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गुजरात चुनाव स्पेशल: क्या आपने देखा है गांधी का गोधरा?
गोधरा में गांधी आश्रम है, जहां साल 1917 में महात्मा गांधी ने परिषद की बैठक बुलाई थी. यहां उन्होंने छुआछूत के खिलाफ बैठक की थी. साथ ही आज़ादी की लड़ाई को मजबूती दी.
गांधीनगर: गुजरात का गोधरा महज़ के एक शहर का नाम ही नहीं बल्कि अपने अंदर दंगे और हिंसा इतिहास समेटे हुए है. साल 2002 इसके बाद इस शहर का नाम जब भी ज़हन में आता है एक अलग तस्वीर दिमाग़ में उभरती है, वो तस्वीर है बर्निंग ट्रेन और दंगो में सुलगते गुजरात की. गुजरात दंगो ने गुजरात ही नहीं नहीं देश की सियासत को बदल कर रख दिया. लेकिन क्या आपको मालूम है जिस गोधरा को हमने 2002 के बाद से अलग नज़रिए से देखा उसके इतिहास में अहिंसा की शिक्षाएं दर्ज हैं. ये गोधरा महात्मा गांधी का गुजरात है.
गोधरा में1917 में गांधी जी ने बुलाई थी परिषद की बैठक
गोधरा में गांधी आश्रम है, जहां साल 1917 में महात्मा गांधी ने परिषद की बैठक बुलाई थी. यहां उन्होंने छुआछूत के खिलाफ बैठक की थी. साथ ही आज़ादी की लड़ाई को मजबूती दी.
एबीपी न्यूज़ जब गांधी आश्रम पंहुचे तो यहां बच्चे रात का खाना खा रहे थे. इस गांधी आश्रम में 5वीं से 12वीं तक स्कूल चलता है. सभी 35 छात्रों के लिए यहां छात्रावास भी है. यहां पढ़ने वाले सभी बच्चे दलित हैं. गांधी आश्रम के संचालक कांति परमार बताते हैं कि गांधी जी ने यहां छुआछूत के खिलाफ परिषद की बैठक लगाई थी. यहां उन्होंने प्रार्थना सभा की थी और पूछा था कि छुआछूत के खिलाफ कौन लड़ेगा?
अब गोधरा में शांति है- कांति परमार
अहिंसा की इस धरती पर कांति परमार से जब एबीपी न्यूज़ ने 2002 में हुई हिंसा के बारे में सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि शांति होनी चाहिए, अब यहां शांति है. यहां पढ़ने वाले 11वीं के छात्र दानेश्वर कहते हैं, ‘’यहां पढ़कर हम गांधी के आदर्शों पर चलने की कोशिश करते हैं. हमेशा गांधी जी ने सत्यता का पाठ पढ़ाया उसी शिक्षा को हम भी आगे बढ़ाएंगे.’’
1917 में पहली बार हुई थी गांधी और सरदार पटेल की मुलाकात
गोधरा की ही धरती पर साल 1917 में गांधी और सरदार पटेल की पहली मुलाक़ात हुई थी. गोधरा में ही सरदार पटेल वक़ालत करते थे. एबीपी न्यूज़ बंद पड़ी उस गोधरा कोर्ट भी पंहुचा जहां पटेल ने कई साल वकालत की. हालांकि बाद में इसे ज़िला मैजिस्ट्रेट का दफ्तर बना दिया गया था, लेकिन ये दफ्तर भी बाद में कहीं और शिफ्ट कर दिया गया. फिलहाल इस जगह ताला लगा हुआ है.
यहां पिछले दो बार से कांग्रेस से सीके राउल जीतते रहे हैं. लेकिन सीके राउल ने इस बार बीजेपी से पर्चा भरा है. 30 से 35 प्रतिशत इस सीट पर मुस्लिम हैं. बदले चुनावी हालात पर एबीपी न्यूज़ ने गोधरा की जनता से यहां के मुद्दे जाने और उनकी सियासी रुख की नब्ज टटोलनी चाही.
क्या कहते हैं इलाके के लोग?
एडवोकेट आबिद शेख कहते हैं, ‘’राउल जी के बीजेपी में जाने से कोई कंफ्यूजन नहीं है. कंफ्यूजन बीजेपी वालों को होने वाली है, क्योंकि यहां रोज़गार नहीं है और शिक्षा व्यापार में बदल गयी है.’’
एक अन्य शख्स बताते हैं, ‘’यहां आरोग्य की बड़ी समस्या है. डॉक्टरों की सुविधा नहीं है.’’ वहीं राजेश पटेल नाम के शख्स कहते हैं, ‘’कोई भी विधायक आये रोज़गार की समस्या को हल करे और यहां दूसरा जीएसटी को नियंत्रण किया जाना जरूरी है.’’
राजेश पटेल यह भी बताते हैं कि साल 2002 के बाद से यहां कोई दंगा फसाद नहीं हुआ है, लेकिन गोधरा से धंधा-रोज़गार सब माइनस हो गया है. युवा मिखाइल जोसेफ कहते हैं गोधरा का युवा बेरोज़गार है. यहां के युवाओं को नौकरी के लिए दूसरी जगह जाना पड़ता है.
GST से परेशान हैं दुकानदार
नितिन शाह नाम के शख्स पिछले 15 साल से गोधरा में कपड़े की दुकान चलाते हैं. नितिन कहते हैं, ‘’जीएसटी के बाद धंधा कम हो गया है. ग्राहक नहीं हैं. सब जगह जीएसटी कम होना चाहिए.’’ चुनावी माहौल पर नितिन कहते हैं कि बीजेपी को जीएसटी से नुकसान उठाना पड़ेगा.
सियासी दलों के नुमाइंदों से बातचीत
कांग्रेस से विधायक बने राउल जी के बीजेपी में चले जाने से कांग्रेस पर क्या फर्क पड़ेगा? इसके जवाब में कांग्रेस के ज़िला अध्यक्ष अजीत सी भाटी कहते हैं कि गोधरा का इतिहास रहा है कि ज़्यादातर यहां कांग्रेस ने जीत हासिल की है. मतदाताओं का रुझान कांग्रेस की तरफ है. माइनॉरिटी का रुझान भी कांग्रेस की तरफ़ रहता है. राउल जी के बीजेपी में जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता.
वहीं, राउल जी कहते हैं कि हमने सभी वर्गों के लिए बराबर काम किया है. इससे हमें सभी वर्गों और धर्मो के लोगों का वोट मिलेगा. हिन्दू-मुस्लिम समाज में बराबर ग्रांट बांटी है.
कौन हैं सीके राउल?
आपको बता दें कि सीके राउल वही विधायक हैं, जिन्होंने सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव में विरोध में वोट डाला था. राउल का दल बदलने का पुराना इतिहास रहा है. 1990 में इन्होंने जनता दल से चुनाव जीता था. उसके बाद 1992 और 1995 में बीजेपी से विधायक बने. साल 2007 और 2012 का चुनाव इन्होंने कांग्रेस से जीता. अब फिर बीजेपी की नैया पार सवार हैं.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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