Jignesh Mevani Bail: विधायक जिग्नेश मेवानी को राहत, पीएम मोदी पर किए गए ट्वीट्स मामले में असम कोर्ट से मिली जमानत
असम के कोकराझार की एक अदालत ने गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी को रविवार को एक दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा था.
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पीएम नरेंद्र मोदी पर किए गए ट्वीट्स को लेकर गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी को असम की अदालत ने जमानत दे दी है. असम पुलिस ने मेवानी को प्रधानमंत्री के खिलाफ ट्वीट करने के मामले में बुधवार को गुजरात से गिरफ्तार किया था. न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने मेवानी को रविवार को एक दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा था.
मेवानी की तीन दिन की पुलिस हिरासत खत्म होने के बाद रविवार देर शाम उन्हें अदालत में पेश किया गया था. इस मामले में जिरह दो घंटे से अधिक समय तक रात साढ़े नौ बजे तक चली थी. गले में असमिया गमछा लपेटे मेवानी को सीजेएम के आवास से कोकराझार जेल ले जाया गया था. मामले की सुनवाई सीजेएम के आवास पर हुई थी. इस बीच, कांग्रेस ने यहां मेवानी के समर्थन में धरना-प्रदर्शन किया था.
कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक मेवानी को प्रधानमंत्री के खिलाफ उनके कथित ट्वीट को लेकर कोकराझार पुलिस थाने में आईपीसी की विभिन्न धाराओं और आईटी अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज होने के बाद बुधवार रात गुजरात के पालनपुर से गिरफ्तार किया गया था. प्राथमिकी के अनुसार, उन्होंने कथित तौर पर एक ट्वीट किया था, जिसमें दावा किया गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'गोडसे को भगवान मानते हैं.'
मेवानी को गुरुवार सुबह गुजरात से गुवाहाटी और फिर सड़क मार्ग से कोकराझार ले जाया गया, जहां उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उन्हें तीन दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया था.
असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेन बोरा और विधायक दिगंता बर्मन व एस के राशिद ने पार्टी कार्यालय से कोकराझार पुलिस थाने तक एक मौन मार्च किया था, जहां मेवानी को उनकी पुलिस हिरासत के दौरान रखा गया था. मेवानी की रिहाई की मांग को लेकर कांग्रेस विधायकों और नेताओं ने प्रदर्शन भी किया था.
एआईयूडीएफ और माकपा सहित अन्य विपक्षी दलों के साथ-साथ राज्य के एकमात्र निर्दलीय विधायक ने भी पुलिस हिरासत के दौरान मेवानी से मुलाकात की थी और उन्हें अपना समर्थन देने का वादा किया था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को असम पुलिस द्वारा जिग्नेश मेवानी की गिरफ्तारी को 'अलोकतांत्रिक' और 'असंवैधानिक' करार दिया था.
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