Gurugram Mosque Attack: गुरुग्राम में नमाज को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हुआ है. आरोप है कि यहां एक मस्जिद पर हमला किया गया और वहां नमाज पढ़ रहे लोगों के साथ मारपीट भी की गई. इसके बाद मस्जिद को बंद कर इस पर ताला भी लगा दिया गया. ये मस्जिद पटौदी के गांव बहोडा कलां में स्थित है. घटना की सूचना मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची और शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया गया, लेकिन राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम में नमाज पर ये विवाद पहला नहीं है. पिछले लंबे समय से यहां नमाज पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है. इस मामले को लेकर हिंदू और मुस्लिम संगठन कई बार आमने-सामने आए हैं.
खुले में नमाज को लेकर विवाद
हरियाणा के गुरुग्राम में नमाज पर विवाद नया नहीं है. पिछले करीब तीन साल से यहां हिंदूवादी संगठन नमाज को लेकर प्रशासन को लगातार धमकी दे रहे हैं. खुले में नमाज पर विवाद इतना बढ़ गया था कि खुद मुख्यमंत्री को इस पर बयान देना पड़ा. आइए जानते हैं कि ये विवाद कहां से शुरू हुआ और अब कहां तक पहुंच चुका है.
दरअसल साल 2018 में हरियाणा के गुरुग्राम में मुस्लिमों को खुले में नमाज के लिए कुछ जगहें दी गईं. जहां मुसलमान शुक्रवार की नमाज पढ़ सकते थे. पूरे गुरुग्राम में ऐसे करीब 37 स्थान थे, जहां नमाज की इजाजत दी गई. कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चला, लेकिन बाद में कुछ हिंदू संगठनों ने इसे लेकर विरोध करना शुरू कर दिया. प्रशासन को कहा गया कि उसने गलत तरीके से खुले में नमाज की इजाजत दी है, इन संगठनों के विरोध को देखते हुए प्रशासन ने कुछ जगहों पर नमाज की इजाजत वापस ले ली.
नमाज के साथ जय श्रीराम के नारे
हालांकि मामला यहीं खत्म नहीं हुआ. हिंदू संगठनों ने सरकार से मांग करते हुए ये साफ किया कि अगर खुले में नमाज पढ़ने की इजाजत दी गई तो वो आंदोलन करेंगे. इसके बाद हिंदू संगठन नमाज वाली जगह पर जाकर प्रदर्शन भी करने लगे. कई मौकों पर देखा गया कि एक तरफ नमाज चल रही थी और दूसरी तरफ जय श्रीराम के नारे लगाए जा रहे थे. एक नमाज की जगह पर कुछ लोगों ने गोबर के उपले भी पाथ दिए थे. इसके अलावा यहां पर हनुमान चालीसा का पाठ और हवन भी किया गया. प्रशासन ने किसी तरह इस पूरे मामले को संभाला.
बीजेपी नेताओं ने किया गोवर्धन पूजा का आयोजन
गुरुग्राम में खुले में नमाज के विरोध में हिंदू संगठनों ने नवंबर 2021 में गोवर्धन पूजा का भी आयोजन किया था. इसमें बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, सुरेश अमू और विश्व हिंदू परिषद के कई बड़े नेता शामिल हुए. इस दौरान तमाम नेताओं ने मंच से धमकी भरे भाषण भी दिए थे. कपिल मिश्रा ने जहां इसे एक तमाशा बताया, वहीं एक वीएचपी नेता ने तो खुले में नमाज पढ़ने वालों को पाकिस्तान जाने की सलाह तक दे डाली.
मुख्यमंत्री खट्टर ने क्या कहा था?
इस पूरे विवाद को बढ़ता देख हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी सामने आकर बयान दिया था. जिसमें उन्होंने समाधान निकालने की बात कही. इसके साथ ही खट्टर ने हिंदू संगठनों के पक्ष में बयान देते हुए साफ किया कि खुले में नमाज पढ़ने की परंपरा को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. इस पर एक सौहार्दपूर्ण समाधान निकाला जाएगा. किसी भी तरह का टकराव नहीं होने देंगे. खट्टर ने ये भी कहा कि धार्मिक आयोजन सिर्फ धार्मिक स्थलों तक ही सीमित होने चाहिए. इसके बाद से ही खुले में नमाज का विवाद थोड़ा थमना शुरू हुआ था. ज्यादातर जगहों पर खुले में नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी गई.
सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला
इस मामले पर विवाद इतना बढ़ गया था कि ये सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. तब राज्यसभा के सांसद मोहम्मद अदीब ने एक याचिका दायर कर कहा था कि, गुरुग्राम प्रशासन के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस दर्ज किया जाए. क्योंकि उसने सांप्रदायिक तनाव के बावजूद कोई भी कार्रवाई नहीं की. सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह के जरिए ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई. जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पुलिस और प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले (तहसीन पूनावाला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) की अवमानना की है. जिसमें साफ कहा गया था कि सांप्रदायिक हिंसा के दौरान पुलिस और प्रशासन चुप्पी नहीं साध सकता है और उसे नफरती भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी.
इसके साथ ही इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट को ये भी बताया कि खुले में नमाज की इजाजत प्रशासन की तरफ से भीड़ से बचने और जगह की कमी के चलते दी गई थी. किसी का भी जगह पर कब्जा करने का कोई इरादा नहीं था. इसे सोशल मीडिया और सांप्रदायिक आयोजनों से अलग तरह से दिखाने की कोशिश हुई. इस याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया था, हालांकि अब तक सुनवाई होना बाकी है.
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