Gujarat Politics: पाटीदार नेता नरेश पटेल, साल के अंत मे होने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर बीते कुछ हफ्तों से चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं. बीते शुक्रवार को दिल्ली आए नरेश पटेल एक दिन बाद प्रशांत किशोर से मिलकर गुजरात लौट गए जबकि उनके सोनिया गांधी से मिलने के कयास लगाए जा रहे थे. सूत्रों के मुताबिक उनके कांग्रेस में शामिल होने की प्रबल संभावना है लेकिन इस पर फैसला लेने में हो रही दे रही से हार्दिक पटेल जैसे नेता पार्टी के अंदर से ही सवाल खड़े कर रहे हैं. आखिर नरेश पटेल को किसका इंतजार है और क्या नरेश पटेल गुजरात की सत्ता में वापसी कांग्रेस का 27 सालों का इंतजार खत्म करवा पाएंगे? करीब 56 साल के नरेश पटेल अपने सामाजिक गतिविधियों की वजह से बीते दो दशकों में पाटीदारों के सबसे बड़े समाजिक नेता के तौर पर उभरे हैं. नरेश पटेल पाटीदारों की दो उपजातियों में से बड़े वर्ग लेउआ पटेलों की कुलदेवी खोलड माता के नाम पर बने खोडलधाम मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख हैं.
क्या नरेश पटेल के पास है जीत की चाबी?
बड़े सामाजिक नेता की पहचान के साथ नरेश पटेल सफल व्यवसायी भी हैं. अब तक एक भी चुनाव ना लड़ने वाले नरेश पटेल के राजनीतिक महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी ने भी उन्हें न्यौता दिया था. बीजेपी की भी कोशिश रही है कि नरेश पटेल उसके विरोधी खेमे में शामिल ना हो जाएं. नरेश पटेल के मुताबिक अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत को लेकर वो लोगों के बीच सर्वे करवा रहे हैं लेकिन सूत्रों के मुताबिक नरेश पटेल काफी समय से आम आदमी पार्टी के संपर्क में नहीं हैं और उनका कांग्रेस में शामिल होना लगभग तय है. यह भी तय है कि कांग्रेस उन्हें ही गुजरात विधानसभा चुनाव में अपना चेहरा बनाएगी. इस पूरी रणनीति की पटकथा प्रशान्त किशोर ने लिखी है. सूत्रों के मुताबिक नरेश पटेल प्रशान्त किशोर के कांग्रेस के मंच पर आने और उनकी टीम के गुजरात में प्रचार की कमान सम्भालने का ही इंतजार कर रहे हैं.
क्या पीके संभालेंगे गुजरात में प्रचार की कमान?
सूत्रों के मुताबिक नरेश पटेल शुरू में ही कांग्रेस नेतृत्व के सामने शर्त रख दी थी कि गुजरात में प्रचार की कमान पीके ही संभालेंगे. नरेश पटेल को शामिल कराने को लेकर पहले अप्रैल का समय तय किया गया था लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने पीके पर मंथन में कुछ ज्यादा समय ले लिया जिस वजह से महीने भर की देरी हुई. अगले दस दिनों में प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की संभावना है. इसके साथ ही उनका मिशन गुजरात शुरू हो जाएगा. सामाजिक नेता के साथ-साथ नरेश पटेल की छवि उदारवादी है और उनका परिवार पहले से कांग्रेस के करीब रहा है. कांग्रेस को उम्मीद है कि सौराष्ट्र के साथ पूरे गुजरात की करीब 50-60 पाटीदार प्रभाव वाली सीटों पर नरेश पटेल के कारण उसे बड़ा लाभ होगा. गुजरात की कुल आबादी का करीब 13-14% पाटीदार हैं. लगभग 30 से 35 सीटें पाटीदार बहुल मानी जाती हैं. इसके अलावा इतनी ही सीटों पर पाटीदार वोटर जीत-हार में अहम भूमिका निभाते हैं. संख्याबल से भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि गुजरात की अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह पाटीदारों का नियंत्रण है. इनसब के बावजूद केशुभाई पटेल के बाद बीते दो दशकों में राज्य में कोई बड़ा पाटीदार नेता नहीं उभर पाया है.
गुजरात की राजनीति में पाटीदार समाज की भूमिका
अक्टूबर 2001 केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था. 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने पाटीदार समाज से आने वालीं आनंदी बेन पटेल को गुजरात की कमान सौंपी थी लेकिन करीब एक साल बाद शुरू हुए पाटीदार आरक्षण आंदोलन के कारण आनंदी बेन पटेल को कुर्सी छोड़नी पड़ी. पांच साल तक विजय रूपानी मुख्यमंत्री बने रहे लेकिन राजनीतिक माहौल भांपते हुए बीजेपी नेतृत्व ने बीते साल भूपेंद्र पटेल के रूप में एक बार फिर पाटीदार चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया. धारणा है कि भूपेंद्र पटेल को मजबूत नेता नहीं माना जाता. इन्हीं वजहों से एक मजबूत पाटीदार नेता की कमी को कांग्रेस नरेश पटेल के जरिए भरने की कोशिश कर रही है. पाटीदार आरक्षण आंदोलन से उभरे हार्दिक पटेल के जरिए कांग्रेस युवाओं को भी रिझाने की कोशिश कर रही है. अहम बात यह भी है कि जहां नरेश पटेल लेउआ पाटीदार हैं तो हार्दिक कड़ुआ पाटीदार. मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी कड़ुआ पाटीदार ही हैं.
क्या है कांग्रेस की इस बार की रणनीति?
बीते चार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करीब 35% से 40 % के आसपास वोट मिले हैं. सत्ता से बाहर रहने के बाद भी कांग्रेस को गुजरात में मुख्य रूप से अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यकों के साथ ओबीसी के एक वर्ग का वोट मिलता रहा है. बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करीब 41% वोट मिले थे. इस बार कांग्रेस की रणनीति अपने परंपरागत वोट को एकजुट रखते हुए पाटीदारों को गोलबंद कर 2017 के वोट में 7-8 % बढ़ोतरी करने की है ताकि वह बाजी पलट सके. सूत्रों के मुताबिक नरेश पटेल को लेकर कांग्रेस ने अंदरूनी सर्वे करवाए हैं जिसमें उसे यह सपना कुछ हद तक साकार होता हुआ दिख रहा है. लेकिन इस बार कांग्रेस के सामने आम आदमी पार्टी की चुनौती भी है जिससे उसे सत्ता विरोधी वोट बंटने का खतरा है.
दूसरी तरफ एक दुविधा यह भी है कि बड़े सामाजिक नेता होने के बावजूद नरेश पटेल राजनीतिक तौर पर कितने कामयाब होंगे! इन सब के साथ कांग्रेस के सामने हार्दिक पटेल की पहेली भी है क्योंकि एकतरफ तो वो नरेश पटेल को कांग्रेस में शामिल कराने में हो रही देरी को लेकर नाराजगी जता रहे हैं वहीं बीजेपी की तारीफ भी कर रहे हैं. बहरहाल प्रदेश कांग्रेस के तमाम बड़े चेहरों में पार्टी आलाकमान को दमखम नजर नहीं आ रहा. गुजरात में कांग्रेस का पूरा दारोमदार पीके की रणनीति और नरेश पटेल के चेहरे पर ही टिका है. पटकथा लिखी जा चुकी है सबको इंतजार आधिकारिक एलान का है. विदेश दौरे से लौट कर 1 मई को राहुल गांधी दाहोद में आदिवासी सम्मेलन को संबोधित करेंगे. उसके आसपास तस्वीर बहुत हद तक साफ होने की संभावना है. सब ठीक रहा तो 10 से 20 मई के बीच नरेश पटेल अपनी राजनीतिक पारी का शुभारंभ कर देंगे. इसके बाद उनकी असली परीक्षा शुरू होगी.
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