Global Warming In India : अंतरिक्ष में अनगिनत सितारों और ग्रहों के बीच एक मात्र धरती ही हमारा घर है. यहां अनुकूल वायुमंडल और बर्दाश्त करने लायक तापमान की वजह से मानव सभ्यता फल-फूल रही है लेकिन अब धरती के लिए ग्लोबल वार्मिंग सबसे बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है. लगातार कार्बन उत्सर्जन और ग्रीनहाउस इफेक्ट की वजह से धरती के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी आने वाले समय में विकराल रूप ले सकती है.


एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सदी के अंत तक धरती का तापमान इस कदर बढ़ जाएगा कि मानव सभ्यता के लिए सर्वाइव करना मुश्किल होगा. सबसे अधिक खतरा भारत, पाकिस्तान और चीन जैसी घनी आबादी वाले देशों पर मंडरा रहा है. नए शोध में भविष्यवाणी की गई है कि सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लोबल वार्मिंग खतरनाक स्टेज पर पहुंचेगी.


कितना बढ़ सकता है तापमान


पेन स्टेट कॉलेज ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट, पर्ड्यू यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंसेज और पर्ड्यू इंस्टीट्यूट फॉर ए सस्टेनेबल फ्यूचर के संयुक्त अनुसंधान की रिपोर्ट  "प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज" में प्रकाशित हुई है. इसमें दावा किया गया है कि धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ रहा है.  मानव शरीर की बनावट के मुताबिक एक सामान्य तापमान और आद्रता ही मानव को जिंदा रख सकती है. अगर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती रही तो हीट स्ट्रोक या दिल का दौरा पड़ने की समस्याओं में बेतहाशा बढ़ोतरी शुरु हो जाएगी.


ग्लोबल वार्मिंग का सबसे अधिक असर भारत, चीन, पाकिस्तान पर


अध्ययन से संकेत मिलता है कि यदि वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ जाता है तो पाकिस्तान और भारत के 2.2 अरब निवासी, पूर्वी चीन के एक अरब लोग और उप-सहारा अफ्रीका के 800 मिलियन लोगों के लिए यह सहनशीलता की सीमा से परे तपती भट्टी में रहने जैसा एहसास होगा. 


जो शहर इस गर्मी की लहर का खामियाजा भुगतेंगे उनमें दिल्ली, कोलकाता, शंघाई, मुल्तान, नानजिंग और वुहान शामिल होंगे. ये शहर निम्न और मध्यम आय वाले देशों के हैं, इसलिए लोगों के पास एयर-कंडीशनर या अपने शरीर को ठंडा करने के अन्य प्रभावी तरीकों तक पहुंच मुश्किल है. 


यदि तापमान 3 डिग्री सेल्सियस ऊपर जाता है तो बढ़ी हुई गर्मी का स्तर पूर्वी समुद्री तट और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य भाग फ्लोरिडा, न्यूयॉर्क, शिकागो और ह्यूस्टन तक‌ को भी प्रभावित कर सकता है. शोध में पाया गया कि दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी अत्यधिक गर्मी का अनुभव होगा. 


मध्यम आय वाले देशों पर क्यों होगा सबसे अधिक असर


शोध पत्र के सह-लेखक और पर्ड्यू विश्वविद्यालय में पृथ्वी, वायुमंडलीय और ग्रह विज्ञान के प्रोफेसर मैथ्यू ह्यूबर ने कहा, "सबसे खराब गर्मी का कहर उन क्षेत्रों में होगा जो समृद्ध नहीं हैं और जहां आने वाले दशकों में तेजी से जनसंख्या वृद्धि की उम्मीद है." रिसर्च में कहा गया है कि यह सच है कि मध्यम आय वाले देश अमीर देशों की तुलना में बहुत कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करते हैं लेकिन ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर मध्यम आया वाले देशों की ही आबादी पर होगा. यहां अरबों गरीब बूढ़े और बीमार लोग जान गंवा सकते हैं.


क्या है बचाव का उपाय


रिसर्च में शोधकर्ताओं ने इस बात का सुझाव दिया है कि तापमान को बढ़ने से रोकने के ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा. इसके लिए विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन जलाने से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को कम किया जाना चाहिए. अगर सकारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो निश्चित तौर पर लगातार बढ़ रहा तापमान धरती पर मानव आबादी के लिए अभिशाप साबित हो सकता है.


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