किसानों के समर्थन में 75 पूर्व नौकरशाहों का खुला पत्र, कहा- शुरू से टकराव भरा रहा सरकार का रवैया
पूर्व नौकरशाहों ने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि वह 'देश में पिछले कुछ महीनों से इतनी अशांति पैदा करने वाले' मुद्दे के समाधान के लिए 'सुधारात्मक कदम' उठाए. ये सभी लोग ‘कांस्टिट्यूश्नल’ कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) के हिस्सा हैं.
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नई दिल्ली: किसान आंदोलन पर 75 पूर्व नौकरशाहों के ग्रुप ने एक खुला पत्र लिखा है. इस पत्र में कहा गया है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के प्रति केंद्र सरकार का रवैया शुरुआत से ही प्रतिकूल और टकराव भरा रहा है. ऐसे रवैये से कभी कोई समाधान नहीं निकलेगा.
दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, जुलियो रिबेरियो और अरुणा रॉय सहित 75 पूर्व नौकरशाहों ने हस्ताक्षर किया हुआ एक पत्र जारी किया है. इसमें कहा गया है कि गैर-राजनीतिक किसानों को 'ऐसे गैर-जिम्मेदार प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा है जिनका उपहास किया जाना चाहिए, जिनकी छवि खराब की जानी चाहिए और जिन्हें हराया जाना चाहिए.' ये सभी लोग ‘कांस्टिट्यूश्नल’ कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) के हिस्सा हैं.
उन्होंने कहा है कि अगर भारत सरकार वाकई मैत्रीपूर्ण समाधान चाहती है तो उसे आधे मन से कदम उठाने के बजाए कानूनों को वापस ले लेना चाहिए और फिर संभावित समाधान के बारे में सोचना चाहिए.
11 दिसंबर को भी लिखा था पत्र पत्र में लिखा है, "सीसीजी में शामिल हम लोगों ने 11 दिसंबर, 2020 को एक बयान जारी कर किसानों के रुख का समर्थन किया था. उसके बाद जो कुछ भी हुआ, उसने हमारे इस विचार को और मजबूत बनाया कि किसानों के साथ अन्याय हुआ है और लगातार हो रहा है."
पत्र में कहा गया है, "हम आंदोलनकारी किसानों के प्रति अपने समर्थन को मजबूती से दोहराते हैं और सरकार से आशा करते हैं कि वह घाव पर मरहम लगाते हुए मुद्दे का सभी पक्षों के लिए संतोषजनक समाधान निकालेगी. किसान आंदोलन के प्रति भारत सरकार का रवैया शुरुआत से ही प्रतिकूल और टकराव भरा रहा है. वह गैर-राजनीतिक किसानों को ऐसे गैर-जिम्मेदार प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख रही है जिनका उपहास किया जाना चाहिए, जिनकी छवि खराब की जानी चाहिए और जिन्हें हराया जाना चाहिए."
"राजद्रोह का मामला क्यों दर्ज किया गया" नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड का आयोजन किया था जिसमें कुछ जगहों पर उनकी पुलिस के साथ झड़प हो गई. कुछ किसान ट्रैक्टर परेड के तय रास्ते से अलग होकर लाल किला पहुंच गए और वहां ध्वज स्तंभ (जिसपर 15 अगस्त को तिरंगा फहराया जाता है) पर धार्मिक झंडा लगा दिया. इसपर पूर्व नौकरशाहों ने सवाल किया है कि तथ्यों के स्पष्ट होने से पहले महज कुछ ट्वीट करने के आधार पर विपक्षी दल के सांसद और वरिष्ठ संपादकों और पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह का मामला क्यों दर्ज किया गया है.
उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि सरकार के खिलाफ विचार रखना या प्रदर्शित करना, या किसी घटना के संबंध में विभिन्न लोगों द्वारा दिए गए अलग-अलग विचारों की रिपोर्टिंग करने को कानून के तहत देश के खिलाफ गतिविधि करार नहीं दिया जा सकता.
किसानों से बातचीत करने की वकालत पत्र में कहा गया है कि बातचीत को फिर से शुरू करने के लिए उचित वातावरण तैयार करने के लिहाज से किसानों और पत्रकारों सहित ट्वीट करने वालों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लिया जाना, गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल असामाजिक तत्वों को छोड़कर, और किसानों को खालिस्तानी बताने की गलत मंशा वाले दुष्प्रचार को बंद करना न्यूनतम आवश्यकता है.
पत्र पर पूर्व आईएएस अधिकारियों नजीब जंग, अरुणा रॉय, जवाहर सरकार और अरबिंदो बेहरा और पूर्व आईएफएस अधिकारियों केबी फैबियन और आफताब सेठ, पूर्व आईपीएस अधिकारियों जुलियो रिबेरियो और एके सामंत सहित अन्य ने हस्ताक्षर किया है.
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