प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण ने शुक्रवार को कहा कि न्यायाधीशों को बदनाम करने का एक नया चलन सरकार ने शुरू किया है. उन्होंने इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण'करार दिया. तीन-न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे एन.वी रमण ने कहा, 'आज कल ये नया ट्रेंड शुरू हुआ है. हम अदालत में भी देख रहे हैं.'
दरअसल, न्यायाधीश रमण की तरफ से इस तरफ का बयान तब आया जब न्यायमूर्ति मुरारी और हिमा कोहली की पीठ छत्तिसगढ़ हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रही थी. जानकारी के मुताबिक, इसमें पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के प्रधान सचिव अमन सिंह और पत्नी यास्मीन सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज प्राथमिकी को खारिज कर दिया गया था. बताया जा रहा है कि इस मामले को बीजेपी सरकार के बाहर होने और कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद खारिज किया गया है.
10 जनवरी को रद्द हुई प्राथमिकी
जानकारी के मुताबिक, राज्य पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने साल 2020, 25 फरवरी को उचित शर्मा की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की थी. उचित शर्मा ने अमन सिंह और उनकी पत्नी पर आय से अधिक संपत्ति की जांच की मांग की थी. वहीं, 28 फरवरी 2020 को हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में निर्देश दिया कि अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ कोई कठोर कदम ना उठाया जाए. वहीं, साल 2022, 10 जनवरी को हाई कोर्ट ने प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि, याचिकाकर्ता के लगाए गए सभी आरोप संभावनाओं पर आधारित हैं और किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा संभावना के तौर पर नहीं चलाया जा सकता है.
अपीलों को सुन सीजेआई ने परेशान होकर दिया बयान
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात को रेखांकित किया कि उचित शर्मा की शिकायत का मुख्यमंत्री ने समर्थन किया था इसलिए इसकी जांच होनी चाहिए. जिसके बाद साल 2019, 11 नवंबर को अमन सिंह के खिलाफ जांच शुरू हुई. वहीं, उचित शर्मा समेत राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में एससी के समक्ष चुनौती दी. वहीं, अपीलों को सुनते हुए सीजेआई परेशान हो उठे और उन्होंने इस तरह की टिप्पणी की.
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