Goat Ear Cartilage: डेंगू की बीमारी में बकरी के दूध का इंसान पहले से ही मुरीद है,अब बकरी के कान का कार्टिलेज (Cartilage) यानि उपास्थि (नरम या लचीली हड्डी) भी इंसान के काम आएगी. पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजधानी कोलकता (Kolkata) के सरकारी अस्पताल और यूनिवर्सिटी की शोध टीम ने यह दावा किया है. इस टीम ने बकरी के कार्टिलेज का इस्तेमाल कर लगभग 25 लोगों की बाहरी शारीरिक विकृति ठीक करने में सफलता पाई है. गौरतलब है कि इस शोध से प्लास्टिक सर्जरी के सस्ते विकल्प का रास्ता निकल आया है. इससे इंसानों में नाक-कान, मुंह और बाहरी शरीर में  कटे-फटे को ठीक करने में इस्तेमाल किया जा सकेगा. 


कहां हुआ बकरी के कान पर शोध


कोलकता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज ( R.G.Kar Medical College) और पश्चिम बंगाल की यूनिवर्सिटी ऑफ एनिमल फिशरी साइंसेज के वैज्ञानिकों ने माइक्रोटिया (Microtia) के इलाज के लिए बकरी के कान के कार्टिलेज (Cartilage) का इस्तेमाल किया. माइक्रोटिया एक जन्मजात विकृति है जिसमें कान का बाहरी हिस्सा जन्म से ही विकसित नहीं होता है. इसके अलावा कटे-फटे होंठ और दुर्घटनाओं से होने वाली बाहरी शारीरिक विकृतियों के लिए भी बकरी के कान के कार्टिलेज इस्तेमाल किया. आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के हेड डॉ रूप नारायण भट्टाचार्य के मुताबिक माइक्रोटिया जैसी जन्मजात विकृति के लिए प्लास्टिक सर्जरी ही करनी पड़ती है. इसकी लागत बहुत अधिक होती है, लेकिन बकरी के कान के कार्टिलेज के इस्तेमाल से प्लास्टिक सर्जरी की लागत कम आएगी.


सफल हुआ परीक्षण


आरजी कर मेडिकल कॉलेज और पश्चिम बंगाल की यूनिवर्सिटी ऑफ एनिमल फिशरी साइंसेज के वैज्ञानिकों की टीम ने इस शोध का सफल परीक्षण भी पूरा कर लिया है. इसका परीक्षण पहले जानवरों पर किया गया. इसके बाद नाक, कान संबंधी समस्या से जूझ रहे लगभग 25 लोगों की सहमति लेकर उन पर यह परीक्षण किया गया और ये सफल रहा. मेडिकल कॉलेज अस्पताल के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के हेड डॉ. रूप नारायण भट्टाचार्या का कहना है कि इससे माइक्रोटिया का इलाज करने में मदद मिलेगी. 


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