चुनाव में बीजेपी का मुख्य हथियार अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा है इसमें कोई दो राय नहीं है. साल 2014 के बाद से बीजेपी ने लगभग हर चुनाव पीएम मोदी को ही आगे करके लड़ा है.
जिस राज्य में विधानसभा चुनाव हुए वहां पर बीजेपी मुख्यमंत्रियों को भी चेहरा बताती रही है. साल 2018 में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे और साल 2022 में यूपी में योगी आदित्यनाथ भी चेहरा थे. वहीं इन चुनावों में बीजेपी का सबसे मुख्य हथियार हिंदुत्व हमेशा से ही रहा है.
बात करें गुजरात की तो इसे बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाता रहा है और पीएम मोदी इसके सबसे बड़े पोस्टर ब्वॉय रहे हैं. बीजेपी बीते 27 सालों से सत्ता में है जिसमें लगातार तीन बार मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे हैं.
गुजरात के चुनाव में हिंदुत्व के साथ-साथ पटेल समीकरण भी हमेशा से ही मुख्य भूमिका निभाते रहे हैं. साल 2017 के चुनाव में पटेल आरक्षण आंदोलन की वजह के बीजेपी को खासा नुकसान हुआ था. पार्टी 99 सीटों पर अटक गई थी. कांग्रेस को इस आरक्षण का फायदा मिला था. हालांकि सरकार बीजेपी ने ही बनाई थी और बाद में हुए उपचुनाव में बीजेपी की सीटें बढ़ गईं.
लेकिन इस बार के चुनाव में बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. बीजेपी ने इस बार अपना पूरा फोकस प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज पर किया गया है और ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि कोरोना के बावजूद भी राज्य में विकास कामों को रुकने नहीं दिया गया है.
बीजेपी की चुनावी रणनीति में इस बार मुख्यमंत्री का कोई खास जिक्र नहीं है और साथ ही हिंदुत्व का तड़का भी गायब है. गुजरात गौरव यात्रा केंद्र बिंदू पीएम मोदी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, आनंदी बेन पटेल और सीएम भूपेंद्र पटेल का जिक्र कम ही है. सीएम भूपेंद्र पटेल इस यात्रा में कहीं-कहीं हिस्सा लेते हैं.
बीजेपी की रणनीति से लग रहा है पार्टी ने गुजरात में हिंदुत्व की जगह अब मोदित्व को मुख्य हथियार बनाया है. बीजेपी के तरकश में मोदित्व ही नया तीर है जिसमें नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए कामों का जिक्र है. इस नई रणनीति में मुख्यमंत्री और या पूर्व मुख्यमंत्री सबकी भूमिका सीमित है. इसके साथ ही इस बार पाटीदार आंदोलन जैसी भी कोई बात नहीं है.
इस आंदोलन के प्रमुख चेहरा हार्दिक पटेल कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. पटेल हमेशा से ही बीजेपी के परंपरागत वोटर रहे हैं. इसलिए इस जातीय समीकरण के इस बार गड़बड़ाने का खतरा नहीं है.
गुजरात गौरव यात्रा में गुजराती अस्मिता के साथ-साथ पीएम मोदी के गर्वनेंस, नर्मदा कैनाल, स्टेट्स ऑफ यूनिटी और अनुच्छेद 370 को खत्म करने का ज्यादा जिक्र किया जा रहा है.
इसके साथ ही बीजेपी का फोकस आदिवासी वोटरों पर है. पीएम मोदी ने कुछ महीने पहले ही गुजरात में आदिवासी सम्मेलन में हिस्सा भी लिया था. गुजरात में 14.8 फीसदी आदिवासी वोटर हैं जो 27 सीटों पर काफी प्रभावी हैं. गुजरात गौरव यात्रा का रूट भी इसी हिसाब से तय किया गया है.
गौरतलब है कि 2017 में भी, मोदी ने अक्सर गुजरात की यात्रा की थी और विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान से पहले आधिकारिक कार्यक्रमों में भीड़ को संबोधित किया था. चुनाव की तारीखों के एलान के बाद तो उन्होंने इस सूबे में रैलियों की लगभग बौछार कर डाली थी. ये मोदी के प्रधानमंत्री बनने के लिए राज्य छोड़ने के बाद गुजरात का पहला विधानसभा चुनाव था.
सबसे बुरी तरह प्रभावित गुजरात के व्यापारियों के साथ देश विमुद्रीकरण (Demonetisation) से जूझ रहा था. इसके अलावा, हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आंदोलन की वजह से ग्रामीण गुजरात में बेहद अशांति थी. इन सबके बीच विधानसभा चुनाव से पहले हुए स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस के फिर से उभरने के संकेत मिले थे.
गुजरात को हिंदुत्व की प्रयोगशाला में बदलने के बावजूद मोदी-शाह की जोड़ी 182 सीटों में से कांग्रेस के 149 के रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाई है. ये रिकॉर्ड पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1980 में बनाया था.
गुजरात देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है. शिक्षा, सेहत, आवास, सड़क, इंडस्ट्री का विकास ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर 100 नंबर मिले हैं. इसके बाद भी बीजेपी इस राज्य को लेकर कोई कोताही नहीं बरत रही है.
इसी राज्य से आने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह विधानसभा चुनावों के लिए भी फुल फॉर्म में नजर आ रहे हैं. मोदी के करिश्मे के बारे में पता है, लेकिन इसके बाद भी राज्य के बीजेपी कार्यकर्ताओं को उनकी तरफ से केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
बीजेपी का साफ मानना है कि पटेल राजनीति के लिए भूपेंद्र चेहरा हो सकते हैं लेकिन राज्य के कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए बिना पीएम मोदी का नाम आगे लिए बिना काम नहीं चलेगा. कुल मिलाकर बीजेपी इस चुनाव को भी मोदी बनाम अन्य करने की कोशिश में है.
गुजरात विधानसभा चुनाव का गणित
गुजरात में विधानसभा की कुल 182 सीटें हैं जिनमें 40 सीटें आरक्षित हैं. इसमें 13 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए 27 सीटें हैं. इन सीटों पर जीत-हार तय करेगी कि सत्ता के सिंहासन पर कौन बैठेगा.साल 2017 के विधानसभा चुनावों की बात करे तो तब बीजेपी को 182 में से 99 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी.
तब कांग्रेस को 77, भारतीय ट्राइबल पार्टी को 2 एनसीपी को 1 तो 3 सीटें निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थीं. बीते विधानसभा चुनावों में उसके सामने कांग्रेस के अलावा कोई नहीं था, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी भी वहां अपनी धमक जमाने के लिए मैदान में है.
इसी के मद्देनजर बीजेपी ने आगामी चुनावों के लिए रणनीति में बदलाव किया है. गृहमंत्री अमित शाह बीजेपी के कद्दावर नेता भी हैं और वो ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ना चाह रहे हैं, जिससे बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने में परेशानी हो. यही वजह है कि यहां खुद पीएम मोदी की छवि को कैश कराने का कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है.
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