केंद्र सरकार ने बुधवार (13 नवंबर 2024) को कर्नाटक हाई कोर्ट को जानकारी दी कि उसने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह निजी कंपनियों को ब्रेस्ट मिल्क (स्तन से निकाला गया दूध) इकट्ठा करने, प्रसंस्करण करने और उसका व्यापार करने की इजाजत देने वाले लाइसेंस रद्द करे. यह आदेश एक जनहित याचिका के जवाब में आया है. ये याचिका मुनगौड़ा नाम के एक शख्स की ओर दायर की गई थी. इस याचिका में मल्टीनेशनल कंपनियों की ओर से ब्रेस्ट मिल्क के व्यापार से मुनाफा कमाने पर चिंता जाहिर की गई है.


केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिए कि वह ऐसे लाइसेंस रद्द करे, जो ब्रेस्ट मिल्क के संग्रह, प्रसंस्करण और बिक्री की इजाजत देते हैं. पहले आयुर्वेदिक प्रथाओं के तहत जारी किए गए कुछ लाइसेंस अब रद्द कर दिए गए हैं.


सुनवाई में केंद्र का पक्ष


कर्नाटक हाई कोर्ट में केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अरविंद कामत ने चीफ जस्टिस एन वी अंजारिया और जस्टिस के वी अरविंद की पीठ के सामने कहा कि केंद्र ने राज्य को निर्देश दिया है कि वह ऐसे सभी लाइसेंस निरस्त करे. कुछ कंपनियों ने आयुर्वेदिक मानकों के तहत इन लाइसेंसों को हासिल किया था. लेकिन अब केंद्र के हस्तक्षेप के बाद राज्य ने कुछ लाइसेंस रद्द कर दिए हैं. एक कंपनी ने अपने लाइसेंस रद्द किए जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी है.


4 दिसंबर को अगली सुनवाई


हाई कोर्ट की पीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई 4 दिसंबर को तय की है. अदालत ने मुनगौड़ा को निर्देश दिया है कि वह इस मामले में आयुष मंत्रालय को एक पक्षकार बनाए. मुनगौड़ा के वकील बी विश्वेश्वरैया ने अदालत में तर्क दिया कि पैकेज्ड ब्रेस्ट मिल्क के अत्यधिक ऊंचे दाम हैं. उन्होंने उदाहरण दिया कि 50 मिलीलीटर की बोतल 1,239 रुपये में बेची जा रही है, जबकि 10 ग्राम का पाउडर पैकेट 313 रुपये में उपलब्ध है. केंद्र सरकार का तर्क है कि वर्तमान नियमों के तहत स्तन दूध का व्यापारिक इस्तेमाल की इजाजत नहीं है.


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