Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया है. सरकार ने कहा कि 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि इन लोगों की रिहाई के लिए 1992 में बनी पुरानी नीति लागू होगी. इस नीति में 14 साल जेल में बिताने के बाद उम्र कैद से रिहा करने की व्यवस्था है. सरकार ने कहा कि कैद में सभी दोषियों का व्यवहार अच्छा था. 


हलफनामे में सरकार ने कहा, ''सभी लोग 14 साल से अधिक जेल में रहे हैं. इस मामले में PIL दाखिल होना कानून का दुरुपयोग है. किसी बाहरी व्यक्ति को आपराधिक मामले में दखल देने का अधिकार कानून नहीं देता है. सुभाषिनी अली और दूसरे याचिकाकर्ताओं का कोई मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हो रहा, जिससे वह PIL दाखिल कर सकें. याचिका खारिज की जाए.''


'राजनीतिक दल से जुड़ी हैं याचिकाकर्ता'


सरकार ने कहा कि यह आरोप गलत है कि इन लोगों को 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' कार्यक्रम के तहत छोड़ा गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन कर रिहाई हुई है. याचिकाकर्ता राजनीतिक दल से जुड़ी है. किसी भी याचिकाकर्ता का पूरे मामले से कोई संबंध नहीं है.


2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस पर 20 से अधिक दंगाइयों ने हमला बोल दिया था. इस दौरान गर्भवती बिलकिस समेत कुछ और महिलाओं का रेप किया गया. आरोपियों की तरफ से पीड़ित पक्ष पर दबाव बनाने की शिकायत मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया था. इसके बाद 21 जनवरी 2008 को मुंबई की विशेष सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को उम्र कैद की सजा दी थी.


15 अगस्त को बिलकिस मामले के दोषियों की रिहाई हुई. इसके खिलाफ सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, रेवती लाल और तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. अब मंगलवार (18 अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. 


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