हैदराबाद: ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव (GHMC) राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन चुका है. ध्रुवीकरण और वार-पलटवार के बीच अब राष्ट्रीय नेता बीजेपी की जड़ें मजबूत करने के लिए यहां पहुंच रहे हैं. GHMC अब एक ऐसा चुनाव बन गया है जो है तो शहरी लेवल का लेकिन देश भर की निगाहें इस पर लगी हुई है.
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव को दरअसल 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है. यहीं कारण है कि बीजेपी ने केसीआर और असदुद्दीन ओवैसी के मजबूत दुर्ग में अपने दिग्गज नेताओं की फौज उतार दी है.
क्यों अहम है यह चुनाव?
बता दें कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है. यह नगर निगम 4 जिलों में है, जिनमें हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडचल-मलकजगिरी और संगारेड्डी आते हैं. इस पूरे इलाके में 24 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं और तेलंगाना की 5 लोकससभा सीटें भी आती हैं. यही वजह है कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में केसीआर से लेकर बीजेपी, कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी तक ने ताकत झोंक दी है.
बीजेपी को जहां दुबाका उपचुनाव से मिला हौसला वहीं ओवैसी की पार्टी को बिहार चुनाव से हौसला मिला जो अब हैदराबाद में जम कर दिखाई दे रहा है. क्योंकि दुबाका सीट पर केसीआर की पार्टी का कब्जा था ऐसे में बीजेपी ने केसीआर के मजबूत गढ़ में जीत दर्ज कर उनकी नींद ज़रूर उड़ा दी है. हैदराबाद में जाफरानी चाय मशहूर है जिस पर केसर का तड़का लगता है, ऐसे में सवाल यहीं कि हैदराबाद शहर में केसरिया पार्टी अपना तड़का लगाने में कितनी कारगर साबित होती है.
बीजेपी ने सभी 150 सीटों पर उतारे उम्मीदवार
हैदराबाद निकाय चुनाव में बीजेपी ने सभी 150 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर इसे रोचक बना दिया है. जिस तरह से हैदराबाद की बिरयानी के बिना इस शहर का ज़िक्र अधूरा है उसी तर्ज पर यह रोचकता हर किसी के ज़ुबान पर है कि इस बार की बिरयानी आखिर किस ओर पक रही है.
बता दें कि 2016 के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में टीआरएस ने 150 वार्डों में से 99 वार्ड में जीत दर्ज की थी, जबकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 44 वार्ड जीते थे.
वहीं बीजेपी महज तीन नगर निगम वार्ड में जीत दर्ज कर सकी थी और कांग्रेस को सिर्फ दो वार्डों में ही जीत मिली थी. इस तरह से ग्रेटर हैदराबाद और पुराने हैदराबाद के निगम पर केसीआर और ओवैसी की पार्टी का कब्जा रहा है.
बीजेपी ने उस समय महज तीन सीटें जीती थी जब पार्टी के सात विधायक थे. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने हैदराबाद में छह सीटें खो दीं महज एक सीट बचा पाई थी. बीजेपी के राजा सिंह ने जीतकर पार्टी की नाक बचा ली थी.
बीजेपी लगा रही पूरा जोर
हालांकि एक साल के बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने तेलंगाना की चार सीटें आदिलाबाद, करीमनगर, निज़ामाबाद और सिकंदराबाद में जीत हासिल की. ऐसे में अब उसकी नजर ओवैसी के दुर्ग हैदराबाद इलाके में जीत का परचम फहराने का है. इसीलिए बीजेपी यहां किसी तरह का कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. यही कारण है कि बीजेपी लगातार एआईएमआईएम को जिन्ना, रोहिंग्या जैसे मुद्दों पर खेलकर अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश में जुटी हुई है.
दक्षिण भारत में बीजेपी का आधार अब तक कर्नाटक के अलावा कहीं नहीं रहा. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में बीजेपी की ज्यादा मौजूदगी नहीं है. यहां क्षेत्रीय दलों की पकड़ मजबूत है. वहीं राज्यसभा में जब से बीजेपी की निर्भरता केसीआर से हटी तब से लगातार बीजेपी टीआरएस पर आक्रामक रही है.
बीजेपी और एआईएमआईएम के बीच चल रहा है यह ध्रुवीकरण अगर काम कर जाता है तो सीधे तौर पर इसका नुकसान सबसे ज्यादा टीआरएस पार्टी को होगा. बीजेपी यहां गैन करेगी और सबसे ज्यादा नुकसान टीआरएस को उठाना पड़ सकता है.
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