गोरखपुर: 2600 दुर्लभ पां‍डुलिपियों और ग्रंथों को गीता प्रेस सहेज रहा है. इसमें ताड़पत्र पर बांग्‍ला भाषा में लिखी महाभारत खास है. इसके अलावा हाथ से बने कागज पर लिखी गई नीलकंठी टीका समेत 2600 से अधिक पांडुलिपियों को दीमक से बचाने के लिए उनका रासायनिक संरक्षण किया जा रहा है.


इसके लिए 15 लाख रुपए खर्च कर 91 एसिड फ्री आलमारियों में इन पांडुलिपियों को एसिड फ्री कपड़े और कागज में सहेज कर रखा जा रहा है. गोरखपुर का गीता प्रेस अनमोल पांडुलिपियों की उम्र बढ़ाने में लग गया है. गीताप्रेस के पास गीता, श्रीरामचरितमानस, महाभारत, वेद- वेदांग समेत सैकड़ों दुर्लभ पांडुलिपियां हैं. इनमें से कुछ का रासायनिक संरक्षण हो चुका है, जबकि शेष संरक्षित की जा रही है.


पाण्‍डुलिपियों को संरक्षित करने के लिए केमिकल के संपर्क में लाया जाता है


गीता प्रेस के पुस्‍तकालय के इंचार्ज हरिराम त्रिपाठी बताते हैं कि पाण्‍डुलिपियों को संरक्षित करने के लिए फ्यूमिगेशन विधि से केमिकल के संपर्क में लाया जाता है. फिर एसिड फ्री कागज में लपेटकर उन्हें एसिड फ्री लाल कपड़े में बांधा जा रहा है. इसके बाद एसिड फ्री आलमारी में रखा जा रहा है. इस विधि से उपचार के बाद आलमारी और पांडुलिपि, किसी का भी क्षरण नहीं होगा.


गीताप्रेस के पास सर्वाधिक महत्वपूर्ण ताड़ के पत्ते पर लिखी महाभारत, स्वर्णाक्षर और फूल-पत्तियों के रस से चित्रित गीता की पांडुलिपि है. महाभारत का पांडुलिपि चार अंगुल चौड़े और दो मीटर लंबे ताड़पत्र पर बांग्ला भाषा में है. इन दोनों पांडुलिपियों को उपचार के बाद साखू की प्लेट के बीच सुरक्षित रखा गया है. 1950 में प्रकाशित कल्याण के ‘हिंदू संस्कृति अंक’ में तत्कालीन संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार 'भाईजी’ ने पाठकों से दुर्लभ पांडुलिपियां गीताप्रेस को देने की अपील की. बड़ी संख्या में लोगों ने गीताप्रेस को पांडुलिपियां भेजीं. इन्हें लाल कपड़े में बांधकर रखा गया. लेकिन कुछ में दीमक लगने के बाद रासायनिक उपचार का निर्णय लिया गया.



माना जाता है कि कागज के आविष्कार से पहले ताड़पत्र पर लिखी गई थी महाभारत 


गी‍ता प्रेस के उत्‍पाद प्रबंधक लालमणि तिवारी बताते हैं कि ग्रामोद्योग विभाग लखनऊ से एसिड फ्री कागज और बोर्ड मंगवाया गया. पुस्तकालय के इंचार्ज हरिराम त्रिपाठी को लखनऊ भेजकर प्रशिक्षण दिलवाया गया. गीताप्रेस ने किसी भी पांडुलिपि की कार्बन डेटिंग नहीं कराई है. लेकिन ताड़पत्र पर लिखी महाभारत को कागज का आविष्कार होने से पहले का माना जाता है. महाभारत की नीलकंठी टीका 300 वर्ष पुरानी बताई जा रही है. अन्य पांडुलिपियां करीब दो सौ पूर्व की हैं. वे कहते हैं कि ये दुर्लभ पांडुलिपियां हमारी थाती हैं. इन्हें बचाने के हर संभव प्रयास हो रहे हैं.


गोरखपुर का गीता प्रेस दुर्लभ पांडुलिपियों को सहेजने का काम कर रहा है. इन्‍हें 20 एसिड फ्री आलमारियों में एसिड फ्री कपड़े और कागजम में लपेट कर रखा जा रहा है. इसके अलावा अन्‍य 71 आलमारियों में संदर्भित ग्रंथ हैं. हस्तनिर्मित कागज पर लिखी महाभारत की नीलकंठी टीका, बृहदारण्यक उपनिषद, ऐतरेय उपनिषद, कठोपनिषद, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवत की श्रीधरी टीका, श्रीमद्भागवत महापुराण, शिव पुराण, देवी पुराण इनमें खास हैं.


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