Vishwanath Gyanvapi Controversy: सुप्रीम कोर्ट ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद की सुनवाई 20 अक्टूबर के लिए टाल दी है. कोर्ट ने मस्ज़िद परिसर में मिले शिवलिंग की पूजा करने या उसकी कार्बन डेटिंग की मांग को भी सुनने से मना कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच ने कहा कि इस मामले में जिसे जो भी कहना है, वह वाराणसी के जिला जज की कोर्ट में कहे.


कोर्ट का पिछला आदेश
सुप्रीम कोर्ट में आज अंजुमन इंतजामिया मस्ज़िद मैनेजमेंट कमिटी की याचिका सुनवाई के लिए लगी थी. इससे पहले इस मामले की सुनवाई 18 मई को हुई थी. उस दिन सुप्रीम कोर्ट ने पूरा मामला सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट से ज़िला जज की कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था. उस आदेश में कोर्ट ने यह भी कहा था कि जिला जज सबसे पहले मस्ज़िद कमिटी के उस आवेदन को सुनें जिसमें हिन्दू पक्ष की याचिका को सुनवाई के अयोग्य बताया गया है.


हिन्दू श्रद्धालुओं की भी याचिका
अंजुमन इंतजामिया के अलावा आज 3 और याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगी थीं. इन्हें अलग-अलग हिन्दू श्रद्धालुओं ने दाखिल किया था. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, सूर्य कांत और पी एस नरसिम्हा की बेंच ने सबसे पहले मस्ज़िद पक्ष के वकील हुजैफा अहमदी को सुना. अहमदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के मुताबिक वाराणसी ज़िला जज की कोर्ट में कार्रवाई चल रही है. फिलहाल मेंटेनिबिलिटी (हिन्दू पक्ष की याचिका के सुनवाई योग्य होने या न होने) के मसले को सुना जा रहा है.


20 अक्टूबर को अगली सुनवाई
हुजैफा अहमदी ने आगे कहा कि उन्होंने मामले में कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति को भी चुनौती दी है. जिस तरह से कमिश्नर की नियुक्ति हुई और मस्जिद परिसर का सर्वे करवाया गया, वह गलत था. अहमदी ने कहा कि इस बारे में उनके विरोध को न सिविल जज ने सुना, न हाई कोर्ट ने.


इस पर बेंच ने प्रस्ताव दिया कि वह वाराणसी के जिला जज से इस पहलू को भी सुनने को कह सकते हैं. लेकिन अहमदी ज़ोर देते रहे कि सुप्रीम कोर्ट ही इसे सुने क्योंकि हाई कोर्ट इसे सुन कर खारिज कर चुका है. इस पर 3 जजों की बेंच ने कोई टिप्पणी नहीं की. जजों ने कहा कि वाराणसी की कोर्ट में सुनवाई चल रही है. ऐसे में मामले के किसी भी पहलू पर अभी उनका सुनवाई करना सही नहीं होगा. इसलिए, सुनवाई को अक्टूबर के लिए टाला जा रहा है.


पूजा की मांग सुनने से मना किया
इसके बाद सर्वे के दौरान मस्ज़िद परिसर में मिले शिवलिंग की पूजा करने की अनुमति मांग रहे याचिकाकर्ता राजेश मणि त्रिपाठी ने अपनी बात रखने की कोशिश की. इस पर बेंच के अध्यक्ष जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- जब निचली अदालत में सुनवाई लंबित है, तो आप सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका कैसे कर सकते हैं? सिविल केस की सुनवाई की एक प्रक्रिया होती है. बेहतर है आप याचिका वापस ले लें


इसके बाद अमिता सचदेव, पारुल खेड़ा समेत 7 श्रद्धालु महिलाओं की तरफ से वकील हरिशंकर जैन ने शिवलिंग के कार्बन डेटिंग की मांग रखी. लेकिन जज ने उनसे भी यही कहा कि इस तरह सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं हो सकती. उन्हें यह बातें निचली अदालत में रखनी चाहिए. 


विश्वनाथ मंदिर में सैकड़ों साल से पूजा करते आ रहे व्यास परिवार के शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास की भी याचिका कोर्ट के सामने सूचीबद्ध थी. इसमें यह बताया गया था कि 1993 तक ज्ञानवापी के एक तहखाने पर उनका नियंत्रण था. वहां पूजा और रामायण पाठ जैसे कार्यक्रम होते थे. लेकिन जजों के रुख को देखते हुए सभी श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी याचिकाएं वापस ले लीं. सब ने अपनी बात निचली अदालत में रखने की बात कही है.


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