जीन थेरेपी से कैंसर के इलाज का परीक्षण मुंबई में शुरू, रोगियों के लिए हो सकता है वरदान
CAR-T कोशिकाएं कुछ विकसित देशों में कैंसर का इलाज करने में काफी हद तक सफल रही हैं. हालांकि, वर्तमान इलाज मरीजों की जिंदगी को कुछ महीनों या कुछ साल बढ़ाने पर काम करता है, लेकिन CAR-T तकनीक खास प्रकार के कैंसर को ठीक करने की उम्मीद बढ़ाती है.
ब्लड कैंसर के इलाज के लिए देश में विकसित CAR T तकनीक का परीक्षण मुंबई के टाटा मेमोरियल सेंटर में शुक्रवार को शुरू हो गया है. ये पहली बार है जब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के शोधकर्ताओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित जीन थेरेपी को देश के मरीजों पर जांचा जा रहा है. CAR T (चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी कोशिकाओं ) ऐसी कोशिकाएं हैं जिनको कृत्रिम रिसेप्टर टी कोशिका का उत्पादन करने के लिए आनुवंशिक रूप से बनाया जाता है.
स्वदेशी तकनीक से कैंसर के इलाज की दिशा में बड़ी छलांग
उसका इस्तेमाल विकसित देश कैंसर के इलाज में इम्यूनो थेरेपी के लिए करते हैं. लेकिन ये तकनीक भारत में अभी तक उपलब्ध नहीं है. गौरतलब है कि शरीर में संक्रमण के हावी होने पर शरीर की स्वस्थ कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं. कैंसर की बीमारी में भी मरीज का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. कैंसर रोगियों के लिए इम्यूनो थेरेपी से शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत किया जाता है.
जीन थेरेपी के तौर पर, इन कोशिकाओं का इस्तेमाल खास प्रकार के ब्लड कैंसर का इलाज करने में होता है. प्रोफेसर राहुल पुरवार की अगुवाई में बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं की टीम ने पहला स्वदेशी CAR T-सेल थेरेपी विकसित किया है. उनको क्लीनिकल इनपुट्स टाटा मेमोरियल सेंटर के प्रोफेसर डॉक्टर गौरव नरुला और उनकी टीम ने उपलब्ध कराया है. ये थेरेपी लिम्फोमा, लेकिमिया को निशाना बनाती है और टीम ने रिसर्च के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पेटेंट के लिए आवेदन किया है.
जीन थेरेपी से होगा खास प्रकार के ब्लड कैंसर का इलाज
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई द्वारा विकसित CAR T-सेल थेरेपी में लेंटिवायरल तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. जीन थेरेपी में, लेंटिवायरस के इस्तेमाल से जीवों में जीन डालना, जीन को संशोधित करना, या जीन हटाने का एक तरीका है. लेंटिवायरस एड्स जैसी बीमारियों के जिम्मेदार वायरसों का एक परिवार है. परवार ने कहा, "पहले चरण का मानव परीक्षण शुरू हो चुका है, इस दौरान दवा के सुरक्षात्मक पहलु को देखा जाएगा. ये भारत के लिए कैंसर के इलाज में आत्मनिर्भर होने की दिशा में बड़ी छलांग है." डॉक्टर नरुला ने बताया कि परीक्षण की शुरुआत टाटा मेमोरियल के अनुसंधान और विकास विंग में हो चुकी है.
उन्होंने कहा कि परीक्षण के बारे में ज्यादा जानकारी का खुलासा जल्द ही किया जाएगा. आईआईटी के डायरेक्टर सुभाशिष चौधरी ने देश के साथ-साथ संस्थान के लिए उसे महत्वपूर्ण उपलब्धि माना. उन्होंने कहा, "हमें खुशी है कि टाटा मेमोरियल अस्पताल के साथ हमारे वैज्ञानिकों ने कैंसर के इलाज की सबसे जटिल चिकित्सा को पेश किया है. अगर परीक्षण सफल रहा, तो ये भारत में किफायती कीमत पर उपचार उपलब्ध कराकर लाखों लोगों की जिंदगी बचा सकता है. ये आईआईटी का रिसर्च है जिसका सभी के जीवन को छूने की उम्मीद है." पुरवार ने बताया कि भारत में थेरेपी की अनुपलब्धता का एक प्रमुख कारण उसका अत्यधिक महंगा होना है. भारत की दवा कंपनियों को इतने महंगे इलाज के लिए बाजार नहीं दिखता है.
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