नई दिल्ली: देश के महान गणितज्ञ व आइंस्टाइन के सिद्धांत को चुनौती देने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह का गुरुवार की सुबह पटना के पटना मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में निधन हो गया. बिहार के रहने वाले डा वशिष्ठ की प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया मानती थी.


1963 में उन्होंने कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी कर पीएडी की डिग्री हासिल की. चक्रीय सदिश समिष्ट सिद्धांत पर किए कार्य के लिए उन्हें दुनिया भर में ख्याति मिली और भारत का नाम रोशन किया.


डा वशिष्ठ की प्रतिभा को सबसे पहले कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली ने पहचाना और वे उन्हें अपने साथ अमेरिका ले गए. डा वशिष्ठ जब युवा थे तभी उन्हें मानसिक बीमारी ने घेर लिया और अंत तक वे इस बीमारी जूझते रहे.


बीमारी के चलते उनका अपनी पत्नी से तलाक हो गया. उन्होने महान वैज्ञानिक अलर्बट आइंस्टाइन के सापेक्ष सिद्धांत को भी चुनौती दी थी. नासा से भी उनका नाता रहा था.


उनकी महानता इस बात से साबित होती है कि जब अमेरिका अपोलो की लॉचिंग कर रहा था तो कम्प्यूटरों ने अचानक काम करना बंद कर दिया. जब कम्प्यूटर ठीक किए तो पाया गया कि डा वशिष्ठ और कम्प्यूटर की गणना एक ही थी.


1971 में वे भारत लौट आए लेकिन तब तक उनका व्यवहार बदल चुका था. उनका असामान्य व्यवहार लोगों के लिए हैरानी की बात थी.


रामानुजन के सूत्रों पर आज भी हो रहा शोध


देश के गणितज्ञों की बात आती है तो उसमें रामानुजन का नाम भी जरूर लिया जाता है. इनका पूरा नाम श्रीनिवास रामानुजन था. इन्हें आधुनिक काल के महान गणितज्ञों में शुमार किया जाता है. इन्होने तीन हजार से अधिक प्रमेयों का संकलन किया था. इन्होने कई ऐसे सूत्र बनाए जिन पर देश और विदेशों में आज भी शोध जारी हैं.