी के खिलाफ नहीं हैं, उससे ज्यादा सचिन पायलट के खिलाफ आग उगल रहे हैं. अशोक गहलोत के रुख से ऐसा लग रहा है कि वे सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. गहलोत के लिए राजनीति में अब सिर्फ एक ही मकसद बच गया है और वो है सचिन पायलट को मुख्यमंत्री के पद पर कभी नहीं पहुंचने देना.

'सचिन पायलट को नहीं बनने देंगे मुख्यमंत्री'

पिछले तीन साल के घटनाक्रम से अशोक गहलोत को ये बात समझ में आने लगी है कि गांधी परिवार सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाना चाहता है. ये तो गहलोत के सियासी कौशल का ही नतीजा है कि उन्हें गांधी परिवार से बार-बार कुछ दिनों की मोहलत मिल जा रही है. लेकिन अब गहलोत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती है. उन्हें अंदाजा होने लगा है कि गांधी परिवार का रवैया अब मोहलत के पक्ष में ज्यादा दिन नहीं रहने वाला.

ऐसे में अशोक गहलोत के पास सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए एक रास्ता दिख रहा है. राजस्थान का बजट सत्र जल्दी बुलाकर अशोक गहलोत ये संदेश दे सकते हैं कि सत्र की वजह से राज्य में फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन संभव नहीं है. इससे गहलोत को कुछ और महीने मिल जाएंगे और तब तक राजस्थान विधान सभा चुनाव की तारीखें आ जाएंगी.   

गहलोत-पायलट तनाव से कर्नाटक में नुकसान!

गहलोत के बजट सत्र का दांव फिलहाल ज्यादा काम नहीं करेगा. गहलोत-पायलट के बीच तनाव जिस हद तक पहुंच चुकी है, उससे पार्टी को राजस्थान में बहुत नुकसान हो रहा है. कांग्रेस हाईकमान इस बात से भली-भांति परिचित है. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तकरार बरकरार रहने का खामियाजा कांग्रेस को दूसरे राज्यों में भी भुगतना पड़ सकता है.

अगले साल अप्रैल-मई में कर्नाटक विधानसभा चुनाव होना है. कांग्रेस कतई नहीं चाहेगी कि उस वक्त तक राजस्थान में पार्टी की कलह जारी रहे और कर्नाटक में उसके सत्ता हासिल करने के मंसूबों को कमजोर बनाए. कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा बेहतर है. कर्नाटक में कांग्रेस के भीतर अंदरूनी लड़ाई पर बहुत हद अंकुश लग चुका है. इसलिए दिल्ली में बैठे पार्टी के शीर्ष नेता जल्द से जल्द राजस्थान का समाधान निकालना चाहेंगे.

'विधायकों का रुख गहलोत के पक्ष में नहीं'

राजस्थान में अशोक गहलोत के लिए सबसे बड़ा खतरा कांग्रेस के विधायकों का रुख है. उन्हें अच्छे से अंदाजा है कि अगर राज्य में पार्टी विधायक दल की बैठक हो जाए तो सचिन पायलट को विधायक दल का नेता चुन लिया जाएगा. इस साल 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी थी. अशोक गहलोत को अंदाजा था कि अगर ऐसा हो गया तो उनके लिए पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकना मुश्किल हो जाएगा. इस बैठक के नहीं होने देने के पीछे अशोक गहलोत की कूटनीति ही थी. सियासी ड्रामे के बीच कांग्रेस के कई विधायकों ने इस्तीफे की पेशकश कर दी और बैठक नहीं हो पाई. इसमें पार्टी हाईकमान सिर्फ देखता रह गया.  

सचिन पायलट को उकसाने की रणनीति

अशोक गहलोत जानते हैं कि अगर पार्टी हाईकमान पूरी तरह से ठान ले तो उनके लिए सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकना मुश्किल हो जाएगा. सचिन पायलट कुछ वक्त के लिए शांत दिखते हैं. लेकिन अशोक गहलोत लगातार सचिन पायलट पर हमलावर दिख रहे हैं. उनकी मंशा है कि पायलट किसी भी तरह से पार्टी छोड़कर चले जाएं. ऐसा होने पर राजस्थान में पार्टी के भीतर अशोक गहलोत के सामने कोई खतरा नहीं रह जाएगा.

हाल ही में सचिन पायलट को गद्दार कहने के पीछे यही मंशा थी. ये अशोक गहलोत की सोची-समझी सियासी रणनीति का हिस्सा है. इससे एक तरफ सचिन पायलट को उकसाने का काम हो जाता है, तो दूसरी तरफ पार्टी हाईकमान को भी संदेश पहुंचा देते हैं कि वे किसी भी कीमत पर सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे.

समय से पहले चुनाव  का दांव खेल सकते हैं गहलोत

राजस्थान में अगले साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होना है, लेकिन विधायकों को आशंका है कि राज्य में वक्त से पहले चुनाव हो सकते हैं. इसलिए वे अपने-अपने क्षेत्रों में घूम भी रहे हैं. कांग्रेस के विधायकों को पता है कि फिलहाल कांग्रेस हाईकमान के पक्ष में रहने में ही भलाई है. अगर अशोक गहलोत के पास सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनने से रोकने का कोई विकल्प नहीं बचेगा, तो वे विधानसभा के भंग करने से भी पीछे नहीं हटेंगे.

कांग्रेस के सामने एक डर है कि अगर अशोक गहलोत पूरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बने रहे, तो पार्टी अगले विधान सभा चुनाव में 15 से 20 सीटों पर सिमट सकती है. सियासी घमासान खत्म करने के लिए सचिन पायलट को फिलहाल मुख्यमंत्री बना भी दिया जाए, तो भी कांग्रेस के लिए 2023 में सत्ता वापसी की डगर उतनी आसान नहीं होगी.

अगर समय से पहले चुनाव होने पर सचिन पायलट को राजस्थान में मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाए, तो कांग्रेस राज्य में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हो सकता है. इससे कांग्रेस एंटी इनकंबेंसी के असर से भी बच जाएगी. पार्टी कार्यकताओं के बीच में भी इसके सकारात्मक संदेश पहुंचने की संभावना है. सचिन पायलट की पहचान ऐसे नेता के तौर पर है, जिसके पीछे लोगों का समर्थन दिखता है. ये अलग बात है कि कांग्रेस हाईकमान के ढुलमुल रवैये के कारण पार्टी में अभी सचिन पायलट हाशिए पर दिख रहे हैं.

अशोक गहलोत का बीजेपी को लेकर नरम रुख

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि फिलहाल सचिन पायलट तो कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के रुख का इंतजार कर रहे हैं. इसके विपरीत अशोक गहलोत का रवैया बीजेपी के प्रति नरम होता दिखा रहा है. बीजेपी को लेकर अशोक गहलोत के नरम रुख के पीछे बड़ी वजह है. अपने राजनीतिक भविष्य को संकट में देखकर गहलोत आगे की रणनीति बनाने में जुटे हैं. इस मकसद से वे सचिन पायलट का ज्यादा से ज्यादा मुकसान चाहते हैं.

अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत का राजनीतिक भविष्य भी सुनिश्चित करना चाहते हैं. 2019 के लोक सभा चुनाव में गहलोत के बेटे ने जोधपुर से चुनाव लड़ा था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे. अशोक गहलोत को अंदाजा है कि कांग्रेस में रहते उनके बेटे को चुनाव में जीत मिलना आसान नहीं है. बीजेपी में जाने पर ही उनके बेटे के सियासी जीत का सफर शुरू हो सकता है. इस फायदे को देखते हुए गहलोत अपने बेटे को बीजेपी में भी भेज सकते हैं. इसके एवज में बीजेपी के लिए वे बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए जो भी कदम हो सकता है, उठा सकते हैं. 

अशोक गहलोत पीएम नरेंद्र मोदी की कर चुके हैं तारीफ

हाल फिलहाल में अशोक गहलोत की भाषा भी बीजेपी के शीर्ष नेताओं के लिए बदल गई है. गहलोत का लहजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रति लचीला दिख रहा है. बांसवाड़ा में अक्टूबर में हुए एक सरकारी कार्यक्रम में मंच से ही अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की थी. उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी भी मंच पर मौजूद थे. अशोक गहलोत ने अक्टूबर में राजस्थान में हुए इन्वेस्टर समिट में बिजनेसमैन गौतम अडानी को बुलाया था, जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी अक्सर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से नजदीकी रिश्ते का हवाला देकर अडानी की आलोचना करते रहते हैं.

दरअसल अशोक गहलोत चाहते हैं कि उनके परिवार और नजदीकी लोगों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की जो जांच चल रही है, उससे छुटकारा मिल जाए. इससे समझा जा सकता है कि गहलोत एक साथ कई निशाने साधने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.

कांग्रेस के लिए मुश्किल है हल निकालना

अशोक गहलोत और सचिन पायलट की सियासी तनातनी पर अभी तक कांग्रेस हाईकमान की ओर से कोई सख्त कदम नहीं उठाए गए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को देखते हुए कांग्रेस अभी शांत है. जैसे ही भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान से निकल जाएगी. कांग्रेस राजस्थान के मसले पर फैसला कर सकती है.

गहलोत को ये डर सता रहा है कि कांग्रेस हाईकमान का फैसला उनके पक्ष में तो नहीं ही होगा. ऐसे में अशोक गहलोत पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं रह जाता है. सचिन पायलट के लिए तो गहलोत इस्तीफा देने से रहे. अगर कांग्रेस हाईकमान किसी तीसरे आदमी को लाना चाहेगी तो इस पर सचिन पायलट एतराज जता सकते हैं. ऐसे में ये तय है कि कांग्रेस को राजस्थान के सियासी संकट का हल निकालने में बहुत मुश्किल आने वाली है.

अगर कांग्रेस नरम रुख अपनाते हुए अशोक गहलोत को ही पूरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बने रहने देती है तो सचिन पायलट फिर से बगावती तेवर अपना सकते हैं. सचिन पायलट के पास बीजेपी में जाने का विकल्प तो है, लेकिन उनके करीबियों का कहना है कि वे ऐसा नहीं करेंगे.

इस स्थिति में सचिन पायलट के पास अगले चुनाव में अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का भी विकल्प खुला है. फिलहाल सचिन पायलट कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के अंतिम फैसले का इंतजार कर रहे हैं. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान से निकलने के बाद यहां के सियासी दंगल में जबरदस्त उठा-पटक होने की उम्मीदों से इनकार नहीं किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें: Uniform Civil Code: यूनिफॉर्म सिविल कोड सियासी मुद्दा या वास्तविक जरूरत? क्या कहता है संविधान, जानें हर पहलू

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