देश की राजधानी दिल्ली में सरकार का मतलब अब उपराज्यपाल है. क्योंकि केंद्र सरकार ने दोनों सदनों द्वारा पास किए गए बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अब नोटिफाई कर दिया है. इसका मतलब यह हुआ कि आज से यह कानून दिल्ली में लागू हो गया है. इस कानून के लागू होने का मतलब साफ है कि अब दिल्ली में दिल्ली सरकार का कोई फैसला लेगी तो उसको बिना उपराज्यपाल की मंजूरी के लागू नहीं किया जा सकता. 


दिल्ली का बॉस कौन? यह सवाल पिछले कई सालों से लगातार उठ रहा था जिस पर केंद्र सरकार ने पिछले महीने बजट सत्र के दौरान बिल लाकर यह साफ किया था कि दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा. पिछले ही महीने संसद के दोनों सदनों से यह बिल पास हुआ था जिसको राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कल यानी 27 अप्रैल को नोटिफाई कर दिया गया.


सरकार और उपराज्यपाल दोनों की सहमति के बाद ही लागू होगा कोई फैसला
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई अधिसूचना में कहा गया है, 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार (संशोधन) अधिनियम 2021, 27 अप्रैल से अधिसूचित किया जाता है.' इसका मतलब साफ है कि अब उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना दिल्ली सरकार अपनी मर्जी से कोई कदम नहीं उठा सकती. यानी कि दिल्ली सरकार अगर कोई फैसला लेती है तो उसको उपराज्यपाल के पास भेजा जाएगा और दोनों की सहमति के बाद ही दिल्ली में कोई फैसला लागू होगा.


जिस कानून को दिल्ली में नोटिफाई किया गया है इस कानून के मुताबिक अब से दिल्ली सरकार को उपराज्यपाल के पास विधायी प्रस्ताव कम से कम 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव कम से कम 7 दिन पहले भेजने होंगे. इसका मतलब यह होगा कि दिल्ली सरकार अगर दिल्ली में कोई कानून लागू करना चाहती है या कोई फैसला लेना चाहती है तो उससे जुड़ी हुई जानकारी पहले उपराज्यपाल को देनी जरूरी होगी और उपराज्यपाल की मंजूरी के बाद ही वह फैसला दिल्ली में लागू किया जा सकेगा.


दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों को छीनने की कोशिश?
यह वही कानून है जिसको लेकर जब संसद में चर्चा चल रही थी और बिल पेश हुआ था तो तमाम विपक्षी दलों की तरफ से इसका खासा विरोध हुआ था. लेकिन इस विरोध के बीच भी केंद्र सरकार ने संसद के दोनों सदनों से बहुमत से इस बिल को पास कराया था. इस बिल का विरोध करते हुए आम आदमी पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत सभी नेता लगातार यही कहते रहे कि केंद्र सरकार इस कानून के माध्यम से दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों को छीनने की कोशिश कर रही है. अरविंद केजरीवाल ने सवाल उठाते हुए यहां तक कहा था कि फिर दिल्ली में चुनाव करवाने और सरकार चुनने का मतलब ही क्या रह जाता है अगर दिल्ली सरकार जनता के हित में कोई फैसले ही नहीं ले सकती.


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