'जमानत दो और फिर भारी शर्तें लगा दो... ऐसी चीजों पर आंखें नहीं मूंद सकते', किस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने की ये टिप्पणी
बेंच ने कहा कि जमानतदार अक्सर कोई करीबी रिश्तेदार या पुराना मित्र होता है और आपराधिक कार्यवाही में यह दायरा और भी कम हो सकता है, क्योंकि अपनी प्रतिष्ठा के लिए ऐसी कार्यवाही के बारे में बताते नहीं हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (22 अगस्त, 2024) को एक मामले में सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि जमानत देना और फिर भारी शर्तें लगाना दाएं हाथ से दी गई चीज बाएं हाथ से छीनने जैसा है.'
जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. बेंच ने कहा कि ऐसा आदेश जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति के मौलिक अधिकार की रक्षा करेगा और उसकी उपस्थिति की गारंटी देगा, वह तर्कसंगत होगा.
कोर्ट ने एक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसके खिलाफ धोखाधड़ी समेत विभिन्न अपराधों के लिए कई राज्यों में 13 प्राथमिकियां दर्ज हैं. याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दलील दी थी कि उसे इन 13 मामलों में जमानत दी गई थी और उसने इनमें से दो मामलों में जमानत की शर्तें पूरी की हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की मुख्य दलील यह थी कि वह अलग-अलग जमानतदार देने की स्थिति में नहीं है, जैसा कि शेष 11 जमानत आदेशों में निर्देश दिया गया है. बेंच ने कहा, 'आज स्थिति यह है कि 13 मामलों में जमानत मिलने के बावजूद याचिकाकर्ता जमानतदार नहीं दे पाया है.'
कोर्ट ने कहा, 'जमानत देना और उसके बाद भारी और दूभर शर्तें लगाना, जो चीज दाहिने हाथ से दी गई है, उसे बाएं हाथ से छीनने के समान है.' मामले का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को कई जमानतदार ढूंढ़ने में वास्तविक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.
बेंच ने कहा कि जमानत पर रिहा हुए आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानतदार होना आवश्यक है. कोर्ट ने कहा कि जमानतदार अकसर कोई करीबी रिश्तेदार या पुराना मित्र होता है और आपराधिक कार्यवाही में यह दायरा और भी कम हो सकता है, क्योंकि सामान्य प्रवृत्ति यह होती है कि अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए ऐसी कार्यवाही के बारे में रिश्तेदारों और मित्रों को नहीं बताया जाता.
कोर्ट ने कहा, 'ये हमारे देश में जीवन की भारी वास्तविकताएं हैं और एक अदालत के रूप में हम इनसे आंखें नहीं मूंद सकते. हालांकि, इसका समाधान कानून के दायरे में ही तलाशना होगा.' कोर्ट ने कहा कि राजस्थान में दर्ज एक प्राथमिकी में जमानत के आदेशों में से एक में स्थानीय जमानतदार उपलब्ध कराने का आदेश था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता हरियाणा का रहने वाला है और स्थानीय जमानतदार हासिल करना उसके लिए कठिन होगा. बेंच ने कहा, 'उपरोक्त चर्चा किए गए सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, हम निर्देश देते हैं कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और उत्तराखंड में लंबित प्राथमिकी के लिए, प्रत्येक राज्य में याचिकाकर्ता 50,000 रुपये का निजी मुचलका भरेगा और दो जमानतदार पेश करेगा जो 30,000 रुपये का मुचलका भरेंगे और यह संबंधित राज्य में सभी प्राथमिकी के लिए मान्य होगा...'
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