Supreme Court Notice To UP government: उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों की बिक्री पर रोक लगाने और हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली संस्थाओं पर FIR दर्ज किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है. न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ चेन्नई की हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र द्वारा संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने दो हफ्ते में जवाब मांगा है.
इसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा "निर्माण, बिक्री, भंडारण (Storage)" पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि प्रतिबंध नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और स्थापित प्रमाणन प्रक्रियाओं को कमजोर करता है. इससे लीगल ट्रेड के भी प्रभावित होने के दावे किए गए हैं. हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने यूपी सरकार और FSSAI के फैसले को गलत बताते हुए याचिका में दलील दी कि इस फैसले का पूरे देश पर असर होगा, इसलिए सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होनी चाहिए. याचिकाकर्ताओं ने हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली संस्थाओं पर FIR दर्ज होने का भी विरोध किया है.
पहले दी हाई कोर्ट जाने की सलाह
सुनवाई की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई और संदीप मेहता की बेंच ने याचिकाकर्ताओं को इलाहाबाद हाई कोर्ट जाने की सलाह दी, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इस फैसले का पूरे देश पर असर होगा. उन्होंने यह भी कहा कि हलाल प्रमाणित उत्पादों की बिक्री के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके भंडारण पर भी रोक लगाया है. इससे दूसरे राज्यों में भी इन उत्पादों की आपूर्ति पर असर पड़ रहा है. इतना ही नहीं अब ऐसी रोक की मांग दूसरे राज्यों में भी उठने लगी है इसलिए सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में ही होनी चाहिए.
यूपी सरकार ने क्यों लगाई रोक
पिछले साल 18 नवंबर 2023 को जारी अधिसूचना में यूपी के फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FSDA) ऑफिस ने हलाल सर्टिफिकेट वाले खाद्य पदार्थों, दवाओं और कॉस्मेटिक्स समेत दूसरे उत्पादों की बिक्री और भंडारण पर रोक लगा दी थी. आदेश में इसे जनस्वास्थ्य से जुड़ा विषय बताया गया था. यह भी कहा गया था कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 के तहत कोई निजी संस्था इस तरह के सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकती. यह काम सिर्फ फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया यानी FSSAI ही कर सकता है.
इसी मामले में हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलेमा हिंद हलाल ट्रस्ट, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया और जमीयत उलेमा महाराष्ट्र के खिलाफ लखनऊ के हज़रतगंज थाने में एफआईआर भी दर्ज हुई थी.
" एक समुदाय विशेष को परेशान किया जा रहा है"
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यह सब कर के एक समुदाय विशेष को परेशान किया जा रहा है. अगर धार्मिक कारणों से लोग हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इससे दूसरे लोगों के हितों पर कोई असर नहीं पड़ता. हालांकि, हलाल उत्पादों का विरोध करने वाले यह दलील देते रहे हैं कि इस तरह का सर्टिफिकेशन अवैध है. यह सर्टिफिकेट देने के लिए कंपनियों से मोटा पैसा लिया जाता है और उन पैसों का इस्तेमाल राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में होता है.
क्या होता है हलाल?
हलाल को लेकर अमूमन विवाद होते रहे हैं. दरअसल जिस जानवर को जिबह करके मारा जाता है, उसके मांस को हलाल कहा जाता है. जिबह करने का मतलब ये होता है कि जानवर के गले को पूरी तरह काटने की बजाय उसे रेत दिया जाता है, जिसके बाद उसके शरीर का लगभग सारा खून बाहर निकल जाता है. ऐसे ही जानवरों के मांस को हलाल मीट वाला सर्टिफिकेशन मिलता है.
क्या है हलाल सर्टिफिकेशन?
हलाल सर्टिफिकेशन इस्लाम के अनुसार दिया जाता है. हलाल सर्टिफिकेशन को ऐसे समझ सकते हैं कि ऐसे प्रोडकट्स जिन्हें मुस्लिम समुदाय के लोग इस्तेमाल कर सकते हैं. मुस्लिम लोग हलाल प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करते हैं. हलाल सर्टिफाइड होने का मतलब है कि मुस्लिम समुदाय के लोग ऐसे प्रोडक्ट्स को बिना किसी संकोच खा सकते हैं.
भारत में पहली बार 1974 में हलाल सर्टिफिकेशन की शुरुआत हुई. भारत में हलाल सर्टिफिकेशन के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं है. कई प्राइवेट कंपनियां और संस्थाएं ऐसे सर्टिफिकेशन को जारी करती हैं. आरोप है कि हलाल मार्केट को बढ़ाने के लिए कुछ संस्थाएं ऐसे प्रोडक्ट्स पर भी ये सर्टिफिकेशन दे रही हैं, जिन्हें तमाम लोग रोजाना इस्तेमाल करते हैं. यूपी सरकार का कहना है कि सिर्फ मीट की बिक्री पर ही ऐसे सर्टिफिकेशन की जरूरत होती है, तमाम पैकेज्ड फूड पर ऐसे सर्टिफिकेशन की जरूरत नहीं है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसकी जांच एसटीएफ को भी सौंपी थी.