नई दिल्ली: भारत में कानून के मुताबिक किसी भी जघन्य अपराध के लिए कोर्ट अपराधी को फांसी की सजा सुना सकता है. अगर किसी अपराधी को फांसी की सजा मिली है तो उसके लिए कानून में अलग से प्रावधान किए गए हैं. फांसी की सजा पाने वाले शख्स के साथ साथ एक और शख्स की भूमिका बड़ी गहरी होती है और वो है जल्लाद, जो अपने हाथों से फांसी का फंदा भी तैयार करता है और अपराधी को उस फंदे पर लटकाता भी है. लेकिन क्या आपको बता है कि एक फांसदी के लिए ‘जल्लाद’ को कितने रुपए मिलते हैं? देश के सबसे बड़े जल्लाद पवन कुमार ने खुद इसका जवाब दिया है.
हर महीने मिलते हैं पांच हजार रुपए- जल्लाद
न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में जल्लाद पवन ने बताया है, ‘’मुझे उत्तर प्रदेश सरकार से हर महीने सिर्फ पांच हजार रुपए मिलते हैं. यह रुपये मेरठ जेल से हर महीने भेजे जाते हैं.’’ हालांकि जल्लाद पवन से साफ किया कि एक फांसी देने के लिए मिलने वाली रकम इन पांच हजार रुपए से अलग होती है. उन्होंने बताया कि प्रशासन एक फांसी के लिए अलग से पैसे देता है.
एक फांसी देने के लिए मिलते हैं 25 हजार रुपए- जल्लाद
बकौल पवन, "पहले तो सस्ते के जमाने में फांसी लगाने के औने-पौने दाम मिला करते थे. आजकल एक फांसी लगाने का दाम 25 हजार रुपया है. यानी एक अपराधी को फांसी के फंदे पर लटकाने के 25 हजार और दो लटकाने के 50 हजार रुपए मिलते हैं.’’ हालांकि जल्लाद पवन बताते हैं कि इन 25 हजार से जिंदगी नहीं कटनी. फिर भी खुशी इस बात की ज्यादा होती है कि चलो किसी समाज के नासूर को जड़ से खत्म तो अपने हाथों से किया."
निर्भया के मुजरिमों को फांसी देने पर जल्लाद ने क्या कहा है?
पवन ने कहा, "मैं तो एकदम तैयार बैठा हूं. निर्भया के मुजरिमों के डेथ-वारंट मिले और मैं तिहाड़ जेल पहुचूं. मुझे मुजरिमों को फांसी के फंदे पर टांगने के लिए महज दो से तीन दिन का वक्त चाहिए. सिर्फ ट्रायल करुंगा और अदालत के डेथ वारंट को अमल में ला दूंगा. मैं खानदानी जल्लाद हूं. इसमें मुझे शर्म नहीं लगती. मेरे परदादा लक्ष्मन जल्लाद, दादा कालू राम जल्लाद, पिता मम्मू जल्लाद थे. मतलब जल्लादी के इस खानदानी पेशे में मैं अब चौथी पीढ़ी का इकलौता जल्लाद हूं."
जल्लाद पवन से कैसे और किससे सीखा फांसी देना?
पवन ने पहली फांसी दादा कालू राम जल्लाद के साथ पटियाला सेंट्रल जेल में दो भाईयों को दी थी. दादा के साथ अब तक जिंदगी में पांच खूंखार मुजरिमों को फांसी पर टांगने वाले पवन के मुताबिक, "पहली फांसी दादा कालू राम के साथ पटियाला सेंट्रल जेल में दो भाईयों को लगवाई थी. उस वक्त मेरी उम्र यही कोई 20-22 साल रही होगी. अब मैं 58 साल का हो चुका हूं." पवन के दावे के मुताबिक अब तक अपने दादा कालू राम के साथ आखिरी फांसी उसने बुलंदशहर के दुष्कर्म और हत्यारोपी मुजरिम को सन 1988 के आसपास लगाई थी. वह फांसी आगरा सेंट्रल जेल में लगाई गयी थी. उससे पहले जयपुर और इलाहाबाद की नैनी जेल में भी दो लोगों को दादा के साथ फांसी पर लटकवाने गया था. ऐसे मुजरिमों को पालकर रखना यानी नये मुजरिमों को जन्म लेने के लिए खुला मौका देना होता है."
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