नई दिल्ली: किसान आंदोलन का गतिरोध कब ख़त्म होगा ये कहना तो मुश्किल है लेकिन इस मसले पर सरकार और किसान संगठनों के बीच शह और मात का खेल चल रहा है. न तो किसान झुकने को तैयार हैं  और न ही सरकार थोड़ा और पीछे हटने को तैयार है.


एक दिन पहले ही किसान संगठनों ने सरकार के बातचीत के प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज़ किया तो आज सरकार ने एक बार फिर इन संगठनों को बातचीत का आमंत्रण दे दिया. किसान संगठनों को कृषि मंत्रालय की ओर से एक पत्र लिखकर बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया है. पिछले पत्र की तरह ही किसान संगठनों से ही बातचीत की तारीख़ और समय बताने के लिए कहा गया है. सरकार को उम्मीद है कि बातचीत से ही रास्ता निकलेगा. कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने एबीपी न्यूज़ से कहा कि किसी भी आंदोलन को ख़त्म करने का तरीक़ा बातचीत ही है.


पत्र में किसान संगठनों से एक बार फिर कहा गया है कि तीनों क़ानूनों से जुड़े मुद्दों को बिंदुवार सरकार के पास लाया जाए. सरकार ने ये दावा दोहराया है कि किसानों से वो खुले मन से बातचीत करने को तैयार है. सरकार ने कहा कि किसान संगठनों की ओर से उठाए गए सभी मुद्दों का तर्कपूर्ण समाधान ढूंढने के लिए प्रतिबद्ध और तत्पर है. 23 दिसम्बर को किसान संगठनों ने सरकार की ओर से पहले भेजे गए बातचीत के प्रस्ताव को ये कहते हुए ठुकरा दिया कि सरकार की ओर से कुछ ठोस प्रस्ताव आने के बाद ही बातचीत करने पर विचार किया जाएगा.


अपने पत्र में कृषि मंत्रालय ने ऐसे किसान संगठनों से समानांतर बातचीत का बचाव किया है जो किसान क़ानूनों का समर्थन कर रहे हैं. मंत्रालय का कहना है कि देश के सभी किसान संगठनों से बातचीत का रास्ता खुला रखना ज़रूरी भी है और सरकार का कर्तव्य भी है. 23 दिसम्बर को सरकार को लिखे पत्र में आंदोलनरत किसान संगठनों ने सरकार के अलग अलग किसान संगठनों से बातचीत पर आपत्ति जताई थी.


हालांकि सवाल ये उठ रहा है कि जब किसान संगठन तीनों किसान क़ानूनों को वापस लेने पर अड़े हैं तो चिट्ठियों के इस आदान प्रदान से गतिरोध कैसे टूटेगा? वहीं सरकार ने क़ानून में कुछ बदलाव की बात तो की है लेकिन ये साफ़ कर दिया है कि क़ानून वापस लेना सम्भव नहीं है. कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने फिर कहा कि क़ानून किसानों के हित में है.


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