नई दिल्ली: खादी भारत के लिए सिर्फ एक किस्म का कपड़ा नहीं है, बल्कि देश की पहचान और इसके गौरवशाली इतिहास का हिस्सा है. आजादी के बाद भी खादी की अहमियत कम नहीं हुई. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘स्वदेशी अपनाओ’ नारे के तहत खादी हिंदुस्तानियों के तन पर उनके मन की आवाज़ बन गई और बापू इसके ब्रांड एम्बेस्डर.


वक़्त की दौड़ में खादी का रंग फीका पड़ा है, लेकिन इसके गौरवशाली इतिहास ने इसे अब भी केंद्र में बनाए रखा है. इसलिए जब खादी ग्राम उद्योग ने अपने सालाना कैंलेडर के कवर फोटो पर गांधी की जगह मोदी को फिट किया तो बवाल मच गया. खादी ग्राम उद्योग के कैलेंडर में इस बार चरखे पर पीएम मोदी की तस्वीर है.


बापू आउट और मोदी इन पर सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक टिप्पणनियां भी आईं. सबसे मुखर तौर पर दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने मोदी पर निशाना साधा. दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ट्विटर पर लिखा, ”गांधी बनने के लिए कई जन्मों की तपस्या करनी पड़ती है. चरख़ा कातने की एक्टिंग करने से कोई गांधी नहीं बन जाता, बल्कि उपहास का पात्र बनता है.”








ट्विटर भी कई लोगों ने मोदी को निशाने पर लिया, जिनमें प्रख्यात पत्रकार भी शामिल हैं.

 चरखे के बाद प्रधानमंत्री का अगला पोज़ क्या होगा - (खानदानी नाम से सज्जित) लंगोट?



कुछ आम लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस तरह से दीं.


 






 



मोदी टीम का बचाव


लेकिन अब मोदी के बचाव में उनकी टीम भी आगे आ गई है. उद्योग के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि ऐसा पहले भी होता रहा है. उनका तर्क है कि मोदी खादी ग्राम उद्योग के ब्रांड एंबेस्डर हैं और खादी के प्रति उन्होंने दुनिया भर के लोगों का ध्यान दिलाया है. विनय कुमार का कहना है कि 1996, 2000 ,2002 , 2005 ,2011 ,2013 aur 2015 में कवर फोटो में गांधीजी नहीं थे.


मोदी के बचाव में उनके मंत्री गिरिराज सिंह भी कूद पड़े हैं. उन्होने भी पुरानी परंपराओं का पूरा लेखा जोखा पेश करते हुए कहा कि मोदी पर जानबुझकर हमला किया जा रहा है.


उन्होंने अपने फेसकुब वॉल पर लिखा, ''KVIC की डायरी और कैलंडर पर प्रधानमंत्री मोदी के फ़ोटो का जो विवाद खड़ा किया जा रहा है वह अनावश्यक एवं बेबुनियाद है.''




तुषार गांधी का सवाल

इसके साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के परपौत्र तुषार गांधी ने भी खादी ग्राम उद्योग के कैलेंडर से गांधी जी की तस्वीर गायब होने पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि गांधी जी का चरखा गरीब लोगों की कमाई का स्त्रोत था और यह उत्पादन का जरिया था. लेकिन अब यह तस्वीर खिंचवाने का साधन बन गया है.