गुजरात मॉडल : सरदार सरोवर डैम के विस्थापितों के लिए लगी पानी की टंकी 17 साल से खाली
नर्मदा नदी के ऊपर बना सरदार सरोवर डैम कच्छ सौराष्ट्र तक पानी पंहुचा रहा है. लेकिन गुजरात को पानी पिलाने वाले इस डैम को जिन लोगों ने अपनी ज़मीन दी वो किस तरह अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे हैं. इस पर एबीपी न्यूज़ की विशेष रिपोर्ट.
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गुजरात: नर्मदा के उपर बना सरदार सरोवर बांध कच्छ सौराष्ट्र तक पानी पंहुचा रहा है. लेकिन गुजरात को पानी पिलाने वाले इस डैम को जिन लोगों ने अपनी ज़मीन दी वो किस तरह अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे हैं. गुजरात चुनाव के दौरान बार-बार इस डैम का जिक्र आने के काऱण स्वाभाविक उत्सुकता उनका हाल जानने की हुई. औऱ वहां जो हाल मिला, यकीन मानिए इस रिपोर्ट को पढ़कर आपको सिस्टम से विश्वास उठ जाएगा. पढ़ें गुजरात के नर्मदा ज़िले से जावेद मंसूरी की विशेष रिपोर्ट.
जन्मदिन पर पीएम मोदी ने किया था सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन
पीएम मोदी ने अपने जन्मदिन पर सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन किया था. तब पीएम ने इसे गुजरात के विकास के लिए बड़ा कदम बताया. इस समय डैम की ऊंचाई 146 और लंबाई 1210 मीटर है. देश का तीसरा सबसे बड़ा डैम है ये. गुजरात की शान कहे जाने वाले इस सरदार सरोवर डैम को देखने के लिए गुजरात के अलग अलग हिस्सों से लोग पंहुचते हैं. ऐसे ही पहुंचे राजकोट के एक शख्स ने कहा सरदार सरोवर पर हमारा जीवन निर्भर है, मोदी ने कैनाल और पाइप लाइन द्वारा पानी सौराष्ट्र तक पंहुचाया.
कहां औऱ किस हाल में हैं नर्मदा के विस्थापित
लेकिन गुजरात की इस शान के बनने में अहम भूमिका उनकी रही है जिन्होंने अपनी जमीनें दी. अब उनके हालात कैसे हैं, ये जानना बेहद ज़रूरी है. डैम से एक नहर निकाली गई है जिसका पानी कच्छ सौराष्ट्र तक जाता है. नर्मदा के विस्थापित भी नहर से लगे इलाकों में रहते हैं. इस नहर से करीब एक किलोमीटर है गांव चिचड़या. इस गांव में उन विस्थापितों का पुनर्वास हुआ जिन्होंने अपनी ज़मीन सरदार सरोवर बांध के लिए दी थी. हमें यहां वर्सन भाई तड़वी मिले. वर्सन भाई और उनके परिवार का यहां 1989 में पुनर्वास हुआ. वर्सन भाई ने बताया कि 2001 में यहां गांव के लोगों के लिए पानी की टंकी लगाई गई लेकिन उसमें पानी नहीं आता.
17 साल हो गए लेकिन आज तक पानी नहीं पंहुचा
वर्सन भाई की बात की तस्दीक करने के लिए एबीपी न्यूज संवाददाता टंकी पर चढ़े. टंकी बिल्कुल खाली थी. अंदर इतना कूड़ा करकट था मानो सालों से इसमें पानी नही भरा गया हो. टंकी की कितनी क्षमता है इस बात की जानकारी तो नहीं मिल पाई लेकिन टंकी को देखकर लगता है कि पूरे गांव को पानी पिलाने के लिए काफी है जो फिलहाल बंद पड़ी है. टंकी से नीचे उतरने के बाद एक बार फिर वर्सन भाई से जाना कि उन्होंने कितने साल से इसमें पानी नहीं देखा. वर्सन भाई ने बताया कि पुनर्वास में रहे लोगों के लिए 2001 में ये टंकी बनाई ताकि हर घर को पानी पंहुचाया जा सके. 17 साल हो गए लेकिन आज तक पानी नहीं पंहुचा.
उद्घाटन के 15 दिन पहले नया बोरिंग लगवाया गया
टंकी के पास में एक नई बोरिंग मशीन नज़र आई. वर्सन भाई के मुताबिक 17 सितंबर को पीएम मोदी के सरदार सरोवर बांध के उद्घाटन के 15 दिन पहले नया बोरिंग लगवाया गया लेकिन पानी का इंतज़ार अब भी है. साथ ही जो बिजली कनेक्शन लगा वो भी खराब है. वर्सन भाई से बातचीत करने के बाद हम गांव के अंदर दाखिल हुए. गांव में घुस रहे थे तो एक सरकारी हैंडपम्प लगा मिला. शुक्र था वो चल रहा था. साथ ही हमें गांव में एक और सरकारी हैंडपम्प लगा नज़र आया. ये हैंडपम्प पूरी तरह खराब था. गांव वालों ने बताया कि ये नर्मदा निगम ने सरदार सरोवर पुनर्वास योजना के तहत बनाया है. हमें नंदू नज़र आई जो सिर पर पानी के भरकर कहीं से ला रही थीं. हमें बताया कि पास में खाड़ी है वहां से भरकर लाते हैं पानी. जिसको ये पीने के साथ साथ हर ज़रूरी काम मे लेते हैं. हमने गांव की महिलाओं के साथ उस जगह पंहुचे जहां से वो पानी भरकर लाती हैं. वहां देखा तो पानी का स्रोत नज़र आया. लेकिन किसी को नहीं मालूम ये पानी कहाँ से आता है.
गांव की महिलाएं खाड़ी से पानी भरती हैं
गांव की महिलाएं यहीं से पानी भरती हैं. इस जगह को ये लोग खाड़ी कहते हैं मतलब वो जगह जहां से जहां से पानी गुज़रता हो. यहां हमें बताया गया कि दो महीने बाद ये पानी सूख जाएगा और गर्मियों में पानी की बहुत दिक़्क़त होती है. मिली जानकारी के मुताबिक इस गांव में 65 घरों के 600 लोग बसे हैं. पानी की इस समस्या पर केवड़िया कॉलोनी में बने सरदार सरोवर डैम पुनर्वास एजेंसी के स्थानीय कार्यालय पंहुचे लेकिन बात करने के लिए हमें कोई नहीं मिला. लेकिन एक अहम जानकारी यहां से हमें मिली. दरअसल पूरे पैकेज के तहत पैकेज में 5 एकड़ जमीन, 500 वर्गफुट घर बनाने के लिए ज़मीन और 45000 हज़ार रुपए घर बनाने के लिए, 4500 रुपए भत्ता जीवन. 750 रुपया ग्रांट मिलता. 7000 सहायता खेती के लिए प्रोडक्ट खरीदने के लिए. इस पैकेज को 1-1-87 नाम दिया गया. यानि जिनकी उम्र 1 जनवरी 1987 को 18 साल पूरी हो रही थी उन्हें इस पैकेज का फायदा मिला. लेकिन सवाल ये बना हुआ था कि क्या सभी को ये पैकेज मिला है. इसके लिए हमने तिलकवाड़ा तालुका के सावली गांव का रुख किया.
कई विस्थापित आज भी लड़ रहे हैं इंसाफ की जंग
यहां पार्वती बेन रहती हैं. इनका अपना घर डैम से सटे गांव में ही था. इनका घर डूब में चला गया लेकिन आजतक इन्हें सरकार ने विस्थापित ही घोषित नहीं किया. यही वजह है इन्हें किसी तरह का कोई मुआवजा नहीं मिला. ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें मुआवजा नहीं मिला इसके लिए हमने बात की करम सिंह से. करम सिंह सरदार सरोवर विस्थापित सेवा मंडल से जुड़े कार्यकर्ता हैं. करम सिंह बताते हैं कि कुल मिलाकर 2000 ऐसे लोग हैं जो आजतक मुआवज़े के लिए तरस रहे हैं और जहां तहां रहने को मजबूर हैं. हमने अपनी पड़ताल पर विभाग का पक्ष लेने के लिए वडोदरा में सरदार सरोवर पुनर्वास एजेंसी के दफ्तर में संपर्क किया. हम यहां विभाग के कमिश्नर ने दीनानाथ पांडेय ने आचार संहिता का हवाला देते हुए बातचीत करने से मना कर दिया. सरदार सरोवर डैम के 19 गांवो के विस्थापितों को अलग अलग 345 गांवों में बसाया गया है लेकिन ये लोग अभी भी अपने इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं. चुनावी घमासान के बीच जब नेता फ़िज़ूल के मुद्दे में ज़बानी जमा खर्च करते हैं तो ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे लोगों को कब इंसाफ मिलेगा.
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