नई दिल्ली: हम मुरादाबाद में हैं, पतली तंग गलियां. मोटरसाइकिल, ई रिक्शा, स्कूटर, साइकिल के बीच पहले खुद निकलने की होड़. हम भी मोटरसाइकिल पर बैठ पीतल नगरी की तंग गलियों से गुजरते हुए पहुंचे पीतल बाजार में. मुरादाबाद की दस लाख आबादी में से सात लाख पीतल उद्दोग से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी है. पिछले साल सात हजार करोड़ का निर्यात हुआ लेकिन इस बार नोटबंदी के चलते यह घटकर पांच हजार करोड़ तक ही रह सकता है. व्यापारी परेशान हैं और नाराज भी. इनमें विपुल अग्रवाल जैसे बीजेपी समर्थक भी हैं. विपुल और उन जैसे बीजेपी के परंपरागत वैश्य वोटर कहते हैं कि नोटबंदी के बाद कारोबार रुपये में बीस पैसे भी नहीं रह गया है. बजट में पचास करोड़ के टर्न ओवर वाले व्यापारियों के टैक्स में दी गयी पांच फीसद की छूट को यह वर्ग नाकाफी बताता है.
एक ने कहा कि क्या करें. बीजेपी के आलावा किसी अन्य को नहीं दे सकते. लेकिन बीजेपी को इस बार देना नहीं चाहते क्योंकि यूपी अगर बीजेपी जीत गयी तो हम व्यापारियों को और ज्यादा तंग करेगी. ऐसे में या तो हम घर बैठ जाएं या फिर मतदान केन्द्र तक जाएं तो नोटा दबा कर चले आएं. विपुल अग्रवाल तो साफ साफ कहते हैं कि रुपये में बीस पैसे का तो नुकसाम होगा बीजेपी को. हमने हमेशा बीजेपी का साथ दिया लेकिन जिस ढंग से जरुरत से ज्यादा व्यापारियों की गरदन दबाई जा रही है उस वजह से उसे नुकसान उठाना ही पड़ेगा. चाय पीकर निकलने लगे तो यही विपुल कहने लगे कि आज हम यह बात कह रहे हैं और अभी 15 फरवरी दूर है. देखो तब क्या तस्वीर बनती है.
विपुल अग्रवाल इशारा कर रहे थे कि अगर इस बीच मुस्लिम वोट एकजुट हुआ तो वह कमल पर बटन भी दबा सकते हैं. पीतल कारोबारी सईद गानिम मिंया जामा मस्जिद के पास मिल गये. कहने लगे कि मुरादाबाद का पीतल हो. बरेली का सूरमा और बैंत उद्दोग हो या सहारनपुर का काष्ठ उद्दोग हो. सभी जगह व्यापारी भी परेशान है और उनके यहां काम करने वाला मजदूर और कर्मचारी भी. इसका खामियाजा बीजेपी को उठाना ही पड़ेगा ऐसा वह जोर देकर कहते हैं.
पीतल की दुकानों पर मूर्तियों पर से धूल झाड़ते कारीगर भी ग्राहकों के इंतजार में उतने ही दुखी नजर आते हैं जितने कि उनके मालिक. कर्मचारी ठाले बैठे हैं. छंटनी से दुखी हैं. बजट में राहत नहीं मिलने से निराश भी हैं लेकिन सुशील कुमार जैसों ने बीजेपी से आस छोड़ी नहीं है. वह कहते हैं कि बीजेपी से जुड़े रहना उनकी मजबूरी है और मोदीजी का साथ नहीं छोड़ने वाले हैं. उनके साथ धर्मबीर नोटबंदी के फैसले से खुश हैं. उन्हे इंतजाम में ढिलाई का दुख है जिसके लिए वह बैंक मैनेजरों को दोषी मानते हैं और उन्हे लगता है नोटबंदी बीजेपी के लिए वोट लेकर आएगी.
गली के बाहर आए तो मिल गये विपिन रस्तोगी. उम्र करीब पचास साल. दुबली पतली काया. नुक्कड़ पर चाय की दुकान चलाते हैं और अंदर से मोदी भक्त नजर आते हैं. दार्शनिक अंदाज में कहने लगे कि जाति और धर्म में पूरे देश की तरह यूपी को भी नेताओं ने बांट दिया है. मुसलमानों का रुझान उनकी नजर में अखिलेश की तरफ है हालांकि वह मानते हैं कि मुसलमानों को यह मुगालफत है कि बीजेपी उनकी दुश्मन है लेकिन बीजेपी भी एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं देकर गलती करती है और मुसलमानों को अपने खिलाफ कर लेती है.
अगर आंकड़ों की बात करें तो दूसरे चरण में 11 जिलों की 67 विधान सभा सीटें आती हैं. मुरादाबाद. बिजनौर. संभल. पीलीभीत. सहारनपुर. रामपुर. बरेली. अमरोहा जैसे जिले आते हैं. 2012 के चुनावों में 67 सीटों में से समाजवादी पार्टी को 34 सीटें मिली थी. मायावती को 18 और बीजेपी को दस सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस के हाथ सिर्फ दो सीटें आई थी जो अजीतसिंह के राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन में थी. इस बार साइकिल के हैंडल पर हाथ है. लोगों ने टीवी पर अखिलेश यादव और राहुल गांधी के रोड शो देखे हैं.
उससे गठबंधन को कितना फायदा होगा यह तो पता नहीं लेकिन दोनों चर्चा में जरुर आ गये हैं. खासतौर से मुस्लिम मतदाताओं में से एक बड़े वर्ग को इस में बीजेपी को हराने की संभावनाएं नजर आने लगी हैं. यूपी की 403 सीटों में से 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर तीस फीसद से ज्यादा है. वैसे दिलचस्प है कि मुस्लिम आबादी वाले पहले छह जिले इसी चरण में आते हैं. इनका रुख तय करेगा कि दूसरे चरण की 67 सीटों में साइकल सरकेगी. हाथी चलेगा या फिर विभाजन से कमल खिलेगा.
मुरादाबाद के आलावा रामपुर. सहारनपुर. अमरोहा. संभल और बिजनौर में मुस्लिम आबादी चालीस फीसद से ज्यादा है और निर्णायक असर रखती है. यहां ज्यादा लोग अखिलेश को पंसद कर रहे हैं लेकिन मायावती के राज को भी लोग भूले नहीं हैं. कबाब बना रहे अतीकुल रहमान तो बच्चों की जिद में अखिलेश को वोट देने की सोच रहे हैं. कहने लगे कि अखिलेश ने बच्चों को लैपटाप दिया. वजीफा दिया तो बच्चे खुश हैं और कह रहे हैं कि इस बार अखिलेश को ही वोट देना है. हम बच्चों के साथ चलेंगे. साइकिल की दुकान चलाने वाले अबुल भी हां में हां मिलाते हैं हालांकि बहुत कुरेदने पर स्वीकारा कि कानून व्यवस्था तो मायावती के राज में बेहतर हुआ करती थी. सपा के सत्ता में आते ही सपाई बहुत उत्पात मचाते हैं और ज्यादातर थानों में यादव लग जाते हैं जो किसी की नहीं सुनते. मुरादाबाद से बाहर निकले तो वहां मिले गन्ना किसान नाजिम को भी मायावती की पुलिस-प्रशासन पर पकड़ अभी तक याद है.कहने लगे कि मायावती के समय पुलिस कप्तान हो या कलेक्टर मुंह नहीं खोल पाते थे. मायावती कस कर रखती थी.
गन्ना किसान मोहम्मद यासीन का याद है कि मायावती के समय चीनी मिल मालिक ने गन्ने का पैसा रोक दिया तो शिकायत मायावती तक पहुंचाई गयी और मायावती ने चीनी मिल मालिक से बकाया पैसा दिलवा दिया था लेकिन यहां तो कोई सुनता ही नहीं.
उधर मुरादाबाद के शहर मुफ्ती अब्दुल कलीमी का कहना था कि अभी कशमकश का माहौल है. हालाता का जायजा लेकर वोटिंग से एक दिन पहले ही अपील की जाएगी जिसपर आम मुसलमान यकीन करेगा. उनकी नजर में जो भी बीजेपी को हराने की हालत में होगा उसे मुस्लिम वोट देगा वो चाहे मायावती के दल का हो या अखिलेश के. हमने पूछा कि यह अंदाजा कैसे लगेगा कि कौन बीजेपी को हराने की स्थिति में है. इस पर मुस्करा दिये. यह तो वोटिंग से एक रात पहले तय किया जाएगा और पैमाना भी हमीं तय करेंगे. तो यह बात आम मुस्लिम तक कैसे पहुंचेगी. यह सवाल पूछा तो हंसने लगे. साथ के स्थानीय पत्रकारों की तरफ इशारा करके कहा कि यह लोग गली गली तक यह बात पहुंचा देंगे.
दूसरा चरण दरअसल किसानों का है. मजदूरों का है. मजदूर मालिकों का है. तीनों ही वर्ग अपने अपने दुखों से दुखी नजर आता है. गन्ना किसान दुखी है कि पिछले साल मई में सहारनपुर आए मोदीजी लतबयानी कर गये कि किसानों के सिर्फ 600 -700 करोड़ ही बकाया हैं जबकि उस दिन तक गन्ना कमीश्नर की रिपोर्ट के अनुसार पांच हजार करोड़ का बकाया था.
गन्ना किसान अखिलेश सरकार से भी दुखी है जिसने पिछले तीन सालों में चीनी मालिकों के दो हजार करोड़ माफ कर दिये जो उन्हें ब्याज के रुप में किसानों के चुकाने थे. इस बार अखिलेश सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्शदायी मूल्य ( एसएपी ) 280 रुपये प्रति टन से बढ़ाकर 305 रुपये कर दिया है लेकिन किसान इससे खुश नहीं है. कहते हैं कि पिछला बकाया दिला दो तो मेरहबानी होगी. यहीं ट्रैक्टर पर गन्ना तुलवाने आए नौजवान किसान मोहसिन. से मुलाकात हुई. बोले कि यूपी का मजदूर किसान भेड़ है जिस पार्टी में जाएगा वह मुड़ेगा.....सभी पार्टिया मूड़ती हैं. है न मार्के की बात.