मुंबई: महाराष्ट्र में नई सरकार को लेकर स्थिति अभी तक साफ नहीं हो पायी है. कल तक ऐसा लग रहा था कि 17 नवंबर को यानी बालासाहेब ठाकरे के स्मृति दिवस पर सरकार आ जाएगी लेकिन जोड़तोड़ के गठबंधन के सबसे बड़े नेता शरद पवार ने कह दिया है कि सरकार बनने में वक्त लगेगा. चूंकि शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस का मिलन आसान नहीं रहा है इसलिए पवार का इतना कहना भी कई सस्पेंस की नई शुरूआत है.


इस सब के बीज शिवसेना ने एक बार फिर अपने मुखपत्र सामना में संपादकीय के जरिए बीजेपी पर धावा बोला है. सामना में आज लिखा गया है कि 'घोड़ाबाजार' शुरू है. सामने में लिखा है, ''हम महाराष्ट्र के मालिक हैं और देश के बाप हैं, ऐसा किसी को लगता है तो वे इस मानसिकता से बाहर आएं. ये मानसिक अवस्था १०५ वालों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. ऐसी स्थिति ज्यादा समय रही तो मानसिक संतुलन बिगड़ जाएगा और पागलपन की ओर यात्रा शुरू हो जाएगी.''


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आगे लिखा है, ''एक तो नरेंद्र मोदी जैसे नेता के नाम पर उनका खेल शुरू है और इसमें मोदी का ही नाम खराब हो रहा है. महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग गया है और राष्ट्रपति शासन लगने के बाद १०५ वालों का आत्मविश्वास इस प्रकार झाग बनकर निकल रहा है. मानो मुंबई किनारे के अरब सागर की लहरें उछाल मार रही हों. पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने अपने विधायकों को बड़ी विनम्रता से कहा कि बिंदास रहो, राज्य में फिर से भाजपा की ही सरकार आ रही है.''


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घोड़ाबाजार यानी हॉर्स ट्रेडिंग का जिक्र करते हुए लिखा, ''राष्ट्रपति शासन की आड़ में घोड़ाबाजार लगाने का मंसूबा अब साफ हो गया है. स्वच्छ और पारदर्शी काम करने का वचन देनेवालों का यह झूठ है और ये बार-बार साबित हो रहा है. सत्ता या मुख्यमंत्री पद का अमरपट्टा लेकर कोई जन्म नहीं लेता. खुद को विश्वविजेता कहनेवाले नेपोलियन और सिकंदर जैसे योद्धा भी आए और गए. श्रीराम को भी राज्य छोड़ना पड़ा. औरंगजेब आखिर जमीन में गाड़ा गया. तो अजेय होने की लफ्फाजी क्यों?''


शिवसेना ने नितिन गडकरी के कल के बयान को गंभीरता से लिया है जिसमें गडकरी ने महाराष्ट्र की राजनीति को क्रिकेट मैच से जोड़ा था. नितिन गडकरी को लेकर सामना में लिखा, ''एक तरफ फडणवीस ‘राज्य में फिर से बीजेपी की ही सरकार!’ का दावा करते हैं और दूसरी तरफ नितिन गडकरी ने क्रिकेट का रबड़ी बॉल राजनीति में फेंक दिया है. गडकरी का क्रिकेट से संबंध नहीं है. संबंध है तो शरद पवार और क्रिकेट का है. अब अमित शाह के बेटे जय शाह भारतीय क्रिकेट बोर्ड के सचिव बन गए हैं इसलिए बीजेपी का क्रिकेट से अधिकृत संबंध जोड़ा गया है. आजकल क्रिकेट खेल कम और धंधा ज्यादा बन गया है और क्रिकेट के खेल में भी राजनीति की तरह ‘घोड़ाबाजार’ शुरू है.''


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