नई दिल्ली: हलाल और झटका मीट का बरसों पुराना विवाद आखिरकार खत्म हो गया है. अब निर्यात होने वाले मीट पर "हलाल" शब्द नज़र नहीं आएगा. एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी अपेडा ने निर्यात होने वाले मीट से "हलाल' शब्द को हटा दिया है.
रेड मीट मैन्युअल पर क्या लिखा होता था, क्या हुआ बदलाव
देश से अभी तक जो मीट निर्यात होता है, उसके लिए अपेडा का रेड मीट मैन्युअल होता है. इसी मैन्युअल के नियमों के मुताबिक ही निर्यातकों को मीट विदेश भेजने की अनुमति होती है. रेड मीट मैन्युअल में अभी तक लिखा होता था, "जानवरों का वध इस्लामिक देशों की ज़रूरत के मुताबिक हलाल विधि से होता है." लेकिन, अब नए मैन्युअल में लिखा गया है, "जानवरों का वध आयात करने वाले देश या आयातक की ज़रूरत के हिसाब से होता है."
जानकारों का कहना है की हमारे देश से होने वाले मीट निर्यात में लगभग 90% हिस्सेदारी बफैलो मीट की है जो कि अधिकांश मुस्लिम देशों जैसे इंडोनेशिया, यूएई, ईरान, इराक आदि देशों को होता है. वो लोग हलाल मीट ही खाते हैं. अब नए मैन्युअल के हिसाब से भी हलाल मीट ही इन देशों को निर्यात होगा लेकिन हलाल शब्द नहीं लिखा होगा.
गैर-इस्लामिक देशों में भारत से मीट निर्यात बढ़ने की उम्मीद
विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल का कहना है कि हलाल शब्द हटने से अब गैर-इस्लामिक देशों में भारत का मीट निर्यात बढ़ेगा. इसके अलावा गैर मुस्लिम समुदाय के लोगों को रोजगार भी मीट उद्योग में मिलेगा. उनका कहना है कि हलाल शब्द से एक धर्म विशेष का संदेश जाता था जबकि भारत जैसे सेक्युलर देश में ऐसा नहीं होना चाहिए था. सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए.
क्या है जानकारों का मानना
जानकार भी इस बात को मानते हैं कि हलाल शब्द को हटाया जाना ठीक है. लेकिन, इससे मीट निर्यात को बहुत बड़ा बढ़ावा मिलेगा, ऐसा नहीं है. जानकारों का मानना है कि हलाल शब्द हटने से हो सकता है थोड़ी बहुत डिमांड बढ़े, लेकिन इससे कोई बहुत बड़े रोज़गार के अवसर खुलेंगे या निर्यात बहुत ज़्यादा बढ़ जाएगा, ऐसा नहीं लगता.
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