Hamara Samvidhan: संविधान सीरीज में अब हम एक-एक करके नागरिकों को हासिल मौलिक अधिकारों की बात करेंगे. मौलिक अधिकार भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक है. भारत उन देशों में शामिल है, जो स्पष्ट रूप से अपने नागरिकों और भारत में रह रहे किसी व्यक्ति के सामान्य मानव अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा देता है. यानी ऐसे अधिकार जिन्हें किसी नागरिक से छीना नहीं जा सकता है. तमाम अधिकारों के दायरे तय किए गए हैं। विशेष परिस्थितियों में या अधिकार का दुरुपयोग होने की स्थिति में वह अधिकार नागरिक को उपलब्ध नहीं हो पाता.


मौलिक अधिकारों में सबसे पहले आता है-, समानता का अधिकार. अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक इस अधिकार का जिक्र है. अनुच्छेद 14 है- Right to equality before law या equal protection of law. इसके मुताबिक हर व्यक्ति कानून की नजर में बराबर है. किसी को विशेष दर्जा हासिल नहीं है. सबको कानून का एक समान संरक्षण हासिल है.


अगर संसद कोई ऐसा कानून बनाती है, जिससे समान परिस्थिति के 2 लोगों में भेदभाव होता हो तो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट उसे निरस्त कर सकता है. उसी तरह अगर सरकार कोई ऐसा कदम उठाती है जो एक जैसे 2 नागरिकों पर एक जैसा असर नहीं डालता, तो उसे भी रद्द किया जा सकता है.


अनुच्छेद 14 क्या है


अनुच्छेद 14 समानता की व्यापक परिभाषा देता है. इस तरह की समानता भारत में रह रहे हर व्यक्ति को हासिल है. चाहे वह भारत का नागरिक हो या नहीं। लेकिन 15 से लेकर 18 तक जो अधिकार हैं, वो खास तौर पर भारतीय नागरिकों के लिए हैं.


अनुच्छेद 15 क्या है


अनुच्छेद 15 के मुताबिक भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ सिर्फ उसके धर्म, भाषा, जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता. मतलब हर नागरिक को एक समान अवसर मिलेगा. किसी के साथ भी सिर्फ इस वजह से भेदभाव नहीं किया जाएगा कि वह किसी खास, धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र या लिंग का है.


यहां आपके मन में सवाल आ सकता है कि जब संविधान जाति के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है, तब आरक्षण की व्यवस्था इस देश में क्यों है? आपके सवाल में ही जवाब छुपा है। अगर समाज का कोई वर्ग पहले से असमानता की स्थिति में है, तो उसे दूसरों की बराबरी पर लाना भी सरकार का संवैधानिक दायित्व है। यही आरक्षण का आधार है.


सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई फैसलों में इसे सही माना है. हालांकि, किसी भी तबके को कमजोर बताकर आरक्षण देने का मनमाना फैसला सरकार नहीं ले सकती. इसके लिए जरूरी आंकड़े जुटाकर इस बात का प्रमाण इकट्ठा किया जाना चाहिए कि उस तबके को वाकई आरक्षण की जरूरत है. ऐसा नहीं होने की स्थिति में कोर्ट कई बार सरकार की तरफ से दिए गए आरक्षण को रद्द कर चुका है.


समानता की बात तो की है 15 और 16 में है लेकिन ये भी बोला है कि समाज में जो पिछड़ी जाति के लोग हैं, शेड्यूल्ड कास्ट हैं, उनके लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जा सकता है. लेकिन उसपर सुप्रीम कोर्ट ने बोला है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता है आरक्षण.


अनुच्छेद 16 क्या है


अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों में सबको समान अवसर दिए जाने की बात कहता है. यानी यहां भी किसी भी जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के चलते कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता. लेकिन नौकरियों में आरक्षण दिया जाता है. इसकी वजह आपको पहले ही बताई जा चुकी है. अगर कोई तबका पहले से कमजोर है, तो उसे ऊपर लाना सरकार का दायित्व है.


अनुच्छेद 17 क्या है


अनुच्छेद 17 छुआछूत को खत्म करने की बात करता है. भारत में किसी भी नागरिक के साथ अछूत जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता. सरकार की ये जिम्मेदारी मानी गई है कि वो नागरिकों को ऐसी परिस्थिति से बचाए। इसलिए, सरकार ने इससे जुड़े कानून बनाए हैं. ताकि कोई अगर किसी से अछूत जैसा बर्ताव करे तो उसे दंडित किया जा सके.


अनुच्छेद 18 क्या है


अनुच्छेद 18 abolition of titles यानी उपाधियों को खत्म किए जाने की बात कहता है. आजादी से पहले अंग्रेजों के दिए सर, खान बहादुर, राय बहादुर, राजा, महाराजा जैसी उपाधियां आपने सुनी होंगी. आजाद भारत में इन्हें खत्म कर दिया गया है. अब ऐसी कोई उपाधि न तो सरकार किसी को दे सकती है, न भारत का कोई नागरिक विदेशी सरकार से इन्हें ले सकता है. अब आपके मन में ये सवाल आएगा कि सरकार पद्मश्री, पद्म भूषण, भारत रत्न जैसे जो सम्मान देती है, उन्हें कैसे मान्यता मिल सकती है?


सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई के बाद फैसला दे चुका है. फैसले में माना गया था कि पद्म पुरस्कार या भारत रत्न नागरिकों को किसी भी क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाने वाला सम्मान है. यह कोई उपाधि नहीं जिसे लोग अपने नाम के आगे या पीछे लगाते हैं और दूसरों के मुकाबले अपने आप को बेहतर साबित करने की कोशिश करते हैं. योगदान के लिए मिलने वाले सम्मान को अनुच्छेद 18 का उल्लंघन नहीं माना जा सकता.