नई दिल्लीः राम मंदिर पर राजनीति तेज़ हो रही है लेकिन केंद्र सरकार ने उस मसले पर अब तक चुप्पी नही तोड़ी है. लेकिन सरकार का राम मन्दिर प्लान क्या है इसको लेकर कुछ सुगबुगाहट जरूर सामने आ रही है.


"रामलाल हम आएंगे, मंदिर वही बनाएंगे" 90 के दशक में इस नारे ने राम मंदिर आंदोलन को शिखर पर पहुचाया था. दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद की हुई संत उच्चाधिकार समिति की बैठक के बाद राम मन्दिर आंदोलन को तेज करने की कवायद शुरू हो गयी है. विश्व हिंदू परिषद इस मसले पर कोर्ट और सरकार का रुख देख कर आंदोलन को तेज करने की बात कर रही है. सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट के रुख को देखकर ही अपना अगल एक्शन प्लान तय करेगी.


29 अक्टूबर के दिन सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई राम मंदिर केस की सुनवाई करेंगे. सुप्रीम कोर्ट नियमित और प्रतिदिन सुनवाई पर क्या रुख रखता है. अगर दिन-प्रतिदिन सुनवाई शुरु हुई तब 90 से 120 दिनों के भीतर फैसला आ सकता है. अगर ऐसा नहीं हुआ तब ही केंद्र सरकार अपना एक्शन प्लान लागू करेगी. सूत्रों के मुताबिक 29 अक्टूबर के दिन सुप्रीम कोर्ट ने अगर राम मंदिर केस की दिन-प्रतिदिन सुनवाई नहीं शुरू की तब केंद्र सरकार दो विकल्पों पर विचार करेगी.


विकल्प एक- राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने का विकल्प, केन्द्र सरकार अध्यादेश लाकर राम मंदिर निर्माण की राह आसान कर सकती है, सरकार के रणनीतिकारों में अगर अध्यादेश पर एक राय बनी तो राममंदिर पर अध्यादेश शीतकालीन सत्र के बाद लाया जा सकता है. वीएचपी की संतों की उच्चधिकार समिति भी इसकी वकालत कर रही है.


विकल्प दो- राममंदिर के लिए संसद के ज़रिए कानून बनाया जाए ताकि राममंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो. ऐसा हुआ तो शीतकालीन सत्र में भी राम मंदिर के लिए बिल लाया जा सकता है.


एक तीसरा विकल्प भी है और वो है-संसद का विशेष सत्रः सूत्रों का कहना है कि सरकार के सामने राम मंदिर के लिए संसद का विशेष सत्र का विकल्प भी खुला है. लेकिन ये विकल्प, जनभावनाओं का ज्वार उफान पर होने पर ही अपनाया जाएगा.


सरकार के सूत्रों का कहना है कि राम इस देश की विरासत के सिरमौर हैं और देश के लिए मर्यादापुरुषोत्तम का विशेष स्थान रखते हैं इसलिए सरकार जब भी राममंदिर पर अध्यादेश या कानून का रास्ता अख्तियार करेगी तो कैबिनेट की बैठक भी विशेष तौर पर बुलाई जाएगी और नियमित कैबिनेट बैठक में राम मंदिर निर्माण के लिए बिल या अध्यादेश पास नहीं होगा.


सूत्रों के मुताबिक संघ परिवार राम मंदिर निर्माण के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगा. खुद मोहन भागवत एक साल में तीन बार राम मंदिर के निर्माण की वकालत कर चुके हैं. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे पर दिए अपने भाषण में साफ कर दिया सरकार राम मंदिर के लिए कानून बनाए. अगर कानून की ज़रूरत है और कोर्ट से फैसला नहीं आ रहा है तो कानून बनाए.


राम मंदिर आंदोलन को रफ्तार देने के लिए नवम्बर में महीने में दिल्ली में हिन्दू धर्म के 125 संप्रदायों के संत या प्रमुख इकठ्ठे होंगे, सरकार और संघ दोनों का इनको समर्थन मिलेगा. संत पहले ही सरकार को नोटिस दे चुके हैं.


रामजन्मभूमि आंदोलन समिति के संयोजक रामविलास वेदांती का कहना है "6 दिसम्बर तक अगर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ नही हुआ तो कारसेवा शुरू की जाएगी. 2019 से पहले राम मंदिर चाहिए.


उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के कुम्भ मेले में संतों की सबसे बड़ी संसद, धर्म संसद की बैठक होगी. इसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह खुद शामिल होंगे. इस धर्म संसद में राम मंदिर निर्माण के लिए आह्वान होगा. जाहिर है राम मंदिर आंदोलन के खड़ा होने से बीजेपी को बड़ा चुनावी फायदा होना है. ऐसे में सरकार और संगठन और संघ सभी मिलकर राम मंदिर के प्लान में जुटे हुए हैं.लेकिन बड़ा सवाल ये है कि उस बार भी सिर्फ आंदोलन होगा या मंदिर भी बनेगा.