नई दिल्ली: इस समय देशभर का करीब का आधा हिस्सा बारिश औऱ बाढ़ की वजह से बेहाल है. सरकार की तरफ से हर साल बारिश से पैदा हुई मुश्किलों को निपटने को लेकर ढीला रवैया ही देखने को मिलता है. शुक्रवार को संसद में पेश हुई भारत के नियंत्रणक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अनदेखी देश में बाढ़ की सबसे बड़ी वजह है.


यहां जानिए, सीएजी रिपोर्ट की खास बातें :




  • रिपोर्ट के मुताबिक 329 मिलियन हेक्टेयर कुल ज़मीन में से 45.64 मिलियन ज़मीन पर बारिश के दिनों में बाढ़ का खतरा रहता है.

  • 11वीं पंच वर्षीय योजना की रिपोर्ट के मुताबिक 2007 से 2012 के दौरान 7.55 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन पर बाढ़ का खतरा रहा और इस दौरान बाढ़ की वजह से 1560 लोगों की मौत हुई.

  • बाढ़ की वजह से इस दौरान कुल 1800.55 करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ है.

  • कैग रिपोर्ट में इसकी वजह बताते हुए कहा गया है जिन प्रोजेक्ट और डिजाइन को वक्त रहते लागू हो जाना चाहिए था, वह जब तक इस योजनाओं के लिए पैसा जारी किया गया तब तक निष्प्रभावी हो चुके हैं.

  • 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान जो टेलीमेट्री स्टेशन स्थापित किये जाने थे वह चालू ही नहीं हो सके, जिसकी वजह से बाढ़ के खतरे के बारे में पूर्वानुमान लगाना भी मुमकिन नहीं हुआ.

  • कैग रिपोर्ट के मुताबिक सीमावर्ती इलाकों में जो रिवर मैनेजमेंट एक्टिविटीज के तहत प्रोजेक्ट शुरू होने थे, उन्हें पूरे किए जाने में भी बहुत देरी हुई है.

  • इमरजेंसी एक्शन प्लान में भी सिर्फ कुछ ही बड़े डैम तैयार किए गए हैं.

  • सीएजी ने अपनी रिपोर्ट को साल 2007 से लेकर साल 2016 के बीच के सर्वे के आधार पर तैयार किया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 206 फ्लड मैनेजमेंट प्रोजेक्ट, 38 फ्लड फोरकास्टिंग स्टेशन, 49 रिवर मैनेजमेंट एक्टिविटी के साथ ही सीमावर्ती इलाकों के प्रोजेक्ट और 68 बड़े डैम जो कि 17 राज्यों और यूनियन टेरिटरीज में बने हुए हैं उनका निरीक्षण किया है.

  • सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक चार राज्यों में ऐसे 48 प्रोजेक्ट्स रहे हैं जिन को तैयार करने के लिए जो पैसा जारी होना था उसकी पहली लिस्ट जारी होने में ही 221 महीने की देरी हुई.

  • 610.92 करोड़ रुपये की रकम जिस पर 18.30 करोड़ रुपए ब्याज बनता है वह राज्य सरकारों से वसूला जाना चाहिए था, क्योंकि ये वो पैसा था जो केंद्र ने राज्य सरकार को दिया था. लेकिन 15 दिनों के बाद भी वह पैसा राज्य सरकार की ओर आगे जारी नहीं किया गया. ऐसे में वह पैसा वापस लिया जाना चाहिए था.

  • पांच राज्यों के 6 प्रोजेक्ट के लिए जारी किए गए 171.28 करोड़ रुपये का इस्तेमाल 7 महीने बीत जाने पर भी नहीं हुआ और वह पैसे यूं ही पड़े रहे.

  • वहीं बिहार उत्तराखंड के दो प्रोजेक्ट्स के लिए 19.99 करोड़ों रुपये का अतिरिक्त पैसा भी जारी किया गया.

  • 17 प्रदेश और केंद्र शासित राज्यों में से 8 में फ्लड मैनेजमेंट का काम सही ढंग से शुरू ही नहीं हुआ, इतना ही नहीं इनको लेकर कोई गाइडलाइन भी तैयार नहीं की गई. कई मामले जहां 10 महीने से लेकर 13 साल तक की देरी देखने को मिली.

  • 12वीं पंचवर्षीय प्लान में योजना के तहत 219 टेलीमेटरी स्टेशन, 310 बेस स्टेशन , 100 फोरकास्टिंग स्टेशन को लगाए जाने की बात थी, लेकिन अगस्त 2016 तक इन में से सिर्फ 56 टेलीमेटरी स्टेशन से ही लगाए गए हैं.

  • अब तक बने 375 टेलीमेटरी स्टेशन में से 222 टेलीमेटरी स्टेशन ऐसे रहे जो बन तो गए हैं, लेकिन उनमें काम शुरु नहीं हुआ है.

  • 12वीं पंचवर्षीय योजना में तमिलनाडु में ही 41 टेलीमेटरी स्टेशन स्थापित करने की योजना थी, लेकिन जुलाई 2016 तक उसको लेकर टेंडर तक नहीं जारी हुए.

  • सीमावर्ती इलाकों में बाढ़ को लेकर होने वाले कामों में काफी देरी हुई है. आपके बता दें कि यह ऐसे काम थें जिनके जरिए आसाम, उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ़ के हालातों को पहले से ही भांपा जा सकता था. इसकी वजह रही है कि जिस तरीके से काम किए गए वह सही नहीं थे. साथ ही इनको लेकर जो टेंडर जारी किए गए वह भी सवालों के घेरे में रहे और इन्हें पूरा करने के लिए पैसा भेजने में भी देरी हुई है.

  • 4862 बने डैम को लेकर जो इमरजेंसी एक्शन और डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान तैयार होना था उसमें से महज़ 786 यानी 7 फीसदी का ही प्लान मार्च 2016 तक तैयार हुआ है.

  • कुल 17 केंद्र शासित प्रदेश और राज्य में सिर्फ दो राज्य ऐसे रहे जिन्होंने मौसम से पहले और बाद में डैम के निरीक्षण का काम पूरा किया है. वहीं तीन राज्यों ने थोड़ा बहुत निरीक्षण का काम किया, लेकिन बाकी 12 राज्यों में निरीक्षण को लेकर कोई काम नहीं हुआ है.

  • राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने जिन जिलों बाढ़ से ज्यादा प्रभावित रहते हैं उनके साइंटिफिक असेसमेंट की बात कही थी, लेकिन 17 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में इस रिपोर्ट को लेकर कोई काम नहीं हुआ है.

  • सिर्फ बिहार और उड़ीसा ने बाढ़ प्रभावित इलाकों का फ्रीक्वेंसी बेस्ट फ्रेंड इन एजुकेशन प्लान तैयार किया है.

  • 10 राज्यों ने बाढ़ से निपटने के लिए कोई विस्तृत मास्टर प्लान नहीं तैयार किया है और उन्होंने अपने-अपने राज्य के अनुसार फ्लड मैनेजमेंट प्लान पर भी काम नहीं किया है.

  • बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और उड़ीसा के प्रोजेक्ट का परफॉर्मेंस एवोल्यूशन नहीं हुआ है.

  • वहीं मणिपुर, सिक्किम और वेस्ट बंगाल में जो कमियां उनको बताई गई थी 26 प्रोजेक्ट का निरीक्षण करने के बाद उन पर कोई काम नहीं किया गया.

  • फ्लड मनेजमेंट प्रोग्राम के तहत रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल भी प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग के लिए होना चाहिये था पर वो शुरू ही नहीं हुआ है.