पहाड़ से लेकर मैदानी इलाकों में ठंड की दस्तक शुरू हो चुकी है, मगर गुरुवार को आए चुनावी नतीजों ने कई राज्यों की सियासी तपिश बढ़ा दी है. गुजरात के रिजल्ट से बीजेपी खुश है, तो हिमाचल के नतीजों ने कांग्रेस को भी जश्न मनाने का मौका दे दिया है.
बात उपचुनाव की करें, तो बिहार-यूपी में सत्ताविरोधी लहरें जमकर चली. यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर बीजेपी कैंडिडेट रघुराज शाक्य अपने सीट पर ही चुनाव हार गए. खतौली में भी बीजेपी जीत नहीं पाई. हालांकि, रामपुर सदर की जीत ने सरकार के लिए जरूर मरहम का काम किया.
बिहार में पाला बदलकर सत्ता में आए नीतीश पहले ही लिटमस टेस्ट में फेल हो गए. कुढ़नी में जदयू कैंडिडेट मनोज कुशवाहा को बीजेपी के केदार गुप्ता ने 3500 से ज्यादा वोटों से हराया. दिल्ली की सियासत पर नजर गड़ाए नीतीश कुढ़नी की हार से सन्नाटे में हैं.
दिसंबर-2022 के इस जनादेश का संकेत क्या है, आइए विस्तार से जानते हैं...
बात पहले गुजरात-हिमाचल चुनाव की
1. गुजरात में कांग्रेस को संदेश- गैरहाजिरी और सुस्त फैसले आत्मघाती
गुजरात की जनता ने जहां बीजेपी को वोट का बंपर ईनाम दिया है तो वहीं कांग्रेस को अहम संदेश. संदेश ये कि लोकतंत्र में गैरहाजिर रहना और सुस्त फैसले लेना आत्मघाती है. दरअसल, पूरे गुजरात चुनाव में कांग्रेस का सबसे बड़े चेहरा राहुल गांधी गायब रहे.
2017 चुनाव में राहुल गांधी ने गुजरात में 30 रैलियां की थी. इसका फायदा भी पार्टी को हुआ और कांग्रेस करीबी मुकाबले में 77 सीटों पर जीत हासिल की.
2022 में कांग्रेस ने रणनीति बदली और राहुल को गुजरात से दूर रखा. इस चुनाव में राहुल ने सिर्फ 2 रैलियां की, जिसका रिजल्ट कांग्रेस को मिली 17 सीटें है. कांग्रेस हाईकमान का सुस्त फैसला लेना भी पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ.
कांग्रेस ने राजीव सातव के निधन के 6 महीने बाद गुजरात में प्रभारी नियुक्त किया. कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी ने कैबिनेट मंत्रियों, महासचिवों और नेताओं की पूरी फौज उतार दी.
2. हिमाचल में राज बदला, रिवाज नहीं, गुटबाजी से जयराम की सत्ता अस्त
पहाड़ी राज्य हिमाचल में दोबारा सत्ता की गुत्थी सुलझाने में बीजेपी फ्लॉप रही. 2017 में 44 सीट जीतकर सरकार बनाने वाली बीजेपी इस बार 25 पर ही सिमट गई. इसी के साथ हर 5 साल में सरकार बदलने का रिवाज भी वहां कायम रहा.
सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी और बीजेपी संगठन के भीतर गुटबाजी जयराम सरकार पर भारी पड़ा. आलम ये रहा कि कद्दावर नेता प्रेम सिंह धूमल के गढ़ में कांग्रेस ने 5 में से 4 सीटों पर जीत दर्ज कर ली.
जनता जयराम सरकार के विकास कामों से भी संतुष्ट नजर नहीं आई. सरकार के 10 में से 8 मंत्री चुनाव हार गए. हमीरपुर समेत कई जिलों में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी.
अब बात उपचुनाव की...
मुलायम का मैनपुरी और मजबूत, दलबदलू को जनता ने नकारा
सपा के मजबूत किले को ढहाने में जुटी बीजेपी को मैनपुरी में झटका लगा है. मुलायम के निधन से खाली सीट पर हुए उपचुनाव में सपा के डिंपल यादव ने 2 लाख 88 हजार वोटों से जीत दर्ज की है. बीजेपी ने सपा से आए रघुराज शाक्य को टिकट दिया था. हालांकि, बीजेपी का यह दांव उल्टा पड़ा और शाक्य अपने बूथ पर भी चुनाव हार गए.
पहली बार सपा प्रत्याशी ने मैनपुरी लोकसभा की पांचों सीट सदर, जसवंतनगर, किशनी, भोगांव और करहल पर लीड मिली. 2019 में मुलायम भोगांव से पिछड़ गए थे, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में भोगांव और सदर सीट सपा हार गई थी.
आजम के असीम को रामपुर ने ठुकराया
आजम खान की सीट रामपुर सदर में बीजेपी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की है. बीजेपी के आकाश सक्सेना ने आजम के करीबी असीम राजा को 34 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. रामपुर सीट पर आजम और उनके परिवार का करीब 45 सालों से कब्जा रहा है. हेट स्पीच में सजा पाने की वजह से आजम खान को यह सीट इसी साल गंवानी पड़ी थी.
रामपुर सीट पर मिली हार को सपा ने प्रशासन की जीत बताया है. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा- वहां बेईमानी से बीजेपी जीती है, हमारे पास रामपुर की जनता का आशीर्वाद भी है.
खतौली में जयंत का खेल, वेस्ट यूपी ने बढ़ाई बीजेपी की टेंशन
वेस्ट यूपी के किसान बहुल सीट खतौली में राष्ट्रीय लोकदल के मदन भैया ने बीजेपी के राजकुमारी सैनी को करीब 22 हजार वोटों से चुनाव हराया. 2017 और 2022 के चुनाव मे बीजेपी के विक्रम सैनी ने यहां से जीत दर्ज की थी, लेकिन दंगे के केस में दोषी पाए जाने के बाद उन्हें यह सीट गंवानी पड़ी.
खतौली चुनाव में जाट-मुस्लिम-गुर्जर और दलित वोटर्स जयंत के साथ रहे. वहीं श्रीकांत त्यागी केस के बाद बीजेपी से नाराज चल रहे त्यागी समाज खतौली में सरकार के खिलाफ जमकर वोटिंग किया. खतौली के नतीजे ने वेस्ट यूपी में बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है.
कुढ़नी में लालू-नीतीश के कैंडिडेट पर जनता को भरोसा नहीं
बिहार के कुढ़नी सीट पर महागठबंधन से जदयू के सिंबल पर मनोज कुशवाहा मैदान में उतरे थे. कुशवाहा नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं. संख्या के लिहाज से भी कुढ़नी सीट पर कुशवाहा वोटर्स सबसे ज्यादा है, लेकिन फिर भी यहां से बीजेपी के केदार गुप्ता चुनाव जीत गए.
चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी यादव मनोज कुशवाहा को लालू-नीतीश के कैंडिडेट बताते रहे, लेकिन वोटर्स ने उन पर भरोसा नहीं किया. समीकरण के लिहाज से महागठबंधन के लिए सेफ सीट कुढ़नी में कैंडिडेट सेलेक्शन ही नीतीश-लालू को भारी पड़ गया.