Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 उन पार्टी नेताओं के जीवन में नया सवेरा लेकर आया है जिन्हें सालों साइडलाइन कर दिया गया था. इस मामले में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं जिन्हें सालों से दरकिनार कर दिया गया था. ऐसे ही वडोदरा में, आगामी विधानसभा चुनावों ने दो नेताओं को फिर से मैदान में ला खड़ा किया है, जिन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में वडोदरा में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था. 


बालू शुक्ला बनाम सत्यजीत सिंह गायकवाड़


बीजेपी के नेता हैं बालकृष्ण शुक्ला जिन्हें बालू शुक्ला के नाम से भी जाना जाता है. बालू शुक्ला इस बार रावपुरा विधानसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेंगे. 2009 के संसदीय चुनावों में बालू शुक्ला के प्रतिद्वंद्वी, सत्यजीत सिंह गायकवाड़ थे, जो इस बार कांग्रेस के टिकट पर वडोदरा की सीमा से लगी वाघोडिया सीट से चुनाव लड़ेंगे.


गुजरात में कई लोगों का मानना ​​​​था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बालू शुक्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए काम किया था, जबकि पीएम मोदी के वडोदरा सीट खाली करने के बाद हुए उपचुनावों में भी उन्हें टिकट नहीं देकर सबको चौंका दिया था. बीजेपी ने 2014 के उपचुनाव में रंजन भट्ट को टिकट दिया और पार्टी ने 2019 में भी रंजन भट्ट को ही वडोदरा से उम्मीदवार बनाया. 


वहीं कांग्रेस नेता सत्यजीत सिंह गायकवाड़ ने 1996 लोकसभा चुनावों के इतिहास में सबसे कम मार्जिन (17 वोटों) से जीत हासिल की थी. कांग्रेस ने इसके बाद गायकवाड़ को 1998, 2004 और 2009 में लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव में टिकट देकर मौके दिए, लेकिन वह तीनों चुनावों में हार गए. मगर, 2009 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद, पार्टी ने गायकवाड़ को फिर कभी टिकट नहीं दिया. 


फतेह सिंह चौहान की भी वापसी


फतेह सिंह चौहान वडोदरा के पड़ोसी जिले पंचमहल के राजगढ़ विधानसभा क्षेत्र से 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव जीते थे. लेकिन इस बार के चुनाव में फतेह सिंह चौहान कलोल से बीजेपी ने उम्मीदवार घाषित किया है. राजगढ़ सीट अब मौजूद नहीं है. 2012 में, फतेह सिंह चौहान ने बीजेपी छोड़ दी और पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी में शामिल हो गए. चौहान फिर 2013 में लोकसभा चुनाव से पहले फिर से बीजेपी में शामिल हो गए थे.


यह भी पढ़ें: HP Assembly Election: हिमाचल की पहाड़ियों पर जीत हार की गणित के चर्चे, क्या इस बार बदलेगा रिवाज? जानिए- क्या कहता है इतिहास