Bilkis Bano Case: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (18 अक्टूबर) को बिलकीस बानो गैंग रेप केस में  11 दोषियों को रिहा किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि गुजरात सरकार का जवाब बहुत बोझिल है, जिसमें कई फैसलों का भी हवाला दिया गया है, लेकिन तथ्यात्मक बयान चीजें गायब हैं. माकपा की वरिष्ठ नेता सुभाषिनी अली और दो अन्य महिलाओं ने दोषियों को सजा में छूट दिए जाने और उनकी रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है. पीठ ने निर्देश दिया कि गुजरात सरकार द्वारा दायर जवाब सभी पक्षों को उपलब्ध कराया जाए.


सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को गुजरात सरकार के हलफनामे पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया है. इसके अलावे कहा कि वह याचिकाओं पर 29 नवंबर को सुनवाई करेगी. इसमें  2002 के मामले में दोषियों को सजा में छूट और उनकी रिहाई को लेकर चुनौती दी गई है.


गुजरात दंगों से जुड़ा है मामला
यह मामला गुजरात में हुए दंगों से जुड़ा है, जिनमें बिलकीस के परिवार के 7 लोग मारे गए थे. न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सीटी रवि कुमार की पीठ ने कहा कि ‘‘मैंने कोई ऐसा जवाबी हलफनामा नहीं देखा है, जहां निर्णयों की एक श्रृंखला दिखाई की गई हो. तथ्यात्मक बयान दिया जाना चाहिए था. अत्यंत बोझिल जवाब है. तथ्यात्मक बयान कहां है, दिमाग का उपयोग कहां है?’’


सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने क्या कहा ?
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए. न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा कि इससे पहले कि वह गुजरात सरकार के जवाब को पढ़ पाते, सारी बातें अखबारों में छप रहा था. उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि उन्होंने ऐसा कोई जवाबी हलफनामा नहीं देखा है, जिसमें कई फैसलों का हवाला दिया गया हो. मेहता ने इस पर सहमति व्यक्त की और कहा कि इससे बचा जा सकता था. उन्होंने कहा, 'आसान संदर्भ के लिए निर्णयों का जिक्र किया गया है, इससे बचा जा सकता था.' सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अजनबी और तीसरे पक्ष सजा में छूट तथा दोषियों की रिहाई को चुनौती नहीं दे सकते हैं. अदालत ने इसके बाद याचिकाकर्ताओं को और समय दिया और मामले की सुनवाई के लिए 29 नवंबर की तारीख तय की है.


गुजरात सरकार ने किया था बचाव
गुजरात सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट  में 1992 की छूट नीति के अनुसार दोषियों को रिहा करने के अपने फैसले का बचाव किया था. उन्होंने कहा था कि दोषियों ने जेल में 14 साल से अधिक की अवधि पूरी कर ली थी और उनका आचरण अच्छा पाया गया था. यह भी स्पष्ट किया कि 'आजादी का अमृत महोत्सव' समारोह के तहत कैदियों को छूट देने संबंधी परिपत्र के अनुरूप दोषियों को छूट नहीं दी गई थी.


सीबीआई ने किया था विरोध
राज्य के गृह विभाग ने कहा कि सभी दोषियों ने आजीवन कारावास के तहत 14 साल से अधिक की जेल अवधि पूरी की है. दायर हलफनामे में कहा गया, ‘‘9 जुलाई 1992 की नीति के अनुसार संबंधित अधिकारियों की राय प्राप्त की गई और 28 जून, 2022 के पत्र के माध्यम से गृह मंत्रालय, भारत सरकार को प्रस्तुत की गई, तथा अनुमोदन/उपयुक्त आदेश मांगे गए थे.’’ गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत सरकार ने 11 जुलाई, 2022 के पत्र के माध्यम से दोषियों की समय से पहले रिहाई को मंजूरी दी थी. इसके जवाब में यह भी कहा गया कि दोषियों की समय पूर्व रिहाई के प्रस्ताव का पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, मुंबई और विशेष सिविल न्यायाधीश (सीबीआई), शहर दीवानी एवं सत्र अदालत, ग्रेटर मुंबई ने विरोध किया था.


21 साल की थी बिलकिस
गोधरा में ट्रेन जलाए जाने की घटना के बाद गुजरात में भड़के सांप्रदायिक दंगों के समय बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं. इस दौरान उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और तीन साल की बेटी सहित उनके परिवार के सात लोग मारे गए थे. इस मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से तब रिहा कर दिया गया था, जब गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी थी.इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी और उच्चतम न्यायालय ने मुकदमे को महाराष्ट्र की एक अदालत में ट्रांसफर कर दिया था.


उम्र कैद की हुई थी सजा
मुंबई स्थित एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में, मुंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने उनकी सजा को बरकरार रखा था.


 'राजनीतिक साजिश' से प्रेरित है याचिका
राज्य सरकार ने कहा था कि उसका मानना है कि वर्तमान याचिका इस अदालत के जनहित याचिका के अधिकार क्षेत्र के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है तथा यह 'राजनीतिक साजिश' से प्रेरित है.दोषी राधेश्याम ने भी अपने साथ और 10 अन्य दोषियों को सजा में दी गई छूट को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए  25 सितंबर को कहा था कि इस मामले में याचिकाकर्ता 'पूरी तरह अजनबी' हैं. सुप्रीम कोर्ट  ने 25 अगस्त को मामले में 11 दोषियों को मिली छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और गुजरात सरकार से जवाब मांगा था.


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