गुरमेहर कौर का ट्रोल्स को करारा जवाब- मैं आपके 'शहीद की बेटी' नहीं हूं
नई दिल्ली: गुरमेहर कौर का नाम तो आपको याद होगा. जी हां, वही गुरमेहर कौर जिन्होंने रामजस कॉलेज में छात्रों के साथ हुई मारपीट के खिलाफ आवाज उठाई थी. उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर #StudentsAgainstABVP एबीवीपी के खिलाफ मुहिम शुरू की थी. गुरमेहर ने अपनी पोस्ट में लिखा, ''मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा हूं. मैं एबीवीपी से नहीं डरती. मैं अकेली नहीं हूं. भारत का हर छात्र मेरे साथ है.''
क्या था विवाद? गुरमेहर के पुराने वीडियो से एक फोटो लेकर इस मामले को तूल दिया गया. इस फोटो में गुरमेहर के हाथ में प्लेकार्ड था जिस पर "पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा, बल्कि जंग ने मारा है" लिखा. इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया गुरमेहर कौर को लेकर दो हिस्सों में बंट गया था. इस मु्द्द पर सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक में जोरदार बहस हुई थी. सोशल मीडिया पर गुरमेहर को रेप तक की धमकियां मिलीं थीं.
एक बार फिर चर्चा में गुरमेहर कौर मीडिया से दूरी बना चुकीं वही गुरमेहर कौर एक बार फिर सुर्खियों में हैं. इस बार उनके सुर्खियों में आने वजह बना उनका एक ब्लॉग बना है. गुरमेहर ने आज दो दिन पहले 'I AM' नाम से लिखे एक ब्लॉग को ट्विटर पर शेयर किया. इसको शेयर करते हुए गुरमेहर ने लिखा, ''आपने मेरे बारे में पढ़ा है, लेखों के अनुसार अपनी राय बनाई है. अब मैं अपने बारे में अपने शब्दों में बता रही हूं. मेरा पहला ब्लॉग जिसका शीर्षक है 'आई ऐम'."
गुरमेहर कौन ने अपने ब्लॉग में क्या लिखा है ?
मैं कौन हूं? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब मैं कुछ हफ्ते पहले तक अपने हंसमुंख अंदाज में बिना किसी संकोच या चिंता के दे सकती थी लेकिन अब मैं पक्के तौर पर ऐसा नहीं कह सकती.
क्या मैं वो हूं जो ट्रोल्स मेरे बारे में सोचते हैं? क्या मैं वैसी हूं जैसा मीडिया मेरे बारे में दिखाता है? क्या मैं वो हूं जो सिलेब्रिटीज़ मेरे बारे में सोचते हैं?
नहीं, मैं इनमें से कोई नहीं हो सकती. अपने हाथों में प्लेकार्ड लिए, भौंहे चढ़ाए हुए और मोबाइल फोन के कैमरे पर टिकी आंखों वाली जिस लड़की को आपने टेलीविज़न स्क्रीन पर फ्लैश होते देखा होगा, वह निश्चित तौर पर मुझ सी दिखती है.
उसके विचारों की उत्तेजना जो उसके चेहरे पर चमकती है, निश्चित तौर पर उनमें मेरी झलक है. वह उग्र लगती है, मैं उससे भी सहमत हूं लेकिन 'ब्रेकिंग न्यूज़ की हेडलाइन्स' ने एक दूसरी ही कहानी सुनाई. मैं वो हेडलाइन्स नहीं हूं.
शहीद की बेटी शहीद की बेटी शहीद की बेटी
मैं अपने पिता की बेटी हूं. मैं अपने पापा की गुलगुल हूं. मैं उनकी गुड़िया हूं. मैं दो साल की वह कलाकार हूं जो शब्द तो नहीं समझती लेकिन उन तीलियों की आकृतियां समझती है जो उसके पिता उसे पुकारने के लिए बनाया करते थे.
मैं अपनी मां का सिरदर्द हूं. राय रखने वाली, बेतहाशा और मूडी बच्ची, जिनमें उनकी भी छाया है. मैं अपनी बहन के लिए पॉप कल्चर की गाइड हूं और बड़े मैचों से पहले बहस करने वाली उसकी साथी.
मैं क्लास में पहली बेंच पर बैठने वाली वो लड़की हूं जो अपने शिक्षकों से किसी भी बात पर बहस करने लगती है, क्योंकि इसी में तो साहित्य असली मज़ा इसी तरह है. मुझे आशा है कि मेरे दोस्त भी कुछ कुछ मेरी तरह ही हैं. वे कहते हैं कि मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर ड्राई है लेकिन चुनिंदा दिनों में यह कारगर भी है. किताबें और कविताएं मुझे सांत्वना देती हैं.
मुझे किताबों का शौक है. मेरे घर की लाइब्रेरी किताबों से भरी पड़ी है और पिछले कुछ महीनों से मैं इसी फिक्र में हूं कि मां को उनके लैंप और तस्वीरें दूसरी जगह रखने के लिए मना लूं, ताकि मेरी किताबों के लिए शेल्फ में और जगह बन सके. मैं आदर्शवादी हूं. ऐथलीट हूं. शांति की समर्थक हूं. मैं आपकी उम्मीद के मुताबिक गुस्सैल और युद्ध का विरोध करने वाली बेचारी नहीं हूं. मैं युद्ध इसलिए नहीं चाहती क्योंकि मुझे इसकी क़ीमत का अंदाज़ा है.
ये क़ीमत बहुत बड़ी है. मेरा भरोसा करिए, मैं बेहतर जानती हूं क्योंकि मैंने हर रोज इसकी क़ीमत चुकाई है. आज भी चुकाती हूं. इसकी कोई क़ीमत नहीं है. अगर होती तो आज कुछ लोग मुझसे इतनी नफ़रत न कर रहे होते.
न्यूज़ चैनल चिल्लाते हुए पोल करा रहे थे, "गुरमेहर का दर्द सही है या ग़लत?" हमारी तक़लीफों का क्या मोल है? अगर 51% लोग सोचते हैं कि मैं ग़लत हूं तो मैं ज़रूर गलत होऊंगी. इस स्थिति में भगवान ही जानता है कि कौन मेरे दिमाग को दूषित कर रहा है.
पापा मेरे साथ नहीं हैं; वह पिछले 18 सालों से मेरे साथ नहीं है. 6 अगस्त, 1999 के बाद मेरे छोटे से शब्दकोश में कुछ नए शब्द जुड़ गए- मौत, पाकिस्तान और युद्ध. ज़ाहिर है, कुछ सालों तक मैं इनका छिपा हुआ मतलब भी नहीं समझ पाई थी. छिपा हुआ इसलिए कह रही हूं क्योंकि क्या किसी को भी इसका मतलब पता है? मैं अब भी इनका मतलब ढूंढने की कोशिश कर रही हूं.
मेरे पिता एक शहीद हैं लेकिन मैं उन्हें इस तरह नहीं जानती. मैं उन्हें उस शख्स के तौर पर जानती हूं जो कार्गो की बड़ी जैकेट पहनता था, जिसकी जेबें मिठाइयों से भरी होती थीं. मैं उस शख्स को जानती हूं जो मेरी नाक को हल्के से मरोड़ता था, जब मैं उसका माथा चूमती थी. मैं उस पिता को जानती हूं जिसने मुझे स्ट्रॉ से पीना सिखाया, जिसने मुझे च्यूइंगम दिलाया.
मैं उस शख्स को जानती हूं जिसका कंधा मैं जोर से पकड़ लेती थी ताकि वो मुझे छोड़कर न चले जाएं. वो चले गए और फिर कभी वापस नहीं आए. मेरे पिता शहीद हैं. मैं उनकी बेटी हूं.
लेकिन, मैं आपके 'शहीद की बेटी' नहीं हूं. गुरमेहर दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में पढ़ती हैं. 22 फ़रवरी, 2017 को उन्होंने फ़ेसबुक पर अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर बदली थी.