Gujarat High Court: गुजरात उच्च न्यायालय ने अपने पिता की उस आपत्ति को खारिज कर दिया गया है, जिसमें उसने अपनी अलग पत्नी से जन्म ली हुई बेटी को संतान मानते हुए पासपोर्ट जारी किया था. वडोदरा स्थित शिक्षक और वर्तमान में गांधीनगर में तैनात एक आयकर अधिकारी 2013 में अपनी बेटी के जन्म के तुरंत बाद एक दूसरे से अलग हो गये थे. ये दोनो दंपति अब अदालत में बेटी की कस्टडी की लड़ाई लड़ रहे हैं.


पिता के पासपोर्ट में उनके नाम के इस्तेमाल को लेकर मंजूरी नहीं दिए जाने के बाद जस्टिस वी डी नानावती ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि लड़की को पहचान के प्रमाण के रूप में प्रदान किए गए दस्तावेजों के आधार पर उसकी मां के नाम वाला पासपोर्ट जारी किया जाए और उसका पहला सरनेम भी बरकरार रखा जाए.


कहां फंस रहा था कानूनी पेंच?
पासपोर्ट बनाने के लिए जारी किए गये नियमों की मानें तो क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने एक नाबालिग लड़की की उसको यात्रा करने देने के लिए उसके पिता की सहमति मांगी थी. पिता ने बच्चे को पासपोर्ट दिए जाने को मंजूरी दे दी थी लेकिन उन्होंने यह शर्त रख दी थी कि पासपोर्ट में बच्ची की मां और उसके ननिहाल के सरनेम का कोई जिक्र नहीं होना चाहिए.


फिर हाईकोर्ट से मिली राहत
इस शर्त पर पासपोर्ट कार्यालय ने लड़की को पासपोर्ट देने से मना कर दिया था लेकिन उसी समय लड़की की मां ने हाईकोर्ट का रुख किया और अपनी समस्या बताई. गुजरात हाईकोर्ट ने मामले को सुनने के बाद फैसला सुनाते हुए पासपोर्ट कार्यालय को मां को ही अभिभावक मानते हुए लड़की को पासपोर्ट जारी करने का आदेश दिया. साथ ही पिता की उस याचिका को भी खारिज कर दिय जिसमें उन्होंने सरनेम को लेकर अपनी शर्तें रखी थी. 


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