भोपाल: अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन के मुहूर्त पर सवाल उठा रहे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती कहते हैं कि राम जन्मस्थली पर राम मंदिर भव्य अंकोरवाट शैली में बनना चाहिए. मगर इसमें परेशानी अयोध्या में स्थित उस गर्भ गृह की है, जो संकरी गलियों में स्थित है. एबीपी न्यूज से नरसिंहपुर जिले में स्थित झोंतेश्वर में अपने आश्रम में बात करते हुए द्वारिका और बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य स्वरूपानंद ने सारे सवालों के विस्तार से जवाब दिए.


शंकराचार्य स्वरूपानंद ने कहा, "मैं मंदिर विरोधी कहां से हो गया. रामजन्मभूमि में भव्य मंदिर बने इसके लिये कितना खून पसीना मैंने बहाया है बताना कठिन है. मंदिर विवाद सुलझाने में हुयी अधिकतर कोशिशों की बैठकों में मैं शामिल रहा हूं. मैं पहला आदमी हूं जो ये तथ्यों के साथ कहता था कि विवादित जगह मस्जिद नहीं मंदिर है. उस जगह के स्तंभों पर देवी देवताओं के शिल्प उभरे हुए थे, जो मैं मंदिर से जुड़ी बैठकों में दिखाता था."


उन्होंने दावा किया कि मंदिर विवाद कई बार सुलझने के करीब पहुंच गया था मगर विश्व हिंदू परिषद के नेता आखिरी क्षणों में पलट जाते थे. असल में वो मंदिर विवाद का हल हो चाहते ही नहीं थे. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से लेकर पीवी नरसिंह राव और जैन मुनि आचार्य सुशील ने विवाद सुलझाने के लिये बहुत गंभीरता से प्रयास किए और उनकी बातें मुस्लिम समाज के नेता मानने को तैयार होते थे, मगर विश्व हिंदू परिषद के नेता इस मुद्दे को बीजेपी की राजनीति के लिए खत्म होने देना ही नहीं चाहते थे.


97 साल के बुजुर्ग मगर रानजीतिक रूप से सजग शंकराचार्य स्वरूपानंद महाराज रोज तेज रोशनी में सहयोगियों की मदद से दो घंटे अखबार पढते हैं. राजनीतिक मामलों पर हमेशा मुखर रहने वाले स्वामी स्वरूपानंद से जब हमने पूछा कि आपको कांग्रेसी पक्ष का माना जाता है, तो वे हंस कर बोले, "1942 में मैं अंग्रेजों के खिलाफ अपने स्कूली दिनों में आजादी के आंदोलन में शामिल हुआ और दो बार जेल गया तो उस वक्त तो कांग्रेस पार्टी का ही कार्यकर्ता कहलाया. आजादी के आंदोलन में तो सभी कांग्रेस पार्टी से जुडे थे. जनसंघ के नेता डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी तो कांग्रेस में ही थे. बाद में वो अलग हो गये. मगर बात बीजेपी कांग्रेस की नहीं है."


शंकराचार्य स्वरूपानंद ने कहा कि मैं तो दिल्ली में हुए गौ रक्षा आंदोलन में भी जेल गया. पर ये बात कम लोग जानते हैं. मुझे मंदिर विरोधी क्यों कहा जा रहा है. मैंने तो सिर्फ ये कहा कि हिंदू धर्म वेदों से चलता है. वेदों में भूमि पूजन का मुहूर्त शुभ होना चाहिये ये कहा गया है. इन दिनों देव शयन पर हैं. कुछ शुभ कार्य नहीं किया जाता. ये काम दो महीने बाद भी हो सकता था, जब देव उठनी ग्यारस हो जाती. मगर ये तो सब जान रहे हैं कि मंदिर का ये भूमि पूजन खास राजनीतिक मकसद के तहत हो रहा है. कोइ बोल नहीं रहा, मैं तो बोलुंगा क्योंकि मुझे हिंदू धर्म का ज्ञान है और धर्म में क्या गलत क्या सही है ये कहने को ही मुझे इस परम पद पद बैठाया गया है.


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