नई दिल्ली: गुजरात में पहले चरण की 89 सीटों के लिए आज वोटिंग होगी. पहले चरण में सभी दलों की नजरें राजकोट और सूरत पर टिकी हैं. इन दो जिलों की सीटों पर हार-जीत से गुजरात में जीत की तस्वीर बदल जाएगी. हमारी इस खास रिपोर्ट में जानिए राजकोट और सूरत की अहमियत.

सबसे पहले राजकोट के बारे में जानें

राजकोट में कुल आठ विधानसभा सीट आती हैं. साल 2012 में इनमें से चार सीट पर बीजेपी जीती थी और चार पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. इस बार भी राजकोट में कांटे की टक्कर नजर आ रही है. राजकोट पश्चिम सीट पर बीजेपी के हाई प्रोफाइल प्रत्याशी और गुजरात के सीएम विजय रूपाणी को कांग्रेस के इंद्रनील राज्यगुरू से कड़ी चुनौती मिल रही है.

2014 के उपचुनाव में सीएम रुपाणी ने दर्ज की थी जीत

इस सीट को बीजेपी के लिए सुरक्षित माना जाता रहा है. यहां पर बीजेपी 1985 से कभी हारी नहीं है. साल 2002 में इसी सीट पर नरेंद्र मोदी ने चुनाव लड़ा था. बाद में मोदी मणिनगर सीट से चुनाव लड़ने लगे थे. साल 2014 में इसी सीट पर हुए उपचुनाव में रूपाणी ने जीत हासिल की थी. राजकोट दक्षिण में भी कड़ी टक्कर नजर आ रही है. यहां पटेल आबादी बीस फीसदी से ज्यादा है. यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने पटेल उम्मीदवार उतारे हैं.

राजकोट शहर का इतिहास

सन 1612 ई. में राजकोट शहर की स्थापना जाडेजा वंश के ठाकुर साहब विभाजी जाडेजा ने की थी. राजकोट शहर महात्मा गांधी से भी जुड़ा है. यहीं महात्मा गांधी का बचपन बीता है. यहीं से उनके शुरुआती स्कूली शिक्षा ली. आज राजकोट शहर को सोने-चांदी के बड़े बाजार, वाहनों के पुर्जों के उत्पादन और लघु उद्योगों के लिए जाना जाता है.

सूरत के बारे में जानें

सूरत में बीजेपी और कांग्रेस ने पूरी ताकत झौंक रखी है. सूरत में गुजरात की कुल आबादी का 10 फीसदी हिस्सा है. यहां कुल 16 विधानसभा सीटें हैं. 2012 में 16 में से 15 बीजेपी के पास थीं. 16 में से 5 सीटें पाटीदार बहुल इलाके में हैं. इसलिए इस बार उन पांच सीटों पर कांटे की टक्कर है. पूरे दक्षिण गुजरात में बीजेपी को 35 में से 28 सीट हासिल हुई थीं.

कांग्रेस को उम्मीद है कि पाटीदारों और कारोबारियों की नाराजगी से वो बीजेपी के गढ़ में उसे पस्त कर पाएगी. वहीं बीजेपी को विश्वास है कि उसके सूरत के गढ़ में कोई सेंध नहीं लगा सकता. सूरत की सभी 16 सीटों पर वोटिंग आज होनी है और नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे.

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