पूरी खबर: विकास से शुरू होकर गुजरात चुनाव गालियों पर आकर क्यों टिक गया?
अब सवाल ये उठता है कि चुनाव में जनता के विकास की बात होनी चाहिए या गालियों की ? क्या गालियों को भावनात्मक तौर पर वोटर को जोड़कर वोट हासिल किया जा सकता है ?
नई दिल्ली: गुजरात विधानसभा चुनाव में लगातार नेताओं की भाषा का स्तर गिरता जा रहा है. गुजरात विधानसभा चुनाव शुरू हुए तो बहस हो रही थी क्या विकास पागल हो गया है? विकास के मुद्दे पर चुनाव के पहले राउंड में आरोप-प्रत्यारोप चल रहा था लेकिन जैसे जैसे चुनाव में सरगर्मी बढी, चुनाव में प्रचार ही भटक गया. क्योंकि जनता के मुद्दों को श्रद्धांजलि देकर धर्म, जाति और फिर गालियों ने विकास की जगह ले ली. गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान आज हो रहा है. और गुजरात की जनता के सामने वोट मांगने वाले नेता विकास नहीं सिर्फ गाली से जनता को इमोशनली अटैच करके वोट मांग रहे हैं. आखिर क्यों चुनाव में गालियों का जोर है ? विकास से शुरु होकर चुनाव गालियों पर आकर क्यों टिक गया ? हर रैली में प्रधानमंत्री गालियों का इतिहास खंगालकर बोलने लगे.
गुजरात के चुनाव में जब जनता पहले चरण की 89 सीटों पर वोटिंग करने पहुंची, तब तक उसके सामने सड़क, बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल के मुद्दे नहीं, गालियों के विकास की राजनीति खड़ी की जा चुकी थी. जिसमें कांग्रेस नेता सलमान निजामी के एक ट्वीट से गालीकांड का नया अध्याय आया. सलमान निजामी ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में कहा है, ‘’वायरल हो रहे ट्वीट साल 2013 के हैं और यह फेक ट्वीट थे. इस बारे में मैंने साल 2015 में पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी.’’ उन्होंने कहा है कि मैं कांग्रेस का सदस्य हूं और 'हर घर से अफजल निकलेगा' वाला ट्वीट मेरा नहीं है. मेरा अकाउंट हैक हो गया था.’’(सलमान निजामी का पूरा विवाद यहां पढ़ें)
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गुजरात के चुनाव में वोटिंग से ठीक तीन दिन पहले अचानक गाली कांड की वजह कांग्रेस से निलंबित हो चुके नेता मणिशंकर अय्यर का बयान बना. इसके बाद हर चुनावी रैली में प्रधानमंत्री कांग्रेस के नेताओं की तरफ से दी गई गालियों का इतिहास खंगाल कर जनता को वर्तमान में याद दिलाकर गुजरात की सत्ता का भविष्य बीजेपी को दिलाने में जुट गए. तो कांग्रेस भी विरोधियों से मिली गाली याद दिलाने लगी.नहीं थम रहा 'नीच विवाद', अब पीएम मोदी ने बताया- किस कांग्रेसी ने दी कौन सी गाली?
विकास के मुद्दे पर गुजरात के चुनाव में जो बहस सबसे पहले शुरु हुई थी. वो राहुल गांधी के हिंदू-गैर हिंदू-जनेऊधारी हिंदू विवाद तक पहुंची. फिर राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की खबरों पर औरंगजेब राज में बदल गई. आगे चुनाव में राम मंदिर पर मंथरा और खिलजी-बाबर के वंशज की बातें होने लगीं. इसके बाद मणिशंकर अय्यर के नीच वाले बयान से गालीकांड में बदल गई. जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात और गुजरातियों की अस्मिता से जोड़कर भावनाओं के साथ जोड़ना शुरु कर दिया. गुजरात में दम तोड़ रहा है विकास का 'अश्वमेध घोड़ा'
अब सवाल ये उठता है कि चुनाव में जनता के विकास की बात होनी चाहिए या गालियों की ? क्या गालियों को भावनात्मक तौर पर वोटर को जोड़कर वोट हासिल किया जा सकता है ? क्या शहरी वोट को स्विंग करने के लिए गालियों को सम्मान से जोड़ा गया ? आखिर मतदान से तीन दिन पहले ही अचानक चुनाव में गालियों का मुद्दा क्यों उठा ?