रांची: झारखंड जब सन 2000 में बिहार से अलग होकर एक नए राज्य के तौर पर स्थापित हुआ था तब ये माना जा रहा था कि झारखंड देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी तेजी से विकसित और समृद्ध होगा. इसके पीछे का कारण था यहां की मिट्टी के नीचे दबे काले सोने यानी कि कोयले और अन्य खनिजों का समृद्ध भंडार होना. एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य गठन के लगभग 20 साल बाद अब पता चला है कि झारखंड फिलहाल करीब 84 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है.


इतना ही नहीं इतना कर्ज होने के बावजूद राज्य सरकार की तरफ से अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं समेत स्थानीय एजेंसियों से विभिन्न योजनाओं के विकास के लिए अभी भी 13 हजार करोड़ रुपये के कर्ज की दरकार है. रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड सरकार ने फिलहाल विश्व बैंक, नाबार्ड, भारत सरकार और अन्य दूसरी संस्थाओं से जो कर्ज लिया है उस पर सरकार को हर दिन तकरीबन 20 करोड़ रुपये सूद के तौर पर देने पड़ते हैं.


ये हाल तब है जब झारखंड में कोयले का सबसे अधिक भंडार है. अन्य प्राकृतिक खनिजों और खदानों का भंडार होने के बावजूद ये राज्य हजारों करोड़ रुपये के कर्ज के तले दबा हुआ है. जबकि अगर प्राकृतिक समृद्धता को देखें तो सही मायने में झारखंड को हजारों करोड़ रुपये के सरकारी खजाने के लाभ में होना चाहिए था.


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