RBI की निर्णय प्रक्रिया में बड़ी भागीदारी चाहती है मोदी सरकार, बढ़ सकती है तनातनी
मोदी सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के निर्णय लेने की प्रक्रिया में बड़ी भागीदारी चाहती है. इसके पीछे सरकार का तर्क है कि जनता का प्रतिनिधि होने के नाते उसे ये हक मिलना चाहिए.
नई दिल्ली: मोदी सरकार रिजर्व बैंक (आरबीआई) के निर्णय लेने की प्रक्रिया में बड़ी भागीदारी चाहती है. सरकार का मानना है कि अभी उसे केन्द्रीय बैंक विभिन्न विषयों पर निर्णय लेने के मामले में अलग रखता है. सरकार का निर्णय में भागीदारी के पीछे तर्क है कि इससे एनपीए आदि में होने वाली वृद्धि को रोका जा सकता है.
सरकार का तर्क है कि लोगों के प्रतिनिधि होने के नाते उसे आरबीआई के महत्वपूर्ण नीति-निर्णयों में शामिल होना चाहिए. आरबीआई के बोर्ड की होने वाली अहम बैठक से पहले सूत्रों ने यह जानकारी दी है. इससे मोदी सरकार और आरबीआई के बीच तनातनी भी बढ़ सकती है.
सूत्रों के मुताबिक सरकार वर्तमान में आरबीआई में नामित होने वाले अपने निदेशक मात्र से संतुष्ट नहीं है. वह चाहती है कि उसे केन्द्रीय बैंक के कामों में हिस्सा लेने का अधिक अवसर मिले. सरकार का तर्क है कि अभी गवर्नर और चार डिप्टी गवर्नरों की उपस्थिति से कुछ उप-समितियों का कोरम पूरा हो जाता है. ऐसे में किसी भी महत्वपूर्ण चीजों पर निर्णय लेने के लिए अन्य निदेशकों की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
सरकार और आरबीआई में 'खींचतान' के बीच पीएम मोदी से मिले उर्जित पटेल: सूत्रहालांकि, गर्वनर की अध्यक्षता वाले आरबीआई के केन्द्रीय बोर्ड में दो सरकार नामित निदेशक और 11 स्वतंत्र निदेशक शामिल हैं. इस समय बैंक के केन्द्रीय बोर्ड में 18 सदस्य हैं और इसकी अधिकतम संख्या 21 तक हो सकती है.
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