नई दिल्ली: किसानों पर फायरिंग सरकारों को महंगी पड़ती है. जिस भी सरकार के राज में किसानों पर गोली चली, वो कभी सत्ता में वापस नहीं आई. कल मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों पर गोली चली जिसमें पांच किसानों की मौत हो गई. मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं.


महाराष्ट्र


2012 में महाराष्ट्र के सांगली में गन्ना किसानों के आंदोलन पर भी गोली चली थी, जिसमें एक किसान की मौत हुई थी. उस वक्त महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी और पृथ्वीराज चव्हाण सीएम थे. इस घटना के बाद 2014 में कांग्रेस की सत्ता चली गई.


उत्तर प्रदेश


अगस्त 2010 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के टप्पल में किसानों के प्रदर्शन पर फायरिंग हुई थी, जिसमें तीन किसानों की मौत हुई थी. इसके बाद मई 2011 में भी गौतमबुद्धनगर के भट्टा पारसौल गांव में किसानों के प्रदर्शन पर पुलिस फायरिंग हुई थी, जिसमें 2 किसानों की जान गई थी. दोनों ही घटनाओं के वक्त यूपी की मुख्यमंत्री मायावती थीं. इन दोनों घटनाओं के बाद 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में मायावती की करारी हार हुई और वह आजतक सत्ता में नहीं लौटीं.


अक्टूबर 1988 में यूपी के मेरठ में किसानों के आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में 5 किसानों की जान गई थी. तब कांग्रेस के एनडी तिवारी मुख्यमंत्री थे. इस घटना के एक साल बाद 1989 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता चली गई थी. स्थिति ये है कि इसके बाद आज तक कांग्रेस कभी यूपी में सरकार में नहीं बना पाई.


पश्चिम बंगाल


मार्च 2007 में पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस फायरिंग हुई थी, जिसमें 14 किसानों की मौत हो गई थी.  उस वक्त लेफ्ट के बुद्धदेब भट्टाचार्य सीएम थे. हिंसा के 2011 में विधानसभा चुनाव में लेफ्ट की सरकार की विदाई हो गई और ममता बनर्जी सत्ता में आई.


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