नई दिल्ली: आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदम का लगभग सभी पार्टियों ने समर्थन किया है. हालांकि, विपक्ष ने इसे लोकसभा चुनावों से पहले एक ‘चुनावी स्टंट’ बताया है. इसके साथ ही आरक्षण को लेकर नई मांग छेड़ दी है.


कांग्रेस ने कहा कि वह आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए लाए गए विधेयक के समर्थन में है, लेकिन उसे सरकार की मंशा पर शक है. पार्टी ने कहा कि सरकार का यह कदम महज एक ‘चुनावी जुमला’ है और इसका मकसद आगामी चुनावों में फायदा हासिल करना है.


बीएसपी, एसपी, टीडीपी और डीएमके सहित विभिन्न पार्टियों ने इसे बीजेपी का चुनावी स्टंट करार दिया. हालांकि, उन्होंने आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के लिए आरक्षण का समर्थन भी किया. कैबिनेट ने सोमवार को आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के लिए 10 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से पिछड़े तबके को 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने वाला विधेयक लोकसभा में पारित होने पर इसे देश के इतिहास में ‘ऐतिहासिक क्षण’ करार दिया. मोदी ने कहा, ‘‘यह सुनिश्चित करना हमारा प्रयास है कि हर गरीब व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति या संप्रदाय का हो, गरिमापूर्ण जीवन जिये और उसे हर संभव मौके मिलें.’’


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अमित शाह
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इस विधेयक को गरीब परिवारों के युवाओं को मोदी सरकार का ‘तोहफा’ करार दिया और कहा कि इससे उनके ‘स्वर्णिम भविष्य’ के द्वार खुलेंगे. उन्होंने कहा कि इतने बरसों से तुष्टीकरण की राजनीति कर रही अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए यह एक सबक है.


समान राय जाहिर करते हुए बीजेपी के सहयोगी दल एलजेपी प्रमुख राम विलास पासवान ने कहा कि यह मोदी सरकार के नारे ‘सबका साथ सबका विकास’ के अनुरूप है. ‘‘अब समाज में स्थिति बदल गई है, ऊंची जातियों में भी गरीब लोग हैं उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए.’’


कांग्रेस
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि उनकी पार्टी विधेयक का समर्थन करती है, लेकिन रोजगार का तो सृजन ही नहीं हो रहा. उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘मोदी जी, कांग्रेस गरीबों के लिए आरक्षण का समर्थन करती है. लेकिन जब नौकरियां ही पैदा नहीं की जा रहीं तो आरक्षण का फायदा कौन और कैसे लेगा?’’


बीएसपी-एसपी
बीएसपी प्रमुख मायावती ने इसे लोकसभा चुनावों से पहले ‘चुनावी स्टंट’ और ‘राजनीतिक पैंतरा’ करार दिया. बहरहाल, उन्होंने कहा कि वह सरकार के ‘अपरिपक्व’ कदम का स्वागत करती हैं. समाजवादी पार्टी ने भी विधेयक का समर्थन किया लेकिन कहा कि ओबीसी के लिए आरक्षण बढ़ाया जाना चाहिए, जो कुल आबादी में 56 फीसदी हैं.


पार्टी नेता रामगोपाल यादव ने कहा, ‘‘हम मांग करते हैं कि देश की कुल आबादी में 56 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले ओबीसी को इसी प्रतिशत में आरक्षण दिया जाना चाहिए.'' एसपी के धर्मेंद्र यादव ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि जातिगत जनगणना पर करोड़ों रुपये खर्च किया, लेकिन रिपोर्ट जारी नहीं की जा रही है. यह रिपोर्ट जारी की जाए और जिसकी जितनी आबादी है, उसे उतना आरक्षण दिया जाए.


टीडीपी


आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि यह कदम कथित राफेल घोटाले से ध्यान भटकाने की कोशिश है. उन्होंने कहा, ‘‘बहरहाल, हम आर्थिक पिछड़ों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का समर्थन करते हैं.’’


पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस सुप्रीमो एच डी देवेगौड़ा ने भी केंद्र के कदम का समर्थन किया. डीएमके ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार ने इस कदम से पिछड़े वर्गों एवं अन्य के साथ ‘विनाशकारी खेल’ शुरू किया है. पार्टी ने कहा कि 10 फीसदी आरक्षण का कानून अदालतों में टिक नहीं पाएगा. एआईएमआईएम ने प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह कदम संविधान के साथ धोखा है और डॉ भीम राव आंबेडकर का अपमान है.


आरजेडी
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता जयप्रकाश नारायण यादव ने कहा कि सरकार जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सामने लाए और एससी/एसटी और ओबीसी को 85 फीसदी आरक्षण दिया जाए. राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि जिस वर्ग की जितनी आबादी है, उसके मुताबिक आरक्षण दिया जाना चाहिए.


आईयूएमएल के ईटी मोहम्मद बशीर ने कहा कि सरकार की नीयत गलत है और उसे यह विधेयक वापस लेना चाहिए. आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि यह ऐतिहासिक विधेयक है, लेकिन सरकार का इरादा ठीक नहीं है.