देश के पूर्व रक्षामंत्री, रेलमंत्री और समाजवाद के नेता माने जाने वाले जॉर्ज फर्नाडिस की आज 91वीं जयंती है. कांग्रेसवाद विरोध की राजनीति करने के लिए जाने जानेवाले जॉर्ज की पहचान आपताकाल के बाद एक मजदूर नेता से राजनेता की हुई थी. आपातकाल में जॉर्ज के साथ काम करने वाले लोगों को कहना है कि उस दौर में अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए वे अपना रूप बदलते थे और नए वेशभूषा में होते थे.


बिहार के जाने माने पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि आपातकाल में फर्नांडिस ने अपना रूप बदल लिया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए फर्नांडिस कभी ग्रामीण, कभी सिख, कभी मजदूर तो कभी पुजारी का रूप धारण कर लेते थे. पुलिस से बचने के लिए उन्होंने बाल और दाढ़ी बढ़ा रखी थी. कभी सिख का रूप धारण कर लेते थे. वे खुद को पत्रकार खुशवंत सिंह कहकर भी परिचय देते थे, जिससे उनकी पहचान छिपी रहे.


जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक किशोर कहते हैं कि आपातकाल के दौरान वे 'जननायाक' के रूप में उभरे थे. उस दौर में वे जिस क्षेत्र में जाते थे, उसी क्षेत्र की परंपरा से जुड़ा हुलिया बना लेते थे. कई दिनों तक उन्होंने पादरी के वेशभूषा में खुद को रखा था. वे कहते हैं कि जॉर्ज कई भाषाओं के जानकार थे, यही कारण है कि उन्हें इस दौरान भाषाई परेशानी भी नहीं होती थी.


जॉर्ज का बिहार से गहरा नाता
3 जून 1930 को कर्नाटक में जन्मे जॉर्ज का बिहार से गहरा नाता रहा है. लोकसभा में उन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है. आपातकाल के दौर में उन्होंने बिहार में संघर्ष किया. राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य रह चुके जॉर्ज केंद्रीय मंत्रिमंडल में रक्षामंत्री, संचारमंत्री, उद्योगमंत्री, रेलमंत्री के रूप में कार्य किया था. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के जॉर्ज संयोजक भी रहे थे.


जॉर्ज को नजदीक से जानने वाले शिवानंद तिवारी कहते हैं कि जॉर्ज सादगी के प्रतीक थे. उन्होंने कहा कि वे न स्वयं अपना कपड़ा धोते थे, बल्कि कभी कपड़ों में इन्होंने तक आयरन (प्रेस) नहीं करवाई. वे खुद अपनी गाड़ी भी स्वयं चलाते थे. जब जॉर्ज रक्षामंत्री थे, तब उन्होंने अपने आवास का मुख्यद्वार तक हटा दिया था, जिससे लोगों को उनसे मिलने में परेशानी नहीं हो.


जॉर्ज ने बहुत कम उम्र में आम आदमी, मजदूर से जोड़ लिया था. उस समय मुंबई में हड़ताल से मुंबई ठहर गई थी. आपातकाल के पहले भी उनका बिहार से लगाव था. आपातकाल से पूर्व भी वे यहां आते-जाते थे. कुल मिलकार सही अर्थो में जॉर्ज सादगी के प्रतीक थे. आज के राजनेताओं को उनसे सीख लेनी चाहिए.


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