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Ghulam Nabi Azad Letter Full Text: गुलाम नबी आजाद ने 5 पन्नों में समेटा कांग्रेस में 52 साल का सफर, पढ़ें पूरी चिट्ठी

Ghulam Nabi Azad Resignation Letter: 'निकले बहुत मगर फिर भी कम निकले' कांग्रेस के अनुभवी नेता गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की चिट्ठी तो यही बयां कर रही है. उनके कांग्रेस छोड़ने का पूरा दर्द यहां पढ़िए.

Ghulam Nabi Azad Resignation Letter: कांग्रेस पार्टी (Congress Party) से इस्तीफा दे चुके गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के दर्द की शायद हम थाह भी न ले पाएं. 52 साल कांग्रेस के साथ चोली-दामन सा साथ निभाने वाले आजाद का ये दर्द उनके पांच पन्नों के इस्तीफे (Resignation Letter) ने बयां कर डाला है. इस चिट्ठी में उन्होंने 1970 से कांग्रेस में आने से लेकर संजय गांधी, राजीव गांधी से लेकर इंदिरा गांधी के साथ बिताए पलों का हवाला दिया और अपनी वफादारी का बार-बार वास्ता देकर कांग्रेस छोड़ने की अपनी मजबूरी जाहिर की. 

गुलाम नबी आजाद का पूरी चिट्ठी

माननीय कांग्रेस अध्यक्षा, मैं 1970 के दशक के मध्य में जम्मू और कश्मीर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुआ जब पार्टी के इतिहास को देखते हुए उसके साथ जुड़ना भी अपमानजनक माना जाता था. राज्य में 8 अगस्त 1953 शेख मोहम्मद अब्दुल्ला (Sheikh Mohammad Abdullah) की गिरफ्तारी के बाद से राजनीतिक पतन का सबसे बुरा दौर रहा. इतना सब होते हुए भी, मैं अपने छात्र जीवन से ही महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और हमारे आजादी की जंग के अन्य अहम अग्रणी नेताओं के आदर्शों से प्रेरित रहा. 

बाद में स्वर्गीय श्री संजय गांधी के निजी आग्रह पर मैं साल 1975-76 में जम्‍मू-कश्‍मीर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष की जिम्‍मेदारी निभाने के लिए मान गया. कश्मीर विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने बाद मैं पहले से ही 1973-1975 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ब्लॉक जनरल सेक्रेटरी के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा था. साल 1977 के दौरान मैंने स्वर्गीय संजय गांधी के नेतृत्व में भारतीय युवा कांग्रेस (IYC) के महासचिव के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाई. इस दौरान हम हजारों युवा कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ एक से दूसरी जेल गए.  

मेरा तिहाड़ जेल में रहने का सबसे लंबा वक्त 20 दिसंबर 1978 से लेकर जनवरी 1979 के आखिर तक रहा था. तब मैंने श्रीमती इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में दिल्ली की जामा मस्जिद से संसद भवन तक निकाली गई रैली का नेतृत्व किया था. हमने जनता पार्टी की व्यवस्था का विरोध किया और जनवरी 1978 में स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा स्थापित पार्टी के पुनरुद्धार और कायाकल्प के लिए मार्ग प्रशस्त किया.

तीन साल के भीतर उस हौसले से भरे संघर्ष का नतीजा ये हुआ कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1980 में सत्ता में वापसी की. 1980 में यूथ आइकन (संजय गांधी) की दुखद मृत्यु के बाद, मैंने आईवाईसी (IYC) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला. 

23 जून 1981 को स्वर्गीय श्री संजय गांधी की प्रथम पुण्यतिथि पर अध्यक्ष के तौर पर मुझे आपके पति स्वर्गीय श्री राजीव गांधी को भारतीय युवा कांग्रेस में राष्ट्रीय परिषद के सदस्य के रूप में शामिल करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. बाद में स्वर्गीय श्री राजीव गांधी ने मेरी अध्यक्षता में उसी वर्ष के 29 और 30 दिसंबर (1981) को फिर से बैंगलोर में आयोजित आईवाईसी के एक विशेष सत्र में नेतृत्व संभाला.

मुझे 1982 से लेकर 2014 तक केंद्रीय मंत्री के तौर पर स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी की, स्वर्गीय श्री राजीव गांधी, स्वर्गीय श्री पीवी नरसिम्हा राव और डॉ मनमोहन सिंह की सरकार में सेवा करने का सम्मान मिला है. मुझे 1980 के दशक के मध्य से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्येक अध्यक्ष के साथ (AICC) के महासचिव के तौर पर सेवा करने का मौका भी मिला है.

मैं आपके दिवंगत पति और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में मई 1991 में उनकी दुखद हत्या तक कांग्रेस संसदीय बोर्ड का सदस्य था और बाद में श्री पी.वी. नरसिम्हा राव के साथ तब-तक, जब -तक कि बाद में अक्टूबर 1992 में कांग्रेस संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन न करने का फैसला लिया गया. 

लगभग चार दशकों तक निर्वाचित और मनोनीत दोनों हैसियतों से मैं लगातार कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य भी रहा हूं. बीते पैंतीस वर्षों में किसी न किसी समय देश में हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के एआईसीसी (AICC) के प्रभारी महासचिव के तौर पर रहा हूं. यह बताते हुए खुशी हो रही है कि आईएनसी (INC) ने उन 90 फीसदी राज्यों में जीत हासिल की, जिनका मैं समय-समय पर प्रभारी रहा था.

इन सभी वर्षों की निस्वार्थ सेवा का वर्णन केवल इस महान संस्था के साथ जुड़ाव से अपने लंबे जीवन को रेखांकित (जांचने) करने के लिए कर रहा हूं. जहां मैंने हाल ही में राज्यसभा में 7 साल तक विपक्ष के नेता के तौर पर भी काम किया है. मैंने अपनी सेहत और परिवार की कीमत पर अपनी वयस्क जिंदगी का हर काम का पल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सेवा में लगा दिया.

निस्संदेह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर आपने  यूपीए-1 और यूपीए-2 दोनों सरकार के गठन में अहम और खरी भूमिका निभाई.हालांकि, इस कामयाबी की एक अहम वजह यह थी कि अध्यक्ष के रूप में आपने वरिष्ठ नेताओं के फैसलों पर भरोसा करने और उन्हें शक्तियां सौंपना के अलावा उनकी बुद्धिमतापूर्ण सलाह पर ध्यान दिया. 

हालांकि बदकिस्मती से श्री राहुल गांधी के राजनीति में प्रवेश के बाद और खास तौर पर जनवरी, 2013 के बाद जब आपके द्वारा उन्हें पार्टी के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था. संपूर्ण सलाहकार तंत्र जो पहले से मौजूद था, उसे उनके द्वारा ध्वस्त कर दिया गया. सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया और नई मंडली अनुभवहीन चापलूसों ने पार्टी के मामलों को चलाना शुरू कर दिया.

इस अपरिपक्वता के सबसे स्पष्ट उदाहरणों में से श्री राहुल गांधी द्वारा मीडिया की पूरी चकाचौंध में एक सरकारी अध्यादेश को फाड़ना था. यह अध्यादेश कांग्रेस कोर ग्रुप में शामिल किया गया था और बाद में भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा सर्वसम्मति से अनुमोदित होने के साथ ही  भारत के राष्ट्रपति द्वारा भी विधिवत अनुमोदित किया गया था.

उनके इस 'बचकाने' व्यवहार ने पूरी तरह से प्रधानमंत्री और भारत सरकार के अधिकार को चुनौती दी,उसे बर्बाद किया और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाई. इस इकलौते काम ने साल 2014 में यूपीए सरकार की हार में किसी भी और चीज से सबसे बड़ा योगदान दिया जब पार्टी  दक्षिणपंथी ताकतों और कुछ बेईमान कॉर्पोरेट हितों  के संयोजन से बदनामी और आक्षेप के अभियान झेल रही थी. 

आपको याद होगा कि श्री सीता राम केसरी को गद्दी से उतारते हुए आपके द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने के बाद कांग्रेस नेतृत्व की 1998 के अक्टूबर में पचमढ़ी में विचार मंथन के लिए बैठक हुई थी. इसके बाद एक और ऐसा सत्र 2003 में शिमला में और फिर जनवरी 2013 में जयपुर में हुआ था. मुझे इन सभी तीन अवसरों पर संगठनात्मक मामलों पर कार्यकारी समूह की अध्यक्षता करने का विशेषाधिकार मिला था. 

हालांकि अफसोस की बात है कि इन सत्रों की कोई भी सिफारिश कभी भी ठीक तरीके से लागू नहीं की गई. वास्तव में 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी में नई जान फूंकने के लिए जनवरी 2013 में जयपुर में मैंने समिति के अन्य सदस्यों की सहायता एक विस्तृत कार्य योजना 10 का  प्रस्ताव रखा था. यह एक्शन प्लान कांग्रेस वर्किंग कमेटी द्वारा विधिवत अनुमोदित किया गया.

साल 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले इन सिफारिशों को एक समय सीमा में लागू किया जाना चाहिए था. बदकिस्मती से ये सिफारिशें पिछले 9 वर्षों से एआईसीसी के स्टोर रूम  में पड़ी हैं. इन सिफारिशों को लागू करने के लिए आप और तत्कालीन उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी दोनों को 2013 से  निजी तौर पर मेरे बार-बार याद दिलाने के बावजूद ये लागू नहीं की गईं. हालांकि उन पर गंभीरता से विचार करने की भी कोई कोशिश नहीं की गई. 

2014 से आपके नेतृत्व में और बाद में श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दो लोकसभा चुनाव अपमानजनक तरीके से हार चुकी है. साल 2014 - 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से पार्टी को 39 में हार का मुंह देखना पड़ा है. केवल चार राज्यों के चुनाव में पार्टी जीती है और छह बार गठबंधन की स्थिति में आने में सफल रही. दुर्भाग्य से आज, कांग्रेस केवल दो राज्यों में शासन कर रही है और बहुत ही हाशिए पर है और दो अन्य राज्यों में मामूली गठबंधन सहयोगी है.

2019 के चुनाव के बाद से पार्टी की स्थिति और खराब हुई है. बाद में श्री राहुल गांधी ने आवेश में पद छोड़ दिया और विस्तारित कार्यसमिति की बैठक में पार्टी के लिए अपने जी-जान देने वाले पार्टी के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों का अपमान होने से पहले आपने अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किया.जिसे आप आज भी पिछले तीन साल से संभाले हुए हैं.

इससे भी बदतर 'रिमोट कंट्रोल मॉडल' जिसने यूपीए सरकार की संस्थागत अखंडता को ध्वस्त कर दिया अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लागू हो गया. जबकि आप पार्टी में सिर्फ एक नाममात्र की व्यक्ति रह गईं हैं, सभी महत्वपूर्ण फैसले श्री राहुल गांधी और उससे भी बदतर उनके सुरक्षा गार्ड और पीए द्वारा लिए जा रहे थे.

आज एआईसीसी चलाने वाली मंडली के निर्देश पर कायम लोगों ने मेरा नकली अंतिम संस्कार का जम्मू में जुलूस निकाला गया. यह अनुशासनहीनता करने वाले थे, लेकिन एसीसी (ACC) के महासचिवों और श्री राहुल गांधी ने निजी तौर पर दिल्ली में इनका स्वागत किया गया. इसके बाद उसी मंडली ने अपने गुंडों को एक पूर्व मंत्रिस्तरीय सहयोगी श्री कपिल सिब्बल के घर पर हमला करने के लिए उकसाया. जो संयोग से आपका बचाव कर रहे थे और आपको और आपके परिजनों को कानून की अदालतों में चूक और कमीशन के कथित हमलों से बचा रहे थे. चूक और कमीशन से मतलब उन चीजों से हैं जिन्हें करने में आप असफल रहे हैं,और या वो चीजें आपने की हैं.

आपको पत्र लिखने वाले 23 वरिष्ठ नेताओं ने केवल एक ही अपराध किया कि उन्होंने पार्टी की चिंता और हित में आपको पार्टी की कमजोरियों की वजहों और इसके दूर करने के उपाय दोनों के बारे में बताया. दुर्भाग्य से, उन विचारों को बोर्ड ने रचनात्मक और सहयोगात्मक तरीके से लेने के बजाय विस्तारित सीडब्ल्यू की विशेष रूप से बुलाई गई बैठक में हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया, हमें अपमानित किया, हमें अपशब्द कहे गए और शर्मिंदा किया गया.  

दुर्भाग्य से, कांग्रेस पार्टी की स्थिति इस हद तक पहुंच गई है जहां से वापसी नहीं हो सकती है. अब "प्रॉक्सी" को पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए तैयार किया जा रहा है. यह प्रयोग विफल होने के लिए अभिशप्त है क्योंकि पार्टी इतनी बड़े स्तर पर नष्ट हो गई है कि असाध्य स्थिति तक पहुंच गई है. इसके अलावा पार्टी के लिए ‘चुना हुआ' शख्स एक तार पर नाचती कठपुतली से अधिक कुछ नहीं होगा. दुर्भाग्य से, राष्ट्रीय स्तर पर हमने बीजेपी की छोड़ी मौजूदा राजनीतिक जगह को स्वीकार कर लिया है और राज्य स्तर पर क्षेत्रीय दलों की हमारे लिए छोड़ी जगह में हम सहज हैं.  यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पिछले 8 वर्षों में नेतृत्व ने पार्टी की कमान एक गैर-गंभीर व्यक्ति को थोपने की कोशिश की है. पूरी संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया एक दिखावा और ढोंग है. 

देश में कहीं भी किसी भी स्तर पर संगठन के स्तर पर चुनाव नहीं हुए हैं. 24 अकबर रोड में एसीसी साइट चलाने वाली मंडली द्वारा तैयार की गई सूचियों पर हस्ताक्षर करने के लिए सीसी के चुने हुए लेफ्टिनेंटों को मजबूर किया गया है. किसी बूथ, ब्लॉक, जिले या राज्य में किसी भी जगह पर न तो मतदाता सूची प्रकाशित की गई, न नामांकन पत्र आमंत्रित किए गए, न जांच की गई, न मतदान केंद्रों की स्थापना की गई और न ही चुनाव हुए. एआईसी नेतृत्व पूरी तरह से पार्टी के साथ बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार है. पार्टी अतीत के  खंडहर होते जा रहे इतिहास पर पकड़ बनाए रखें जो कि कभी एक राष्ट्रीय आंदोलन था, जिसने भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और आजादी दिलाई. क्या भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत की आजादी के 75 वें वर्ष में इसके लायक है? यह एक ऐसा सवाल है जो एनआईसीसी नेतृत्व को खुद से पूछना चाहिए.

आप जानती हैं कि स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के वक्त से आपके परिवार से स्वर्गीय श्री संजय गांधी से लेकर आपके दिवंगत पति से मेरे बेहद करीबी व्यक्तिगत संबंध रहे थे. उस भावना में मैं आपकी निजी आजमाइशों पर और पीड़ा के लिए भी निजी तौर पर बेहद इज्जत करता हूं जो हमेशा जारी रहेगी.

मेरे कुछ अन्य सहयोगी और मैं अब उन आदर्शों को कायम रखने के लिए दृढ़ रहेंगे जिनके लिए हमने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की औपचारिक तह के बाहर अपना पूरा वयस्क जीवन समर्पित कर दिया है. ऊपर वर्णित सभी कारणों से, विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत के लिए जो सही है उसके लिए लड़ने के लिए एसीसी को चलाने वाली मंडली के संरक्षण में इच्छाशक्ति और क्षमता दोनों खो दी है.

वास्तव में, भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से पहले नेतृत्व को देश में एक कांग्रेस जोड़ो एक्सरसाइज करनी चाहिए थी. इसलिए बड़े खेद और अत्यंत भावुक हृदय के साथ मैंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपना आधा शताब्दी पुराना नाता तोड़ने का फैसला किया है और इसके द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता सहित अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है.

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