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तीन तलाक दिया तो अब जाना पड़ेगा जेल, मोदी कैबिनेट ने अध्यादेश पर लगाई मुहर

तीन तलाक मामला: यहां सरकार के सामने ये मुश्किल है कि यह अध्यादेश सिर्फ 6 महीने के लिए ही मान्य होता है. 6 महीने के भीतर इसे संसद से पास करवाना पड़ता है. यानी एक बार फिर सरकार के सामने इस बिल को लोकसभा और राज्यसभा से पास करवाने की चुनौती होगी.

नई दिल्ली: मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से आजादी दिलाने के लिए मोदी सरकार ने बड़ा फैसला किया है. आज हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में तीन तलाक पर अध्यादेश को मंजूरी दे दी गई है. तीन तलाक विधेयक लोकसभा से पारित हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में लंबित है. राष्ट्रपति की मुहर लगते ही तीन तलाक पर कानून पास हो जाएगा. संसद से बिल पारित होने से पहले 6 महीने तक अध्यादेश से काम चलेगा.

बता दें कि मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में आखिरी दिन जो बिल आया था उसे ही अध्यादेश के ज़रिए कानून बनाने को मंजूरी मिली गई है. सरकार जिस बिल को लोकसभा में लाई थी उसे Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2017 नाम दिया गया. यह बिल 28 दिसबंर 2017 को लकसभा से पास हुआ. फिलहाल बिल राज्यसभा में अटका है.

सरकार का कांग्रेस पर हमला, कांग्रेस ने भी किया पलटवार कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए कहा, ''कैबिनेट ने आज तीन तलाक पर अध्यादेश को मंजूरी दे दी. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ आरोप लगा रहा हूं कि कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता एक प्रतिष्ठित महिला नेता, इसके बाद भी अभी तक शुद्ध वोटबैंक की राजनीति के लिए तीन तालक जैसे  बर्बर अमानवीय कानून को कत्म करने की इजाजत नहीं दी.'' कानून मंत्री ने बताया कि जनवरी 2017 से 13 सितम्बर 2018 तक तीन तलाक़ की 430 घटनाएं सामने आई हैं. अलग अलग राज्यों की बात करें तो असम में 11, बिहार में 19, दिल्ली में 1, झारखंड में 35, मध्यप्रदेश 37, महाराष्ट्र 27, तेलंगाना 10 और सबसे ज्यादा 246 मामले उत्तर प्रदेश से सामने आए.

कैबिनेट के फैसले पर कांग्रेस ने पलटवार किया है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ''मोदी सरकार इसे मुस्लिमों के लिए न्याय का मुद्दा बनाने के बजाए राजनीतिक मुद्दा बना रही है.''

अब आगे क्या होगा? कोई कानून बनाने के दो तरीके होते हैं, या तो उसे बिल के जरिए लोकसभा और राज्यसभा से पास करवाया जाए या फिर उस अध्यादेश लाया जाए. अध्यादेश पर राष्ट्रपति की मुहर लगते ही ये कानून बन जाता है. लेकिन यहां सरकार के सामने ये मुश्किल है कि यह अध्यादेश सिर्फ 6 महीने के लिए ही मान्य होता है. 6 महीने के भीतर इसे संसद से पास करवाना पड़ता है. यानी एक बार फिर सरकार के सामने इस बिल को लोकसभा और राज्यसभा से पास करवाने की चुनौती होगी. संविधान के आर्टिकल 123 के मुताबिक जब संसद सत्र नहीं चल रहा हो तो केंद्र के आग्रह पर राष्ट्रपति  अध्यादेश जारी कर सकते हैं.

9 अगस्त को मूल कानून में किए गए थे तीन संशोधन पहला संशोधन: अगर कोई पति अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक देता है और रिश्ता पूरी तरह से खत्म कर लेता है तो उस सूरत में एफआईआर सिर्फ पीड़ित पत्नी, उसके खूनी और करीबी रिश्तेदार की तरफ से ही की जा सकती है. पहले ये था कि तीन तलाक देने के बाद किसी की तरफ से भी एफआईआर दर्ज हो सकती थी.

दसूरा संशोधन: पति-पत्नी तलाक के बाद अपने झगड़े को खत्म करने के लिए सुलह-समझौता पर राजी हो जाते हैं तो पत्नी की बात सुनने के बाद मजिस्ट्रेट शर्तों के साथ दोनों के बीच सुलह-समझौता पर मुहर लगा सकता है और इसके साथ ही पति को जमानत पर रिहा कर सकता है. पहले सुलह समझौता और जमानत मुमकिन नहीं था.

तीसरा संशोधन: तलाक देने के बाद पति को तीन सालों के लिए जेल की सजा होगी और गैर जमानती सजा होगी, लेकिन मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अख्तियार होगा. पहले मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार नहीं था.

प्रधानमंत्री ने लाल किले से किया था जिक्र 15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में भी मुस्लिम महिलाओं के न्याय का जिक्र किया था. प्रधानमंत्री ने कहा था कि तीन तलाक प्रथा मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय है. तीन तलाक ने बहुत सी महिलाओं का जीवन बर्बाद कर दिया है और बहुत सी महिलाएं अभी भी डर में जी रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने बताया था असंवैधानिक आपको बता दें कि 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तीन सलाक को गैरकानूनी और असंवैधिनिक करार दिया था. पांच जजों की बेंच में से तीन जजों ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस मामले पर कानून बनाने को कहा था. इस केस की सुनवाई करने वाले पांचों जज अलग-अलग समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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