भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच सीमा पर 2003 के युद्धविराम का पूरी तरह से सम्मान करने पर की बड़ी सहमति हुई है. बड़ी बात ये कि इस बाबत दोनों देशों की सेनाओं ने साझा बयान जारी करके जानकारी दी.


लेकिन ये कैसे हुआ?


एबीपी न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक ये संभव हुआ दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व की इच्छा शक्ति की वजह से. असल में हाल की बैकचैनल बातचीत में दोनों हीं पक्षों ने इस बात का एहसास किया कि "Continued Hostility" यानी दुशमनी के माहौल से दोनों देशों को कुछ हासिल नहीं हो रहा और आए दिन गोलाबारी में कई सैनिकों की जानें जा रहीं हैं.


सूत्रों ने ये भी बताया की भारत को भी ऐहसास हो रहा था कि सरहद पर जवानों की जानें जाने से सरकार को आलोचना भी झेलनी पड़ रही थी लिहाज़ा दोनों ही देशों की हुकूमतो ने सोच समझ कर मुख्यतः इसी वजह से सेनाओं के बीच ये बड़ा समझौता किया. हालांकि जैसा कि समझौते में कहा गया है कि आने वाले दिनों में और बेहतर फैसले लिए जाएंगे. इस बारे में सरकार के उच्च सूत्रों ने कहा कि ये इस सहमति के नतीजे पर निर्भर करेगा क्योंकि पाकिस्तान हर बार ऐसे समझौतों को तोड़ देता है.


एबीपी न्यूज़ को सरकार के सूत्रों ने ये भी बड़ी बात बताई कि हाल फिलहाल hostility छोड़ सरहद पर शांति बहाली करने के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों पर ही अंतराष्ट्रीय समुदाय का दबाव था.

पाकिस्तान की आर्थिक व्यवस्था चरमा गई है


सूत्रों ने एबीपी न्यूज़ को ये भी बताया कि इसके अलावा पाकिस्तान को भी इस बात का एहसास था कि उसकी आर्थिक व्यवस्था चरमराती जा रही है. लिहाज़ा भारत से संबंध सुधारना ही उसके पास विकल्प था और यही वजह थी कि इस बार पाकिस्तान ने भारत के साथ तुरंत युद्धविराम की सहमति की.


यही नहीं, इस समझौते की एक बड़ी वजह ये भी बनी कि पाकिस्तान को कश्मीर से भारत के धारा 370 हटाने के बाद विश्व समुदाय से भी कोई सार्थक समर्थन नहीं मिला. एबीपी न्यूज़ को सरकार के उच्च सूत्रों ने ये भी बताया कि इस फैसले तो पहुंचने से पहले भारत ने इस बात को सराहा कि पाकिस्तान में हाफिज़ सईद और जकीउर रहमान जैसे भारत को निशाना बनाने वाले आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई भी की. भले ही ये कार्यवाई मुंबई हमले के मामले में नहीं बल्कि टेरर फाइनेंसिग के मामाले में ही क्यों ना की गई हो.


आपको याद दिला दें की हाल ही में पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल बाजवा और पाकिस्तान प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने भी कश्मीर मसले को बातचीत से सुलझाने के बयान दिए थे जिसका भारत सरकार ने स्वागत किया था.


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